नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कानूनी कार्यवाही के तार्किक अंत तक नहीं पहुंचने और देशभर की अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने मुकदमों के कछुए की गति से चलने के कारण जनता का “न्यायिक प्रक्रियाओं से मोहभंग” होने के खतरे से आगाह किया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे के दौरान […]
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कानूनी कार्यवाही के तार्किक अंत तक नहीं पहुंचने और देशभर की अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने मुकदमों के कछुए की गति से चलने के कारण जनता का “न्यायिक प्रक्रियाओं से मोहभंग” होने के खतरे से आगाह किया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे के दौरान पक्षकारों की तरफ से अपनाई जाने वाली टालमटोल की रणनीति पर भी चिंता व्यकत की है। साथ ही कोर्ट ने लंबित मामलों का तेजी से निपटारा कर तत्काल सुधार पर जोर देते हुए कई अहम सुझाव दिए है।
41 साल से नहीं आया इस केस का फैसला
नयायालय ने लंबित मामलों में एक का जिक्र करते हुए कहा, 41 साल पहले संपत्ति विवाद का मुकदमा करने वाले याचिकाकर्ता अभी भी न्याय की आस में है। अदालत ने लंबित मामलों को निपटाने के लिए देश की न्यायिक प्रणाली में तत्काल सुधार का आह्वान किया है। वहीं न्यायमूर्ती एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने निचली अदलतों के लिए कई अहम निर्दश भी जारी किए है। पीठ ने कहा कि देश में लोकतंत्र न्यायपालिका पर निर्भर है।
वकील से बात करें पार्टियां
न्यायालय ने कहा कि मुकदमे की तारीख, पार्टियों की ओर से पेश होने वाले अधिवक्ताओं के राय से तय की जाएगी ताकि वे अपने कैलेंडर को समायोजित कर सकें। इसमें कहा गया है कि एक बार मुकदमे की तारीख तय हो जाने के बाद, मुकदमा यथासंभव दिन-प्रतिदिन के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए।
मामले को अटकाने से बचने का तरीका
जिला और तालुका अदालतों के ट्रायल जज जहां तक संभव हो सके एक डायरी रखेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी दिन सुनवाई के लिए केवल इतनी ही संख्या में मामले सूचीबद्ध किए जाएं, जिन्हें निपटाया जा सके। साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग पूरी करने पर भी जोर दिया गया ताकि मामलों के बैकलॉग यानी लंबे समय तक लंबित रखने से बचा जा सके।