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लकड़ियों की शादी के मामले में SC ने दी कड़ी नसीहत, कहा- हमें मत सिखाइए

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के बराबर करने की याचिका खारिज कर दी है। इस मामले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि संविधान के रक्षक के रूप में देश की सर्वोच्च अदालत के पास […]

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लकड़ियों की शादी के मामले में SC ने दी कड़ी नसीहत, कहा- हमें मत सिखाइए
  • February 20, 2023 4:29 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के बराबर करने की याचिका खारिज कर दी है। इस मामले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि संविधान के रक्षक के रूप में देश की सर्वोच्च अदालत के पास कोई विशेष अधिकार नहीं है। संसद को भी संविधान की रक्षा का समान अधिकार है। संसद के पास किसी भी कानून में संशोधन करने की शक्ति है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी निर्देश देने से साफ इनकार कर दिया है।

 

SC ने कहा- हमें मत सिखाइए

मिली जनकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सभी धर्मों में लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के बराबर 21 साल करने के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून में बदलाव का मामला है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट संसद को इस मामले पर कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकता है। यदि सुप्रीम न्यायालय विवाह नियम के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष को रद्द कर देता है तो विवाह के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर याचिका दायर करने वाले बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा कि ”यह राजनीतिक मंच नहीं है.” क्या आप हमें यह नहीं सिखाएंगे कि संविधान के रक्षक होने के नाते हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

मामले में SC की कड़ी नसीहत

आपको बता दें, लड़के और लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बराबर करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में पहले एक याचिका दायर की गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने उस अपील को सुप्रीम कोर्ट में रेफर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी को यह याचिका मंजूर कर ली। इस याचिका में कहा गया है कि लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष भेदभावपूर्ण है। जबकि देश में पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल है। बता दें, याचिका दायर करने वाले ने कहा था कि ये मामला संविधान के अनुच्छेद 14 से जुड़ा है जिसके तहत सबको समानता का अधिकार हासिल करने का हक़ है।

 

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