नई दिल्ली: अब सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में रहना वहां जाकर कमाने वाले भारतीय लोगों मंहगा साबित हो सकता है. दरअसल, तेल समुद्ध खाड़ी देश टैक्स फ्री कमाई के लिए मशहूर हैं. इसका मतलब वहां नौकरी करते हुए मिलने वाली सैलेरी पर सरकार कोई टेक्स नहीं लेती है न ही आपको वहां इनकम टैक्स अदा करना होता है और न ही किसी समान को खरीदने के लिए कोई टैक्स लगता है लेकिन अब ऐसा ज्यादा दिन नहीं रहेगा. नए साल से घटती कमाई से चिंतित सऊदी अरब और यूएई देश में वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) लागू करने जा रही है.
मिली जानकारी के मताबिक, इस कदम की पहल दोनों देशों के गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल के सदस्य ने की जिनमें कुवैत, बहरैन, ओमान और कतर भी शामिल हैं. तेल के व्यापार से बड़ी कमाई करने वाले इन देशों की पिछले कुछ सालों से वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार घाटा अठा रही है. वहीं तेल की गिरोवटों के साथ-साथ इन देशों का हथियार और युद्ध की तैयारी के क्षेत्र में भी ज्यादा खर्च है जिस वजह से सरकार की कमाई धीरे-धीरे गिरती जा रही है. जिसके चलते सरकार को 5 प्रतिशत वैट लगाना पड़ रहा है. जिसका सीधा असर वहां पर कमा रहे भारतीय को पड़ सकता है.
बता दें कि खाद्य सामग्री, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक एंड गैसोलीन, फोन, बिजली और पानी सप्लाई और होटल जैसे कई उत्पाद और सेवाओं पर नए साल से टैक्स लगाया जा सकता है. हालांकि, रियल स्टेट, मेडिकल सेवा, हवाई यात्रा और शिक्षा जैसी सेवाओं को टैक्स से दूर रखा जा सकता है. वहीं, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वैट लगाने की तैयारी की जा रह है. इसके साथ ही स्कूल यूनीफॉर्म, किताबें जैसे उत्पाद और सेवाएं टैक्स के दायरे में आएंगी. गौरतलब है कि साल 2015 में भी खाड़ी देशों के राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल में सद्स्य देशों की वैट टैक्स लगाने में सहमती थी. जिसके बाद अब सऊदी अरब और यूएई इसकी पहल करने जा रहे हैं.
दरअसल खाड़ी देशों में भारतीय नागरिकों की जनसंख्या करीब 31 फीसदी है. सिर्फ कुवैत में ही भारतीय लोगों की जनसंख्या 21.5 फीसदी है. वहीं ओमान में करीब 54 फीसदी भारतीय बसे हुए हैं. इसके साथ ही सऊदी अरब में भारतीय नागरिक करीब 25 फीसदी हैं और संयुक्त अमिरात में भारतीय जनसंख्या करीब 41 फीसदी है. ऐसे में यह वैट टैक्स भारतीय नागरिकों की कमाई पर ज्यादा असर डाल सकता है.
विश्व बैंक की साल 2015 में आई एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2014 में भारत को कुल 70 अरब डॉलर का रेमिटेंस मिला. जिसमें करीब 37 अरब डॉलर रेमिटेंस खाड़ी देशों से मिला है. विश्व बैंक के अनुसार यूरोप में कमजोर आर्थिक विकास दर, रूस की गिरती हुई अर्थव्यवस्था और ग्लोबली गिर रहे यूरो और रूबल की कीमतें खाड़ी देशों में अधिक भारतीय नागरिकों के रहने की एक बड़ी वजह है.
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