नई दिल्ली. उन दिनों सरदार पटेल एक सम्पन्न जमींदार परिवार से निकले लंदन में बैरिस्टरी किए हुए अहमदाबाद के जाने माने क्राइम वकील थे, गुजरात क्लब के ब्रिज चैम्पियन हुआ करते थे वो. आसानी से किसी के आगे सरेंडर ना करना उनकी आदतों में शुमार था. शुरूआत में उन्होंने गांधीजी की चर्चा को भी सीरियस नहीं लिया, क्लब में जब भी गांधीजी की चर्चा होती कह दिया करते कि शौचालयों की सफाई से स्वराज कैसे आ सकता है, लेकिन जब गांधीजी ने गुजरात प्रांतीय सभा की मीटिंग में एक अनोखा प्रस्ताव पारित किया, पटेल उनके मुरीद हो गए और हमेशा के लिए उनकी सेवा में खुद को अर्पित कर दिया.
गांधीजी को जब गुजरात सभा के एक कार्यक्रम में शुरूआत में बुलाया गया था तब भी पटेल ने कहा था कि भाषण काफी ढीला ढाला है, लेकिन उसके बाद उन्होंने उन्हें 1916 के लखनऊ अधिवेशन में देखा और उसके बाद गांधीजी की जब भारत में पहले आंदोलन चम्पारण सत्याग्रह में जीत की खबर मिली तो गुजरात सभा ने गांधीजी को अपना प्रेसीडेंट बनाने का प्रस्ताव पारित किया, जिसका पटेल ने भी समर्थन किया. बल्लभ भाई पटेल उन दिनों तक राजनीति से दूर रहते थे, जबकि उनके बड़े भाई कांग्रेस की राजनीति का अहम चेहरा बन चुके थे, जो बाद में सेंट्रल असेम्बली के अध्यक्ष भी चुने गए थे.
ऐसे में गांधीजी ने कुछ शर्तों के साथ गुजरात सभा का प्रेसीडेंट बनना स्वीकार कर लिया, और गोधरा में गुजरात सभा की मीटिंग बुलाई गई. ये खेड़ा सत्याग्रह से ठीक पहले की बात है और जगह चुनी गई, आज की पीढ़ी के बीच दंगों के लिए मशहूर गोधरा. इस कार्यकम में लोकमान्य तिलक के साथ साथ गुजराती जिन्ना को भी बुलाया गया था. गांधीजी ने कह दिया था कि केवल भारतीय भाषाओं में भाषण होने हैं, तिलक ने मराठी में भाषण दिया और जिन्ना को मन मसोसकर अंग्रेजी की जगह गुजराती में बोलना पड़ा था.
तब गांधीजी ने एक ऐसा फैसला वहां लिया, जो सबके लिए हैरतअंगेज था, सरदार पटेल की आंखें तो उनके लिए प्रशंसा भाव से भर गईं. अब तक ये होता था कि गुजरात सभा की मीटिंग होने से पहले एक शपथ पत्र पढ़ा जाता था जो ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी की बात करता था, लेकिन गांधीजी ने कहा ब्रिटिश जनता का कोई संगठन तो ऐसी वफादारी की शपथ नहीं लेता, फिर हमें क्यों लेनी चाहिए. उन्होंने वो प्रेक्टिस बंद करवा दी. हर कोई हैरान था, सरदार पटेल तो जैसे उनके मुरीद हो गए. उन्होंने उस वक्त किसी को कहा भी था, ये ही असली मर्द.
उसके बाद जब गांधीजी ने अपनी एक शर्त रखी कि ‘‘मुझे देश भर में काम करना है, खाली गुजरात से बंधा नहीं रह सकता, मुझे गुजरात का काम देखने के लिए ऐसा आदमी चाहिए जो गुजरात में मुझे अपना पूरा समय दे सके, अपना घर जलाकर तीर्थयात्रा की तैयारी कर सके’’. बल्लभ भाई पटेल फौरन खड़े हो गए, मैं हूं ऐसा आदमी, आपकी सेवा के लिए हमेशा तैयार रहूंगा, जैसा आप चाहेंगे, वैसा करूंगा. उन दिनों तक पटेल की वेशभूषा अंग्रेजी हुआ करती थी, गांधीजी भी उन्हें देखकर काफी हैरान थे वो उन्हें सर से पांव तक देखने लगे.
तब बिट्ठल भाई पटेल ने उठकर गांधीजी से कहा, बल्लभ मेरे छोटे भाई हैं, लंदन से बैरिस्टरी की पढ़ाई करके आए हैं. आजकल अहमदाबाद में बैरिस्टर हैं. तब भी गांधीजी थोड़ी देर उनको लेकर सोचते रहे कि आदमी जैसा दिखता है, वैसा ही अंदर तो नहीं होगा, लेकिन बल्लभ भाई के चेहरे और उनकी भावभंगिमाओं में गांधीजी ने एक तेज देखा, एक संकल्प देखा और फिर कहा कि, ‘‘आइए बल्लभ भाई , गुजरात प्रांतीय राजनीतिक परिषद के सचिव के रूप में आज से आपकी नियुक्ति करता हूं’’. वो दिन था और गांधीजी की मौत का दिन, पटेल गांधीजी से तमाम बातों पर असहमत हुए, लेकिन कभी उनके खिलाफ नहीं गए. यहां तक कि 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों द्वारा चुने जाने के बावदूज उन्होंने पीएम के पद की रेस से खुद को अलग कर, गांधीजी के कहने पर पंडित नेहरू के लिए भारत का पहला पीएम बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया.
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