आदिबद्री : फिर जीवनदायनी बनेगी सरस्वती नदी, जानिए पूरा इतिहास

.चंडीगढ़: शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित आदि बद्री हरियाणा के यमुनानगर ज़िले में स्थित वनक्षेत्र है। यह स्थान पौराणिक व् वैदिक महत्व रखने वाली सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है। यह तथ्य भारतीय पुरातत्व विभाग तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो), ओएनजीसी ,सीडब्ल्यूसी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जीएसआई, सी एस एम आर ,आरकेलोजी विभाग हरियाणा सभी एजेंसियों ने माना है कि आदिबद्री को ही सरस्वती का उद्गम स्थल है जो सरस्वती के पैलियो चैनल पर स्थित है. इस क्षेत्र को लेकर सरकार भी कई प्रयास कर रही है. जहां इस क्षेत्र का अपना ही एक पुराना इतिहास है. इतना ही नहीं इस इतिहास को लेकर कई बड़ी संस्थाएं शोध भी कर चुकी हैं. दूसरी ओर हरियाणा सरकार भी सरस्वती नदी के प्रवाह को दोबारा स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास कर रही है.

हरियाणा सरकार कर रही प्रयास

आस-पास खुदाई में मिले हड़प्पा कालीन अवशेष, तथा दूरसंवेदी उपग्रहों द्वारा ली गई तस्वीरें आदिबद्री में स्थित एक संग्रहालय में रखी गई हैं। इन पुरातात्विक धरोहरों से व तस्वीरों से यह भी प्रमाणित हुआ है कि सरस्वती नदी आज भी न केवल धरातल पर प्रवाहमान् है और मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रेरणा से हरियाणा के आधे भूभाग की जीवन रेखा बन गयी है। आदिबद्री मे ही एक सुंदर सरोवर के रूप में भी इस नदी के दर्शन होते हैं। पुरातत्व वेदा व् इतिहासकार व् सरकार ने यह माना है कि हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कालीबंगा (राजस्थान), बनावली और राखीगढ़ी (हरियाणा) तथा धोलावीरा और लोथल (गुजरात) सरस्वती नदी के किनारे ही स्थित हैं। पुरातत्वविद् एस.पी. गुप्ता के अनुसार, आदि बद्री से प्रारंभ होकर सरस्वती नदी कच्छ के रण में गिरती थी.

आस्था का केंद्र

आदि बद्री में आदिकाल से ही भगवान केदारनाथ जी भगवान बद्रीविशाल जी व माता मंत्रा देवी के मंदिर विराजमान है शास्त्रों की माने तो भगवान केदारनाथ जी व भगवान बद्री विशाल जी उत्तराखंड में जाने से पहले आदि बद्री आए थे और यह स्थान आज बहुत बड़ा आस्था का केंद्र है

 

हिमालय ग्लेशियर:

हिमालय के हिमनद से तात्पर्य उन हिमनदों से है जो हिमालय पर्वत श्रेणी पर पाए जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद हिमालय पर सबसे ज्यादा बर्फ़ पायी जाती है और हिमालय के हिमनद लगभग ४०,००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र पर फैले हैं और इनकी संख्या लगभग १०,००० है।

इनमें से ज्यादातर हिमनद सर्क हिमनद हैं। इसरो के द्वारा दिए गए पैलियो चैनल यह दर्शाते हैं कि सरस्वती नदी बन्दरपूंछ ग्लेशियर से होते हुए निकलती थी लेकिन भूगर्भ विभाग अनुसार हजारों साल पहले भूगर्भीय टेक्टोनिक घटनाओं के कारण सरस्वती में आने वाला थल का क्षेत्र ऊपर उठ गया तथा यमुना और गंगा का थल क्षेत्र नीचे रह गया और सरस्वती का जल यमुना और गंगा की ओर एक धारा के रूप में चला गया

जानिए भौगोलिक स्थिति

आदिबद्री उद्गम स्थल से लेकर घग्गर व पारा नदी के मिलन तक 200 किलोमीटर की यह हरियाणा सरकार द्वारा मंजूर की गई सरस्वती की मार्ग रेखा है और सरस्वती नदी के दिशा बहाव की बात करें तो आदिबद्री के उद्गम स्थल से लेकर हरियाणा पंजाब के बॉर्डर कैथल जिला के अंतिम गाँव से पारा व घगर नदियों के साथ मिलकर आगे चलने वाली सरस्वती फतियाबाद सिरसा ओ टू हैड तक पहुंचती है।

सरस्वती के किनारे आदिबद्री से कैथल जिला तक करीब 128 गांव हैं 22 घाट है जो सरस्वती बोर्ड द्वारा बनाए गए हैं  तथा भगवान शिव जी व् अन्य मंदिरो के साथ साथ सरस्वती सहित 75 प्राचीन मंदिर है तथा 26 श्मशान घाट सरस्वती के तट पर स्थित है जो इस बात को सिद्ध करता है कि सरस्वती के पास शमशान घाट तर्पण के लिए बनाए जाते थे.

सरस्वती की यह मार्ग रेखा जो कि यमुनानगर, कुरूक्षेत्र, कैथल से होते हुए जीन्द, फतेहाबाद, हिसार के औटू हैड तक पहुचती है और आज भी कायम है। सरस्वती बोर्ड ने इसमें बिलासपुर के ऊपर के कुछ क्षेत्र को छोड़ कर बाकि 159 किलोमीटर में पानी भी चलाया है जो आज भी निरन्तर करीब 150 किलोमीटर में बह रहा है। बिच बिच में कई सरस्वती की शाखाये आकर इसमें मिलती है जिनमे चौतंग, दावा नदी,पिंजौर ड्रेन,दौलतपुर ड्रेन,फतेहपुर ड्रेन,शाहबाद फीडर,बैठण नाला मारकंडा, पारा व् घगर शामिल है।

इसरो ने क्या कहा?

यह नक्शा इसरो के द्वारा सरस्वती नदी के पैलियों-चैनल को खोज कर बनाया गया है जोकि सरस्वती नदी के उसी लाइन पर है जहाँ पर सरस्वती नदी आज भी उतराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कायम है। इसी क्षेत्र से सरस्वती नदी बहती रही है यह प्रमाण इसरो, ओ.एन.जी.सी. अन्य राष्ट्रीय एजेंसियां वेद, पुराण, उपनिषद तथा धरातल पर बहती हुई सरस्वती नदी लोगों के सामने है।

आदि बद्री उदगम स्थल

आदि बद्री उत्तर भारत के हरियाणा राज्य के यमुनानगर जिले के उत्तरी भाग में स्थित बौबर इलाके में सिगलिक पहाड़ियों की तलहटी में एक वन क्षेत्र और पुरातात्विक स्थल है। इस स्थल यमुनानगर शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यमुनानगर के आसपास बहुत से धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं। ऐसे स्थानों में से एक आदि बद्री स्थान है, जो प्रसिद्ध रूप से श्री सरस्वती नदी का उदगम स्थान के नाम से भी जाना जाता है। सरस्वती नदी अब विलुप्त हो चुकी है लेकिन इस स्थान का पौराणिक व धार्मिक महत्व आज भी है तथा यह स्थान हिन्दूओं के धार्मिक स्थलों में से प्रमुख स्थान है।
इस स्थान का उल्लेख हिन्दूओं के प्रमुख ग्रंथों में भी मिलता है जैसे पद्म पुराण, महाभारत, भागवत पुराण आदि। भारतीय पुरातत्व विभाग तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) द्वारा प्रमाणित भी किया गया है कि सरस्वती नदी आज भी धरातल के नीचे प्रवाहमान् है, तथा कुरुक्षेत्र, पिहोवा, हिसार, मोहनजोदड़ो, राजस्थान होती हुई अरब सागर में विलीन होती है।

मिले कई प्रमाण

ABR – I :- इस टीले को स्थानीय रूप से सिंहबाड़ा नाम से जाना जाता है। उत्खनन द्वारा यहाँ पर दो सांस्कृतिक चरणों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिनमें क्रमशः ईंटों व पत्थरों का प्रयोग किया गया था। यहाँ से प्राप्त पात्र-परम्परा में कटोरे, बेसिन, जार, घडे, हाँडे, ढक्कन आदि प्रमुख हैं इस टीले को स्थानीय लोग ’ईंटों वाली’ के नाम से जानते हैं। इस टीले की उँचाई लगभग 60 मीटर है। उत्खनन द्वारा यहाँ पर पाँचवी-छठी सदी ईसवी के एक विशाल स्तूप के प्रमाण मिले है। यहाँ से प्राप्त पात्र-परम्परा में कटोरे, छोरे पात्र, जार व टोंटीदार पात्र प्रमुख हैं।

सरस्वती नदी का क्या है महत्त्व?

आदिबद्री में सरस्वती उद्गम स्थल पर स्थापित सरस्वती सरोवर वहाँ की सुन्दरता व पवित्रता का वर्णन करता है यहाँ पर दूर-दूर से लोग जल आचमन व पवित्र सरस्वती जल की ढुबकी लगाने के लिए आते है यहाँ पर हर साल सरस्वती महोत्सव मनाया जाता है तथा हवन कुण्ड़ों के द्वारा सरस्वती की पूजा बसन्त पंचमी के अवसर पर की जाती है। 2021 में त्रिनिदाद टोबैगो के उचायुक्त डॉ रोज्जर गोपाल व अन्य वशिष्ट अतिथि शामिल हुए थे।

यह स्थल सरस्वती की एक शाखा सोम नदी के ऊपर विराजमान है यहां पर आदिकाल से ही भगवान बद्री विशाल जी भगवान केदारनाथ जी यहां पर मिले शिवलिंग की आयु करीब 4 से 5000 वर्ष पुरानी मानी जाती है जब पुरातत्व वेदा इस क्षेत्र की खुदाई कर रहे थे तब यह प्राचीन शिवलिंग मिला था।

वह माता मंत्र देवी का मंदिर वर्षों से स्थापित है माना यह जाता है शास्त्रों के अनुसार त्रेता और द्वापर युग में भी बाबा यहां विशाल रूप में रहते थे तथा बाद में वह उत्तराखंड चले गए और यही मान्यता आम लोगों की धारणा भी है की बाबा बद्री विशाल जी वह बाबा केदारनाथ जी उत्तराखंड में जाने से पहले स्थान पर आए थे बहुत से प्रमाण की पवित्रता बताती है।

पुरातत्व विभाग द्वारा आज तक जितनी भी सरस्वती के किनारे साइट ढूंढी गई हैं वह सरस्वती सिंधु सभ्यता की होने का प्रमाण कहती हैं यह प्रमाण आदिबद्री में स्थापित म्यूजियम संध्या का प्राचीन किला. भगवानपुर की खुदाई, जोबना खेड़ा की खुदाई ,बनावटी, कुणाल, राखीगढ़ी, कालीबंगा, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा, लोथल, इस तरह से जितनी भी साइट्स हैं यह सभी सरस्वती के किनारे पर स्थापित हैं इनका डिटेल में वर्णन दिया जा रहा है।

भारतीय संस्कृति से जुड़ा है इतिहास

सरस्वती नदी किनारे स्थित बिलासपुर के गांव संधाय में राजा संध के टीले के नजदीक छह प्राचीन सिक्के, मिट्टी के बर्तन मिले है। ये सैकड़ों साल पुराने है जिससे भारतीय संस्कृति के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है। गांव संधाय निवासी किसान बलविंद्र सिंह को यह छह सिक्के मिले थे। बाद में उन्होंने यह सिक्के बोर्ड़ के उपाध्यक्ष श्री धुम्मन सिंह किरमच को पुरातत्व विभाग हरियाणा चण्डीगढ़ से पता करने के लिए की यह कौन से समय के है सौप दिए।
किसी समय में गांव संधाय के पास से ही सरस्वती नदी होकर गुजरती थी। श्री धुम्मन सिंह किरमच, उपाध्यक्ष, हरियाणा सरस्वती बोर्ड़ ने बताया कि जिस टीले के पास यह सिक्के मिले है उसकी खुदाई की प्रक्रिया जल्दी ही प्रारम्भ कराने का प्रयास बोर्ड़ द्वारा किया जाएगा।

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