जब संजय गांधी ने मारुति कंपनी में जला दिए फिल्म के प्रिंट, देवआनंद ने शुरू की पॉलिटिकल पार्टी

इमरजेंसी का खामियाजा कुछ बॉलीवुड वालों ने भी भुगता. जहां अमिताभ बच्चन ने बच्चन परिवार से करीबी का भुगता तो वहीं कई लोगों को विरोध करने का भुगतना पड़ा. जिनमें से मनमौजी किशोर कुमार भी थे.

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जब संजय गांधी ने मारुति कंपनी में जला दिए फिल्म के प्रिंट, देवआनंद ने शुरू की पॉलिटिकल पार्टी

Aanchal Pandey

  • November 12, 2017 9:20 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: इमरजेंसी का खामियाजा कुछ बॉलीवुड वालों ने भी भुगता. जहां अमिताभ बच्चन ने बच्चन परिवार से करीबी का भुगता तो वहीं कई लोगों को विरोध करने का भुगतना पड़ा. जिनमें से मनमौजी किशोर कुमार भी थे. दरअसल इमरजेंसी के वक्त कांग्रेस ने एक रैली मुंबई में रखी थी और किशोर कुमार से वहां भीड़ जुटाने के लिए कुछ गाने की फरमाइश रखी थी. किशोर कुमार ने मना कर दिया, इससे सरकार नाराज हो गई. वैसे भी इमरजेंसी में सेंसरशिप जम कर चल रही थी. किशोर कुमार के गानों को दूरदर्शन और आकाशवाणी में उस वक्त बैन कर दिया गया था. बाद में किशोर कुमार को झुकना पड़ा था.

लेकिन हर कोई नहीं झुका, कांग्रेस के तीन बार के सांसद अमृत नाहटा ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर एक फिल्म बनाई जिसका नाम था ‘किस्सा कुर्सी का’, जिसमें शबाना आजमी, उत्पल दत्त और राजकिरण आदि थे. फिल्म में इंदिरा और संजय जैसे किरदार ही नहीं उनके करीबी लोगों को किरदार भी थे, गरीबी हटाओ जैसे नारे, संजय की मारुति फैक्ट्री जैसी कई बातों को व्यंग्यात्मक तरीके से दिखाया गया. सेंसर बोर्ड ने उसे सरकार के पास भेज दिया, फिर 51 ऑब्जेक्शन लगाकर प्रोडयूसर को.

बाद में वीसी शुक्ला और संजय गांधी ने उस फिल्म के प्रिंट सेंसर बोर्ड से लेकर मारुति फैक्ट्री के गुडगांव कैम्पस में उनमें आग लगा दी. दोनों पर केस चला, दो साल की सजा भी इमरजेंसी खत्म होते ही हुई, दोनों कुछ दिन जेल में भी रहे. इमरजेंसी का खामियाजा भुगतना पड़ा गुलजार की फिल्म आंधी को भी, सरकार ने उसे रिलीज के बाद बैन कर दिया. आरोप था कि फिल्म में नेता सुचित्रा सेन के किरदार में इंदिरा गांधी और संजीव कुमार के किरदार में फिरोज गांधी की झलक मिलती है. इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी सरकार ने उसे रिलीज करवाया औऱ दूरदर्शन पर प्रीमियर भी किया.

लेकिन देवआनंद उस वक्त हीरो बन गए, जब उन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ पॉलटिकल पार्टी ही लांच कर दी, पार्टी का नाम रखा नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया. 1977 के चुनावों के लिए पार्टी को खड़ा किया गया था, लेकिन बाद में देव साहब को समझ में आ गया कि राजनीति उनके बस की बात नहीं. देवआनंद की पार्टी के सदस्यता फॉर्म में क्या बात बड़ी दिलचस्प थी, जो दूसरी पार्टियों के फॉर्म में नहीं होती, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो 

इमरजेंसी के दौरान अखबारों ने किया दिलचस्प और क्रिएटिव तरीके से विरोध

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