नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है जहां गुरुवार (20 अप्रैल) को तीसरे दिन भी इस मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ता की दलीलें सुनीं. इसके बाद अदालत ने इस मामले में खुद भी कई टिप्पणियां की. फिलहाल समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने […]
नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है जहां गुरुवार (20 अप्रैल) को तीसरे दिन भी इस मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ता की दलीलें सुनीं. इसके बाद अदालत ने इस मामले में खुद भी कई टिप्पणियां की. फिलहाल समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई अभी जारी है.
दरअसल गुरुवार (20 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि अयोध्या मामले की ही तरह समलैंगिक शादी को मान्यता देने को लेकर दर्ज़ की गई याचिका पर सुनवाई की जाएगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट में अयोध्या मामले की तर्ज पर लगातार मामले की सुनवाई की जाएगी. ये टिप्पणी सुनवाई के दौरान CJI चंद्रचूड़ ने की है जहां उनके शब्दों बताए तो उन्होंने कहा कि इस कैसे को हम अयोध्या केस की तरह सुनेंगे. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान सवाल किया था कि क्या शादी के लिए दो अलग-अलग लिंग के व्यक्तियों का होना जरूरी है.
बता दें, पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है जिसका लाइव प्रसारण कोर्ट की वेबसाइट और यूट्यूब पर आपको देखने को मिल जाएगा. इतना ही नहीं गुरुवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कई अलग-अलग और अहम टिप्पणियां भी की. उन्होंने कहा कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि एक इमोशनल रिश्ता है. 69 साल पुराने मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है क्योंकि ये रिश्ता हमेशा टिके रहने वाला है.
पुराने स्पेशल मैरिज एक्ट के दायरे का समलैंगिक शादी के लिए विस्तार करना गलत नहीं है.
अयोध्या मामले की सुनवाई की तरह इस मामले में सुनवाई की जाएगी.
गुरुवार को कोर्ट ने सुनवाई की पूरी रूपरेखा तय कर दी है जिसके आधार पर आगे की सुनवाई होगी.
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में समलैंगिक शादी की व्याख्या की जा सकती है या नहीं हम केवल इतना देखेंगे.
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम अब इस मामले को अयोध्या केस की तरह सुनेंगे.
अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने सुनवाई के दौरान जस्टिस विवियन बोस की टिप्पणी का भी जिक्र किया.
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा कि नैतिकता का यह मुद्दा 1800 के दशक में आया था.