नई दिल्ली. राजस्थान का बिश्नोई समाज अनोखा है, ऐसा लगता है इस समुदाय का जन्म ही वन्य जीवों और प्रकृति को बचाने के लिए हुआ है. सलमान खान पर जब ब्लैक बक केस में जब भी सजा की बात आती थी, सलमान के फैंस के दिल धुक-धुक करने लगते थे. वो कहते थे भी थे कि सलमान को सजा ना देकर फाइन कर दिया जाए. लेकिन उनको बिश्नोई समाज की संवेदनाओं की जानकारी नहीं है. भले ही आप बिश्नोई समाज को सलमान खान केस से ही जानें हों, लेकिन पूरी दुनिया के प्रकृति प्रेमी उन्हें खेजड़ली के उस बलिदान के लिए जानते हैं, जिसमें एक ही दिन में 363 बिश्नोइयों ने अपनी जान दे दी और वो भी निर्जीव पेड़ों की खातिर.
ये वाकया सन 1731 का है, जब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने नए महल को बनवाने के लिए लकड़ी का तलाश शुरू की. दरअसल चूना जलाने के लिए काफी लकड़ी की जरुरत थी. पता चला कि जोधपुर शहर से करीब 26 किलोमीटर की दूरी पर खेजड़ी गांव है, जो इसी नाम के पेड़ों के लिए मशहूर है. मारवाड़ का एक मंत्री गिरिधर भंडारी उस स्थान पर अपने दल के साथ आया और पेड़ों को गिराने की तैयारी करने लगा. तो वहां अमृता देवी बिश्नोई ने उन्हें रोका कि हमारे विश्नोई समाज के लिए ये पेड़ पवित्र हैं, किसी को इन्हें काटने की इजाजत नहीं है. उन लोगों ने कुछ लालच देकर उसका मुंह बंद करने की कोशिश की, लेकिन अमृता नहीं मानीं तो गिरिधर भंडारी के लोगों ने उस महिला अमृता और उसकी तीन बेटियों असु, रत्नी और भागू को मार डाला.
जंगल में आग की तरह ये खबर पूरे इलाके में फैलती चली गई, आस पास के 83 गांव बिश्नोई समाज के लोगों के थे. उन्होंने फौरन एक पंचायत बुलाई. तय हुआ कि हर पेड़ के लिए एक बिश्नोई अपना बलिदान देगा. आप यूं समझिए कि चिपको आंदोलन जो बीसवीं सदी में हुआ, उसके बीज इसी घटना में प़ड़े थे. शुरूआत की गांव के वृद्धों ने, वो पेड़ों से चिपक गए. राजा के सैनिक पेड़ काटते और वो पेड़ को नहीं छोड़ते, कई लोग इसके चलते मारे गए. इधर गिरिधर भंडारी ने आरोप लगाया कि गांव वाले जानबूझकर बूढ़ों को मरने के लिए भेज रहे हैं क्योंकि अब वो किसी काम के नहीं रहे.
इतना सुनने के बाद गांव के जवान और महिलाएं भी सामने आने लगे, बाद मे बच्चे भी. उनकी भी लाशें गिरने लगीं, तब तक गिरिधर भंडारी के लोगों के भी कलेजे कांपने लगे थे. वो सब डर गए और वापस जोधपुर लौट गए. शायद राजा को इस बारे में जानकारी ही नहीं थे, जब उसे सारा वाकया पता चला तो उसने फौरन पेड़ों को काटने का काम रोकने का आदेश दिया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, बिश्नोई समाज के 363 लोग अपनी जानें गंवा चुके थे, वो भी केवल पेड़ों को बचाने के लिए.
ये बलिदान विश्व भर के प्रकृति प्रेमियों को पढ़ाया जाता है, ना जाने कितनी फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज पूरी दुनियां में विश्नोई समाज की इस अनूठी मुहिम के लिए बन चुकी हैं. शायद बॉलीवुड के सितारे पहले से बिश्नोई समाज के बारे में जानते तो उनके इलाके में हिरण के शिकार पर नहीं जाते और सलमान खान को ये सब ना भुगतना पड़ता. गुरु जम्बेश्वर के ये अनुयायी आमतौर पर शांति प्रिय हैं. बीस और नौ, यानी 29 नियमों का पालन करने वाला इस समाज के इस बलिदान को लोगों ने भुलाया नहीं. खेजड़ली में आज भी उस जगह पर उन 363 लोगों की याद में एक स्मारक और एक मंदिर बना हुआ है.
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