नई दिल्ली: भारत आज सालों तक संघर्ष करने और वीर जवानों के बलिदान के बाद मिली आजादी के जश्न को 78 वें स्वतंत्रता दिवस के रूप में मना रहा है। देश का हर कोना आज राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे से सजा हुआ है। एक ध्वज राष्ट्र का गौरव होता है, उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक होता है।
आप यह तो जानते होंगे कि तिरंगे के रंग शौर्य, शांति और शालीनता का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि हमारे तिरंगे को स्वरूप कैसे मिला और इसके पीछे विभिन्न धर्मों की क्या भूमिका थी। दरअसल, महात्मा गांधी ने सभी धर्मों को ध्यान में रखते हुए तिरंगे का रूप तैयार किया था।
महात्मा गांधी ने अपनी किताब Young India में इसके बारे में बताया है। 13 अप्रैल, 1921 को यंग इंडिया में लिखते समय गांधी ने खुद स्पष्ट रूप से कहा था कि वह चाहते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज विभिन्न धर्मों का प्रतिनिधित्व करे। वो लिखते है “बेजवाड़ा में, मैंने श्री वेंकैया से लाल (हिंदू ) और हरे (मुस्लिम) रंग के झंडे पर चरखे वाला एक डिजाइन देने के लिए कहा। उनके समर्थन से मुझे तीन घंटे में एक झंडा मिल गया। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के समक्ष प्रस्तुति के लिए बस थोड़ी देर हो गई थी। गहन विचार करने पर, मैंने पाया कि पृष्ठभूमि में अन्य धर्मों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।” इसके बाद गांधी ने भारत के अन्य धार्मिक समुदायों के लिए बीच में एक सफेद पट्टी जोड़कर ध्वज को तैयार किया, और इस तरह तैयार हुआ हमारा तिरंगा।
साम्प्रदायिक जुड़ाव से बचने के लिए बाद में तिरंगे के रंगों को हिंदू, मुस्लिम से बदलकर नए अर्थ से जोड़ दिया गया।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। बीच में अशोक चक्र को प्रदर्शित करने का उद्देश्य यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
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