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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में केरल सरकार, चीफ जस्टिस बोले- मंदिर प्राइवेट नहीं सार्वजनिक संपत्ति हैं

नई दिल्ली. केरल में भगवान अयप्पा के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है इसलिए मंदिर प्राइवेट संपत्ति नहीं है बल्कि सावर्जनिक संपत्ति है. मिश्रा ने कहा है कि ऐसे में सावर्जनिक संपत्ति में अगर पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी प्रवेश की इजाजत मिलनी चाहिए. एक बार मंदिर खुलता है तो उसमें कोई भी जा सकता है.

संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सभी नागरिक किसी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है जिसका मतलब ये है कि एक महिला होने के नाते आपका प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है बल्कि ये संवैधानिक अधिकार है.

इस बीच केरल सरकार ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन कर दिया है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने चौथी बार स्टैंड बदला है. जस्टिस रोहिंगटन ने इस पर टिप्पणी की- केरल वक्त के साथ बदल रहा है. गौरतलब है कि 2015 में केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था लेकिन 2017 में उसने अपना रुख बदल दिया था.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 10 साल से लेकर 50 साल की औरतों के मंदिर में प्रवेश पर रोक इसलिए है क्योंकि वो मासिक धर्म में शुद्धता नहीं रख पातीं. इस पर संविधान पीठ ने सवाल उठाया कि क्या ये उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन या हनन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इन पांच बिन्दुओं पर सुनवाई करके अपना फैसला देगी.

सबरीमाला मंदिर पर कोर्ट का फैसला आने तक महिलाओं को प्रवेश नहीं: केरल सरकार

पहला- क्या सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लैंगिक भेदभाव है. दूसरा- क्या ऐसा करना धार्मिक मान्यताओं का अटूट हिस्सा है. तीसरा- क्या किसी धार्मिक स्थल पर ऐसा किया जा सकता है. चौथा- मंदिर के नियमों में बदलाव की जरूरत है क्या. पांचवां- क्या सबरीमाला मंदिर का यह नियम संविधान के अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है.

सबरीमाला मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को भेजा गया मामला

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Aanchal Pandey

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