नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में जब से चार जजों ने पीसी की तब से ही सोशल मीडिया पर भी जमकर बवाल कटा हुआ है, हर कोई अपनी मर्जी से जजों के बारे में, सरकार के रोल के बारे में जो मन आए लिख रहा है, शेयर कर रहा है. जजों के कोड ऑफ कंडक्ट की एक लिस्ट भी ऐसे ही व्हाट्सएप्प ग्रुप्स और फेसबुक-ट्विटर पर वायरल हो रही थी. जिसको अपनी फेसबुक पोस्ट पर चिपका दिया है संघ के अखिल भारतीय स्तर के एक नेता जे नंद कुमार ने. जो संघ से जुड़े बौद्धिक क्रियाकलापों के संगठन प्रज्ञा प्रवाह का दायित्व संभालते हैं. उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम के पीछे राजनैतिक षडयंत्र होने की आशंका तो व्यक्त की ही है, इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए इसे अक्षम्य भी बताया है.
जे नंदकुमार केरल से ताल्लुक रखते हैं और अकसर राजधानी दिल्ली के कार्यक्रमों में नजर आते हैं. उन्होंने 13 जनवरी की अपनी फेसबुक पोस्ट मलयालम में लिखी है. उसमें जो कोड ऑफ कंडक्ट की फोटो उन्होंने लगाई है, उसमें लिखा है कि, ना तो जज किसी राजनैतिक विषय पर और ना ही किसी पेंडिंग केस को लेकर किसी पब्लिक डिबेट में हिस्सा ले सकते हैं और ना ही किसी मीडिया से बात कर सकते हैं. इसी को आधार बनाकर नंद कुमार ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की टाइमिंग और छिपे उद्देश्य को लेकर सवाल उठाए हैं. इसके पीछे राजनैतिक षडयंत्र होने के आरोप लगाए हैं.
जे नंदकुमार ने इस पोस्ट में ये साफ नहीं किया है कि ये उनका अपना मत है या संघ का दृष्टिकोण है. क्योंकि उनको मीडिया में किसी मुद्दे पर संघ की तरफ से विचार रखने का अधिकार नहीं है और संघ की तरफ से इस मुद्दे पर कोई ऑफीशियल वर्जन आया भी नहीं है, जो कि प्रचार प्रमुख डॉ, मनमोहन वैद्या की तरफ से ही आता है. नंद कुमार ने इंडिय़न एक्सप्रेस से बात करते हुए ये भी कहा कि कैसे लोया के सवाल को जस्टिस गोगोई ने सुना तक नहीं लेकिन एक राजनीतिक पार्टी ने उसे मुद्दा बना दिया. फिर डी राजा का जज से मिलना भी राजनैतिक षडयंत्र की तरफ इशारा करता है. वो अपनी पोस्ट में भी लिखते हैं कि उसको पहचानने की जरूरत है कि पानी में जहर किसने मिलाया.
जे नंद कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए ये भी कहा कि लोगों के दिलों में न्यायपालिका के प्रति विश्वास पर हमला करने का ये जजों का प्रयास अक्षम्य है. उन्होंने कहा, ‘’I was deeply pained by the judges’ move. What they have done is unforgivable. They have tried to attack the uncompromising faith of the people in the judicial system by washing dirty political laundry in public. For whatever reason, they should not have done it. Now what will happen? Anyone who has differences with senior judges can come out in public? This can take place in High Courts too. What will you do to protect the institution?” साथ ही ये भी तर्क रखा कि जज अगर सभी समान हैं, तो फिर केसेज मांगते वक्त वो सीनियॉरिटी क्यों याद दिला रहे हैं? संघ की तरफ से इस मुद्दे पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं है.
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