हाल में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानी आरएसएस का तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित हुआ. 17 से 19 सितम्बर तक दिल्ली में हुई ‘भारत व्याख्यान माला’ में मोहन भागवत समेत कई लोगों ने मुस्लमानों से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी राय रखीं. जानिए इन व्याख्यानों में मुसलमानों के मतलब का क्या क्या है.
नई दिल्ली. जाहिर सी बात है ये सबसे बड़ा मुद्दा है, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों में मुसलमान काफी कम हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के भले ही इंद्रेश कुमार संरक्षक हों, लेकिन संघ की तरफ से उसको आनुषांगिक संगठन नहीं कहा जाता। बीजेपी में जरूर शाहनवाज, मुख्तार अब्बास नकवी, एमजे अकबर, नजमा हेपतुल्ला जैसे कई मुस्लिम चेहरे जुड़े रहे हैं, लेकिन संघ की अपनी कार्यकारिणी में कोई मुस्लिम चेहरा नहीं है। राम मंदिर मुद्दा भी है, जिसके चलते संघ पर मुसलमानों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। पिछले कई भाषणों में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ये लाइन ली कि भारत भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है, उसके अलग अलग मायने निकाले गए हैं, ऐसे में भविष्य का 17 से 19 सितम्बर तक दिल्ली में हुई ‘भारत व्याख्यान माला’ में संघ प्रमुख ने मुसलमानों से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी राय एकदम स्पष्ट रखी है। उससे सहमत होना या ना होना या उसके कई मायने निकालना अब लोगों के विवेक पर होगा।
हर भारतवासी हिंदू है, इसमें पहले भी मोहन भागवत ने समझाया है कि चूंकि ब्रिटेन का नागरिक ब्रिटिश कहलाता है, फ्रांस का फ्रेंच, अमेरिका का अमेरिकी, उसी तर्ज पर उन्होंने हिंदुस्तान के लोगों को हिंदू कहा है। इसके लिए हालांकि दो शब्द पहले से प्रचलित हैं इंडियन और भारतीय। लेकिन मोहन भागवत के मुताबिक, चूंकि जब इस देश में रहने वाले लोगों को हिंदू और देश को हिंदुस्तान कहा गया तब भी कई पंथ रहे होंगे, लेकिन बाहरी लोगों के लिए वो सब हिंदू ही थे, आज भी संघ के मुताबिक ऐसा ही है। इस विचार को इस व्याख्यान माला में भागवत ने थोड़ा आगे बढ़ाया और कहा आमतौर पर धर्म को अंग्रेजी के शब्द रिलीजन का ट्रांसलेशन माना जाता है, जो है नहीं। इसके लिए उन्होंने हिंदू धर्म का सनातन होना और गांधीजी का भी एक बयान उन्होंने वहां बोला- कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिन्दुत्व है। यानी उनका कहना था कि मुसलमान हिंदू शब्द को एक संकीर्ण दायरे में ना रखें बल्कि इसे राष्ट्रीय और मातृभूमि के गौरव से जोड़कर देखें।
इसी दिशा में मोहन भागवत से जब पूछा गया कि अल्पसंख्यकों को जोड़ने के विषय में संघ क्या सोचता है, Bunch of Thoughts में मुस्लिम समाज को शत्रु के रूप में संबोधित किया गया है, क्या संघ इससे सहमत है, मुस्लिम समाज में संघ को लेकर जो भय है वह उसे कैसे दूर करेगा? तब संघ प्रमुख का जो जवाब था, उस पर लोगों को आपत्ति भी हो सकती है और इसे सहृदयता भी माना जा सकता है। भागवत के मुताबिक, ’’अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा अपने देश में स्पष्ट नही है, जहां तक रिलिजन, भाषा की संख्या का सवाल है, अपने देश में वो पहले से ही अनेक प्रकार की है, अंग्रेजों के आने से पहले हमने कभी अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल नही किया। हम एक देश की संतान है, भाई भाई जैसे रहें, संघ अल्पसंख्यक जैसा नही मानता, सभी अपने हैं यदि दूर गये हैं तो उन्हें जोड़ना है’’। थोड़ा और व्यवहारिक होते हुए भागवत ने पूछ डाला कि अगर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, तो कश्मीर में कौन अल्पसंख्यक है और क्या उन्हें अल्पसंख्यक जैसी कोई सुविधाएं मिल रही हैं?
मुसलमानों को संघ से भय को लेकर भी भागवत ने एक सवाल का जवाब दिया और कहा, ‘’हमारा आह्वान राष्ट्रीयता का है, मातृभूमि की भक्ति का है उसके प्रति गौरव का है, यही हिंदुत्व है, बिना कारण मन में भय क्यों रखना, संघ के कार्यक्रम में आइये, जो जो आते हैं उनके विचार बदल जाते हैं, हमारी बात गलत है या आपके विरोध से प्रेरित है तो हमें बताइये। रही बात भय की तो मेरा दावा है कि जो संघ शाखा किसी मुस्लिम बस्ती के आसपास चल रही है, तो वहां ज्यादा सुरक्षित स्थिति है’’।
हालांकि भागवत ने ये भी मैसेज दिया कि ये जरूरी नहीं कि वो हर बात में मुस्लिमों की हां मिलाएं, उन्होंने साफ कहा कि सही बात पसंद नही आयेगी तो भी हम बोलेंगे, परंपरा से, राष्ट्रीयता से, मातृभूमि से, पूर्वजों से हम हिंदू हैं यह हमारा कहना है, और यह हम कहते रहेंगे, लेकिन इसका अर्थ यह नही कि हम आपको अपना नही मानते, जिस आधार पर हम आपको अपना माने वह मातृभूमि, पूर्वज और राष्ट्रीयता है।
इस व्याख्यानमाला में गुरु गोलवलकर की लिखी किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ पर भी सवाल हुआ कि उसमें मुसलमानों को लेकर शत्रुता के भाव क्यों हैं? मोहन भागवत ने उस मुद्दे पर भी बोलने से गुरेज नहीं किया और कहा, ‘’जो बातें बोली जाती हैं वो परिस्थिति विशेष, प्रसंग विशेष के संदर्भ में बोली जाती है, वो शाश्वत नही होती। गुरु जी के जो शाश्वत विचार हैं वह Guru Ji: Vision & Mission’ में तात्कालिक संदर्भ में आने वाली बातें हटाकर उनके सदाकाल के उपयुक्त विचार रखे हैं’’। इसलिए हर कोई बंच ऑफ थॉट्स ही क्यों पढ़े, ये दूसरी किताब क्यों ना पढ़े जहां गुरु गोलवलकर समग्र रूप में हैं। हालांकि मोहन भागवत ने ये साफ किया कि आरएसएस एक बंद संगठन नहीं है, जो केवल अपने पुराने विचारों पर अड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि, ‘’संघ बंद संगठन नही है, समय बदलता है, संगठन की स्थिति बदलती है तो हमारा सोचना भी बदलता है और इसकी आज्ञा हमें मिलती रही है।‘’
ये वाकई में बड़ा मैसेज था कि संघ अपने विचारों में बदलाव के लिए तैयार है और बदलते समय में परिस्थितियों के हिसाब से वो बदल रहा है। लेकिन कुछ मामलों में वो मीडिया से भी नाराज है अपनी एकतरफा छवि दिखाने के लिए। जब गाय को लेकर मॉब लिचिंग का मसला उठा तो मोहन भागवत ने साफ किया कि गाय क्या किसी भी प्रश्न पर हत्या होती है, तो कानूनन कार्यवाही होनी चाहिए अपराधियों के खिलाफ। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि इसका एक दूसरा पक्ष भी है, गौ तस्करी। मोहन भागवत ने कहा, ‘’गो रक्षा तो होनी चाहिए, लेकिन ये केवल कानून से नहीं हो सकती। गाय को खुला छोड़ देगें तो कैसे रक्षा होगी, गाय रोजमर्रा के जीवन में कितनी उपयोगी है, उसको तकनीक का इस्तेमाल करके आम लोगों तक पहुंचाने का काम कई लोग कर रहे हैं, कई लोग अच्छी गोशालएं चला रहे हैं। उनमें से कई मुसलमान भी हैं। ऐसे लोगों को लिंचिंग से नहीं जोड़ना चाहिए। लिंचिग पर आवाज उठती है, गो तस्करों पर बात नहीं होती, ये दोगली पृवत्ति छोडनी चाहिए। उपद्रवी तत्वों से गोरक्षकों को नहीं जोड़ना चाहिए’’।
धर्मांतरण या कनवर्जन को लेकर भी मोहन भागवत ने अपनी और संघ की सोच सबके सामने रखी। इसको लेकर भागवत ने कोई वाकया बताया और किसी व्यक्ति के सवाल जवाब को ही दोहरा दिया। सवाल था कि सभी मत पंथ समान हैं तो संघ कनवर्जन का विरोध क्यों करता है? तो जवाब था कि अगर सभी मत पंथ समान हैं, तो कनवर्जन ही क्यों हो? जो जिसमें है वो उसमें पूर्णता प्राप्त करें, अगर आप फिर भी उसे इधर ला रहे हो तो आपका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति नहीं है। भगवान मार्केट में नहीं मिलता। इतिहास पढ़िए देश विदेश का क्यों होता आया है कनवर्जन, तो आपकी समझ आ जाएगा क्यों होता रहा है कनवर्जन। भागवत ने महाराष्ट्र के एक चितपावन ब्राह्मण की भी कहानी सुनाई कि कैसे वो ईसाई बन गए, लेकिन उनकी पत्नी नहीं बनीं। मगर वो छल बल से नहीं बने थे, बल्कि अपने मन से बने, इसका हिंदू धर्म में विरोध नहीं। लेकिन ऐसा नहीं होता है, पैसे देंगे चर्च में आओ, ऐसा होता है, ऐसे कनवर्जन का विरोध होना चाहिए
ज्यादा बच्चे पैदा करने को लेकर मुसलमानों पर सवाल उठते रहे हैं, संजय गाधी ने भी नसबंदी कार्यक्रम में मुस्लिम इलाकों को ही निशाना बनाया था। हिदूवादी नेता भी आव्हान करते रहते हैं कि हिंदुओ तुम भी ज्यादा बच्चे पैदा करो। इसको लेकर मोहन भागवत ने अपनी बात रखी और रहा लोग बढ़ेंगे तो ज्यादा संसाधन, भोजन चाहिए होगा, मकान चाहिए होंगे। एक दिन भारत बूढ़ों का देश बन जाएगा, जैसा चीन बन गया है। ये एक मुद्दा है, लेकिन दूसरा पहलू डेमोग्राफिक बेलेंस भी है, जो रहना ही चाहिए। जहां बच्चे पल नहीं पा रहे हैं, वहां बच्चे हो रहे हैं, वहां पहले कदम उठाए जाने चाहिए। मैं एक साल सरकारी नौकरी में था, फैमिली प्लानिंग में हमारी भी ड्यूटी लगाई गई थी, ग्रामीणों से मिला। कानून बनाने से नहीं होगा, लोगों का मन बनाना होगा, इससे सबको फायदा होगा। हिंदुओं का जन्मदर घट रही है इसके लिए नीति नहीं सोच जिम्मेदार है। इसके लिए वैयक्तिक प्रशिक्षण होना चाहिए, साथ ही अगर विदेशी घुसपैठियों का मुद्दा है तो उस पर लगाम लगनी चाहिए।
हिंदू और मुस्लिमों के बीच एक और संवेदनशील मुद्दा रहा है वो है राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का। इस पर मोहन भागवत ने एकदम साफ कर दिया कि उस मुद्दे पर पीछे हटने का कोई सवाल नहीं। जब तय किया जा चुका है कि वहां पहले मंदिर था, उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, तो उस जगह पर शीघ्रातिशीघ्र राममंदिर बनना ही चाहिए। बाकी शाहबानों की तरह अध्यादेश लाना है कि नहीं, ये काम सरकार को सोचना है। उनकी इच्छा यही है कि वहां राम मंदिर बनना चाहिए।
समान नागरिक संहिता पर भी मोहन भागवत ने अपने विचार रखे कि संविधान निर्माताओं ने भी इसे जबरन थोपने के बजाय धीरे धीरे लागू करने की बात की थी। समान नागरिक संहिता बनाने के लिए हर पंथ के लोगों को थोड़ा थोड़ा बदलाव सहने होंगे, आदिवासियों के भी कई कानून हैं, लेकिन इसको थोपा नहीं जा सकता, इसके लिए जनमानस बनाकर धीरे धीरे लाया जा सकता है। बिलकुल ऐसे ही विचार संघ प्रमुख ने त्यौहारों पर पर्यावरण प्रेमियों के ऐतराज और कैम्पेन के बारे में कहे, उनके मुताबिक ये ठीक है अब पहले जैसे पटाखे नहीं बनते, कई तरह के कैमिकल इस्तेमाल होने लगे हैं, अब वो प्रदूषण फैलाते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप अपनी इच्छा दूसरों पर थोपो, जनजागृति करो, जनमानस तैयार करो, वो खुद रुकेंगे। ये काम कानून बनाकर होगा और ये भी ध्यान रखें कि निशाने पर खाली हिंदू त्यौहार ना रहें।
मुसलमानों को लेकर अक्सर ये सुनने को मिलता है कि पाकिस्तान चले जाए या पाकिस्तान भिजवा देंगे, इसको लेकर मोहन भागवत ने एक लाइन ऐसी बोली कि जिसको हर मुसलमान को ही नहीं हर हिंदू को भी समझनी चाहिए, भागवत ने कहा, ‘’ हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है. हिंदू राष्ट्र है इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं होता ऐसा बिलकुल नहीं है। जिस दिन ये कहा जाएगा कि यहां मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन वो हिंदुत्व नहीं होगा’’। मोहन भागवत ने बताया कि हम वसुधैव कुटुंबकम् में यकीन रखते हैं, जहां सभी धर्म और पंत का स्थान है।
हिंदुत्व को उन्होंने थोड़ा और विस्तारित रूप देते हुए कहा, हिंदुत्व का विचार संघ ने नहीं खोजा, यह पहले से चलता आया है. दुनिया सुख की खोज बाहर कर रही थी, हमने अपने अंदर की। वहीं से हमारे पूर्वजों को अस्तित्व की एकता का मंत्र मिला। उन्होंने डा, अम्बेडकर को लेकर एक घटना याद की, अंबेडकर ने संसद में हिंदू कोड बिल की चर्चा करने के दौरान कहा था कि आप कोड को धर्म समझ रहे हो, मैं कोड को बदल रहा हूं, मूल्य वही रहेंगे। तब से लेकर आज तक हमारे देवी-देवता बदल गए हैं। हिंदुत्व कभी खाने-पीने के व्यवहार में जकड़ने वाली, खास पूजा, भाषा, प्रांत, प्रदेश पर जोर देने वाली व्यवस्था नहीं रही है। हिंदुत्व भारत में पैदा हुआ, लेकिन बाद में दुनिया भर में फैला. हिंदुत्व मानता है कि सारे मत सही हैं। विविधताएं स्वीकार्य होंगी, उनका सम्मान होगा, क्योंकि हम भारत के पुत्र हैं।
सीधी सी बात है कि पहली बार संघ प्रमुख ने अपनी हिंदुत्व की सोच और मुसलमानों से जुड़े हर मुद्दे और आरोप पर अपनी राय साफ तौर पर रखी है। ऐसे में मुस्लिम समाज में भी बिना पॉलटिकल एंगल लिए इन बातों पर चर्चा होनी चाहिए कि क्या वो इससे सहमत हैं या फिर कुछ बातों में और स्पष्टीकरण चाहते हैं। ये अलग बात है कि संघ की ये पहल 2019 के चुनाव से भी जोड़कर मुस्लिम वोटर्स को रिझाने की कोशिश से भी जोड़ी जा सकती है।
RSS चीफ मोहन भागवत बोले- राम मंदिर मामले पर जल्द हो न्याय वरना अयोध्या में होगा महाभारत
यूपी: कांग्रेस को CM योगी आदित्यनाथ की नसीहत-पीएम नरेंद्र मोदी से सीखो राष्ट्रभक्ति