नई दिल्लीः RSS Executive Meeting Mumbai: अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिए हैं कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है, जैसा कि पहले कहा जा रहा था कि 29 से रोजाना सुनवाई हो सकती है, तो ऐसे में बीजेपी और संघ दोनों के लिए मुश्किल हो गई है. चूंकि जनवरी में तो ये तय होगा कि सुनवाई रोजाना हो कि
नहीं, या फिर कहीं तारीखें आगे ना टाल दी जाएं, ऐसे में सरकार अध्यादेश जैसा विकल्प भी नहीं ला सकती. क्योंकि बीजेपी का बयान आ चुका है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे, ऐसे में दिक्कत ये आ गई है कि राम मंदिर मुद्दे को लेकर इस चुनाव में वो अपने समर्थकों से कोई भी ठोस बात नहीं कर सकेंगे और इसका सीधा फायदा विपक्ष लेगा, ये कहकर कि यह लोग राम मंदिर के मामले में भी कुछ नहीं कर पाए. ऐसे में 30 अक्टूबर से मुंबई में शुरू हो रही आरएसएस की कार्यकारी मंडल की मीटिंग (30, 31 अक्टूबर और 1 नवंबर) में काफी कुछ तय होने वाला है.
कार्यकारी मंडल की मीटिंग में संघ के सारे राष्ट्रीय पदाधिकारी रहेंगे, यानी संघ प्रमुख मोहन भागवत से लेकर, भैयाजी जोशी, डा.कृष्णगोपाल, दत्तात्रेय हॉसबोले, मनमोहन वैद्य से लेकर अरुण कुमार तक. साथ में प्रांतीय स्तर के सबसे वरिष्ठ पदाधिकारी भी रहेंगे, जैसे सारे प्रांतीय संघचालक, सारे प्रांत प्रचारक और सारे प्रांतीय सरकार्यवाह. इसके अलावा कई आनुषांगिक संगठनों के राष्ट्रीय संगठन मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहेंगे. बीजेपी से अमित शाह के साथ-साथ राम माधव और राम लाल का नाम सामने आ रहा है. हालांकि दीवाली पर प्रांत प्रचारकों की एक अलग से मीटिंग होती है.
इस मीटिंग में हालांकि पहले से तय माना जा रहा था कि चूंकि सुनवाई 29 अक्टूबर को राम मंदिर मुद्दे की तारीख सुप्रीम कोर्ट में लगी है, तो चर्चा होनी ही है. लेकिन जिस तरह कोर्ट ने उसे जनवरी तक टाल दिया है, उससे अब ये बिलकुल तय हो गया है. इसकी वजह भी है, सितम्बर में बाकायदा संघ के प्रचार प्रमुख की तरफ से संघ का स्टेटमेंट जारी हुआ था, जिसमें कहा गया था कि 29 तारीख से केस की सुनवाई हो रही है, हम उसका स्वागत करते हैं. उसके बाद हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में बयान दिया कि वहां राम मंदिर ही बनना चाहिए, सरकार को इसके लिए कानून बनाना चाहिए.
जाहिर है बीजेपी को भी इस मुद्दे के गरम होने से आगामी चुनावों में फायदा ही होना था, लेकिन अब लटकने से दिक्कत हो सकती है. ऐसे में बीजेपी पहले ही कह चुकी है कि वह पहले कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी तभी अध्यादेश जैसी बातों के बारे में फैसला लेगी. यानी अब बीजेपी जनवरी तक कुछ नहीं कर सकती. ऐसे में कैसे बिना अध्यादेश लाए, बिना कोर्ट का फैसला हुए भी राम मंदिर के समर्थकों की भीड़ में जोश जगाए रखा जा सकता है, अध्यादेश लाने की क्या संभावना है जैसे मुद्दों पर आरएसएस की इस मीटिंग में फैसला ल।या जाएगा. इस लिहाज से मुंबई की ये तीन दिवसीय (30, 31 अक्टूबर और 1 नवंबर) मीटिंग काफी अहम मानी जा रही है.
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