नई दिल्ली। आज पूरा देश 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। भारत की महामहिम राष्ट्रपति ने लाल किले पर तिरंगा फहराकर कार्यक्रम की शुरुआत की थी।इसी झंडे के नीचे भारत की सेनाओं की टुकड़ियां अपने सुप्रीम कमांडर को सलामी भी देती हैं। तिरंगा सिर्फ एक ध्वज नहीं है बल्कि एक जज्बा है जो हर भारतीय केदिल में बसता है ।
राष्ट्रीय ध्वज देश की पहचान और गौरव है। बता दें , दुनिया के हर देश के पास अपना ध्वज होता है और यह उस देश की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। भारत की बात करें तो आजादी मिलने के कुछ दिन पहले ही तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और तारीख थी 22 जुलाई, 1947 । इसी दिन भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया था।
26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ तो इसके साथ ही तिरंगा भी भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना दिया गया था। तिरंगा हर भारतीय की आन-बान-शान है और उनके दिल में बसता है। इसके नाम से ही पता चलता है, इसमें तीन रंग है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से में केसरिया पट्टी जबकि सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होती है। बीच में सफेद रंग की पट्टी में नीले रंग का चक्र भी बना होता है। बता दें , यह चक्र अशोक स्तंभ में बने चक्र से लिया गया है। इसमें कुल 24 तीलियां होती है।
ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 तक होता है। इसे आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने बनाया गया था। लेकिन आज हम तिरंगे को जिस तरह से देख रहे हैं , वो शुरुआत में ऐसा नहीं था। ये कई बदलावों से गुजरते हुए इसका वर्तमान स्वरूप तैयार हुआ है और इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है।
1. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का पहला स्वरूप स्वदेशी आंदोलन में अपनाया गया था। बता दें , पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 में पारसी बगान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (कोलकाता) में ही फहराया गया था। यह ध्वज तीन रंगे का था, जिसमें हरे, पीले और लाल रंग की पंट्टियां हुआ करती थीं।
इन पट्टियों में कुछ प्रतीक दर्शाएं गए थे। हरे रंग की पट्टी में आठ कलम के फूल थे , लाल रंग की पट्टी में चांद और सूरज और बीच में पीले रंग की पट्टी में देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम्’ लिखा हुआ था।
2. मैडम भीखाजी कामा द्वारा साल 1907 में पेरिस में भारत के कुछ क्रांतिकारियों की मौजूदगी में फहराए गए ध्वज को दूसरा राष्ट्रीय ध्वज माना जाता है। यह भी पहले ध्वज की ही तरह था और सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि का प्रतीक थे।नीचे की पट्टी का रंग गहरा हरा था जिसमें की सूरज और चांद अंकित किए हुए थे।
3 .साल 1917 के होम रूल आंदोलन की आड़ में तीसरे राष्ट्रीय ध्वज को रूप दिया गया था। इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां हुआ करती थीं। जिसके अंदर सप्तऋषि के सात सितारे मौजूद थे। तो वही बांयी और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक भी मौजूद था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी हुआ करता था।
4 .बता दें , साल 1921 में विजयवाड़ा में हुए भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में एक झंडे का इस्तेमाल किया गया था। जिसे चौथा राष्ट्रीय ध्वज कहा गया था। तीन रंगों की पट्टियों में गांधीजी के चरखें के प्रतीक को दर्शाया गया थाऔर इस झंडे में तीन रंग- सफेग रंग के अलावा लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है , वो इसमें शामिल था।
5. साल 1931 में अपनाया गया राष्ट्रीय ध्वज हमारे आज के राष्ट्रीय ध्वज के स्वरूप के बहुत करीब हुआ करता था। इस झंडे में तीन रंग- केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियां मौजूद थी। सफेद पट्टी के बीचों-बीच गांधी जी के चरखा का प्रतीक भी बनाया गया था।
6. राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की झंडा समिति की तरफ से लिया गया था। उस वक़्त इस समिति के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे।
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