राजेंद्र प्रसाद के लिए उनका कर्तव्य ही सबसे पहले आता था. इसी वजह से उन्होंने अपनी बहन के दाह संस्कार में शामिल होने से पहले अपना कर्तव्य निभाना जरूरी समझा. भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गए. गणतंत्र दिवस परेड
नई दिल्ली. आज देश अपना 69वां गणतंत्र दिवस बड़े धूमधाम से मना रहा है. इस मौके पर दिल्ली के राजपथ पर देश भर से आई झाकियां निकाली जा रही है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस परेड को सलामी दे रहे हैं. लेकिन आज हम गणतंत्र दिवस परेड से जुड़ी ऐसी मार्मिक घटना के बारे में बताएंगे, जिसे जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी. घटना 1960 की है. जब देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अपनी बड़ी बहन के शव को घर पर छोड़कर परेड की सलामी लेने गए थे. बता दें कि 25 जनवरी 1960 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया था.
राजेंद्र प्रसाद अपनी सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते है. इस कर्तव्यनिष्ठा का सहीं परिचय राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1960 को दिया जब उन्होंने अपनी मां समान बड़ी बहन के शव को छोडक़र गणतंत्र दिवस की परेड़ की सलामी लेने पहुंच गए थे. 25 जनवरी की दोपहर को राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी का निधन हो गया था. अचानक हुई अपनी बहन की मौत से वे बहुत दुखी थे.
बहन की मृत्यु से राजेंद्र प्रसाद गहरे शोक में डूब हुए थे. अपनी सबसे प्यारी बहन के गुजर जाने से उन्हें इतना सदमा पहुंचा कि वे बेसुध होकर पूरी रात बहन के शव के पास बैठे रहे. रात के आखिरी चरण में घर के सदस्य ने उन्हें याद दिलाया कि सुबह 26 जनवरी है और आपको देश का राष्ट्रपति होने के नाते गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना है. ये सुनकर राजेंद्र प्रसाद की चेतना जागृत हो गई और पल भर में सार्वजनिक कर्तव्य ने निजी दुख को ढंक लिया. कुछ ही घंटों के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद सुबह सलामी की रस्म के लिए परेड के सामने थे. सलामी की रस्म पूरी करने के बाद वे घर लौटे और बहन का अंतिम संस्कार किया.