आर्टिकल-370 हटाना संवैधानिक तौर पर सही… सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के पक्ष में सुनाया फैसला

नई दिल्ली: आर्टिकल-370 की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज (11 दिसंबर) ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने का केंद्र सरकार का फैसला संविधान के दायरे में था. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाना उचित नहीं है. जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. वहां से आर्टिकल-370 को हटाए जाने का फैसला सही था. राष्ट्रपति के पास 370 पर फैसला लेने का अधिकार है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर केंद्र सरकार के फैसले से किसी भी तरह की मुश्किल खड़ी हो रही हो, तब ही उसके चुनौती दी जा सकती है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आर्टिकल 356 लागू होने के बाद केंद्र सिर्फ संसद के द्वारा कानून नहीं बना सकता है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा.

फैसले में 3 जजों का जजमेंट

सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि इस फैसले में तीन जजों के जजमेंट शामिल है. एक फैसला चीफ जस्टिस, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत का है. वहीं, दूसरा फैसला जस्टिस कौल का है. जबकि जस्टिस खन्ना दोनों फैसलों से सहमत हैं.

केंद्र ने हटाया था आर्टिकल 370

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म कर दिया था. इसके साथ ही राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. एक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख बना था.

खिलाफ में दायर हुईं 23 याचिकाएं

मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 याचिकाएं दाखिल हुई थीं. इस दौरान पांच जजों की बेंच ने सभी 23 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की. सर्वोच्च न्यायालय में लगातार 16 दिन तक सुनवाई चलती रही, जो 5 सितंबर को खत्म हुई. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. फिर आज (11 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के 96 दिन बाद इस मामले पर अपना फैसला सुनाया है.

आर्टिकल-370 के पक्ष और विपक्ष में क्या बड़े तर्क दिए गए…

तर्क नंबर-1

याचिकाकर्ता- राष्ट्रपति शासन राज्य में लोकतांत्रिक और संवैधानिक सरकार को बनाने के लिए लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल सरकार संविधान बदलने के लिए नहीं कर सकती है.

सरकार- शासन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए संविधान और कानून के आधार पर ही राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. इस दौरान संसद के दोनों सदनों में आर्टिकल 356 के जरिए प्रस्ताव पास हुए थे.

तर्क नंबर- 2

याचिकाकर्ता- जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2018 से लेकर अक्टूबर 2019 तक राष्ट्रपति शासन लागू था. इस दौरान सारे फैसले राज्यपाल ले रहे थे. राज्य सिर्फ राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं, जो आपातकाली स्थिति में चुनी हुई सरकार का स्थान लेते हैं. केंद्र द्वारा आर्टिकल 370 को लेकर जो फैसले लिए गए उसे जम्मू-कश्मीर की जनता और वहां की चुनी हुई सरकार का समर्थन नहीं प्राप्त था. ऐसे में विधानसभा की बिना सिफारिश के ये कानून नहीं बन सकते हैं.

सरकार- कानून को बनाए जाने के समय राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था. जिस वजह से संसद के पास राज्य के विधानमंडल की शक्तियां थीं. अनुच्छेद 356 (B) के अनुसार संसद ने अपनी कानूनी शक्तियों का इस्तेमाल करके ही आर्टिकल 370 में बदलाव किया है.

तर्क नंबर-3

याचिकाकर्ता- जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटना आर्टिकल-3 का उल्लंघन है और ऐसा करना संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है.

सरकार- आर्टिकल-3 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश दोनों के ही संदर्भ में है. ऐसे में केंद्र एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर सकता है. यह फैसला घाटी वाले क्षेत्र से आंतकवाद और अलगाववाद को खत्म करने के लिए किया गया था. केंद्र ने ऐसा करके वहां पर शांति को बहाल करने और पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश की है.

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