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पारसी थे रतन टाटा फिर क्यों हिंदू रीति-रिवाज से होगा उनका अंतिम संस्कार, जानिए वजह

पारसी थे रतन टाटा फिर क्यों हिंदू रीति-रिवाज से होगा उनका अंतिम संस्कार, जानिए वजह

नई दिल्ली: अंतिम संस्कार के नियम पारसी समुदाय में काफी अलग है। हजारों साल पहले पारसी समुदाय पर्शिया (ईरान) से भारत आए थे। पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही उन्हें दफनाया जाता है। पारसी धर्म में पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, मौत के बाद शव को वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। आज शाम 4 बजे राजकीय सम्मान के साथ देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का अंतिम संस्कार थ किया जाएगा। उससे पहले उनका पार्थिव शरीर नरीमन प्लाइंट के NCPA लॉन में सुबह 10 बजे अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।

ऐसे होता है पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार

जानकारी के अनुसार अंतिम संस्कार के नियम पारसी समुदाय में काफी अलग है। अंतिम संस्कार की परंपरा पारसियों समाज में 3 हजार साल पुरानी हैं। पर्शिया (ईरान) से हजारों साल पहले भारत आए पारसी समुदाय में न तो शव को दफनाया जाता है और न ही शव को जलाया जाता है। शव को पारसी धर्म में मौत के बाद पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहा जाता है, उस जगह गिद्धों को खाने के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है। पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा गिद्धों का शवों को खाना है। परंतु हिंदू रीति-रिवाजों से ही रतन टाटा का अंतिम संस्कार किया जाएगा।

इससे पहले टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का सितंबर 2022 में अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति रिवाजों से किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में कोरोना महामारी के समय बदलाव हुए थे। पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति रिवाजों पर उस दौरान रोक लगा दी गई थी।

कैसे किया जाता है अंतिम संस्कार?

आबादी क्षेत्र से दूर बने दखमा यानी टावर ऑफ साइलेंस में पारसी समुदाय के व्यक्ति की मौत के बाद शव को आबादी क्षेत्र से दूर ले जाया जाता है। कई जगह यह कोई छोटी पहाड़ी भी हो सकती है। इसके बाद शव को ऊंचाई पर टावर ऑफ साइलेंस में आसमान के नीचे रखा जाता है। इसके बाद आखिरी प्रार्थना मृतक के लिए की जाती है। चील और गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए प्रार्थना के बाद शव को छोड़ दिया जाता है।

इसलिए होगा हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार

अब पूरी दुनिया में कभी मौजूदा ईरान यानी फारस को आबाद करने वाले इस समुदाय के लोग थोड़े से ही बचे हैं। 2021 में किए गए एक सर्वे के अनुसार दुनिया में 2 लाख से भी कम पारसियों की तादाद है। दुनियाभर में अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा के चलते इस समुदाय को मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

चील व गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी के चलते और टावर ऑफ साइलेंस के लिए उचित जगह नहीं मिलने के कारण पिछले कुछ सालों में पारसी लोगों ने अपने अंतिम संस्कार की परंपराओं में पहले से काफी बदलाव शुरू कर दिया है। जब वह मरेंगे तो पारसी धर्म की परंपरा के अनुसार गिद्ध उनके शव को ग्रहण करेंगे, पारसी समुदाय के काइकोबाद रुस्तमफ्रैम हमेशा यही सोचते आए थे।

भारत के आसमान से अब यह पक्षी लगभग गायब हो चुका है। ऐसे में अपनी सदियों पुरानी परंपरा को निभाना पारसियों के लिए भी बहुत मुश्किल हो चला है। अपने परिजनों को हिंदुओं के श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में अब कई पारसी परिवार ले जाने लगे हैं।

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