सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में राणा सांगा का जिक्र कर उन्हें गद्दार और भाजपा को गद्दार का वंशज बता दिया. उन्होंने कहा कि भाजपा का तकिया कलाम बन गया है कि मुस्लिमों में बाबर का डीएनए हैं, इनमें क्या राणां सांगा का डीएनए हैं जिसने बाबर को भारत पर हमले के लिए बुलाया. इसके बाद सियासत गरमा गई है. सियासत की खुराक विवाद है लिहाजा सियासतदान विवाद पैदा करते रहते हैं लेकिन सपा नेता ने जो सवाल उठाया है उसका जवाब जानना जरूरी हो गया है.  क्या राजपूत शासक राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था. यदि ऐसा है तो फिर दोनों में खानवा की जंग क्यों हुई?

राणा सांगा की अलग कहानी

महाराणा सांगा जिन्हे संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ के शासक बने. मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे बड़े शूरवीर थे. माना जाता है कि उनके नेतृत्व में राणा सांगा का राज्य दिल्ली से लेकर गुजरात के ईडर तक और मारवाड़ की सीमा से लेकर मालवा तक फैला था. उनके नेतृत्व में ही विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध अंतिम क्षत्रिय संघ बना जिसमें उत्तर भारत की बहुत सी रियासतों ने भाग लिया था। महाराणा सांगा ऐसे योद्धा थे जिनके पास एक हाथ और आंख नहीं थी, चलने में लंगड़ाते थे और उनके शरीर पर 80 घाव थे. अपनी वीरता के लिए वह मशहूर थे लेकिन आरोप लगता है कि उन्होंने ही मुगल शासक बाबर को इब्राहिम लोदी पर धावा बोलने के लिए बुलाया था.

राणा सांगा ने बाबर को बुलाया

कई इतिहासकारों ने बाबर और राणा सांगा के युद्ध की कहानी अलग अलग बताई है. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इब्राहिम लोदी और महाराणा सांगा में दुश्मनी थी और हिसाब बराबर करने के लिए उन्होंने बाबर को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था. कुछ का मानना है कि राणा सांगा और इब्राहिम लोदी की दुश्मनी के बारे में बाबर को जानकारी थी  इसीलिए बाबर ने इब्राहिम लोदी को परास्त करने के लिए राणा सांगा के पास मित्रता का संदेश भेजा था.

राणा सांगा ने बाबर की बात मान ली

राष्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव नामक पुस्तक के लेखक डॉ. मोहनलाल गुप्त लिखते हैं दूत ने संदेश दिया कि बादशाह बाबर इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं, इसलिए आपको यह संधि पत्र भेजा है. पुस्तक में वो लिखते हैं कि बाबर ने संदेश में कहा था मैं इधर से दिल्ली पर आक्रमण करूंगा और आप उधर से आक्रमण करें. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि महाराणा सांगा ने बाबर के उस संदेश पर अपनी स्वीकृति दे दी. कहते हैं महाराणा सांगा ने अपनी मंजूरी रणनीति के तहत दी थी ताकि विदेशी ताकत के हाथों विदेशी शासक का अंत हो.

बाबर को मिली थी करारी हार

कुछ  इतिहासकारों ने सवाल उठाया है कि अगर महाराणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था तो दोनों के बीच भीषण युद्ध क्यों हुआ? जिस बाबर की सेना ने लोदी को हराया उसी की सेना को बयाना में राजपूतों की सेना से करारी हार का सामना करना पड़ा.

बाबर को पांचवी बार मिली सफलता

जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे इतिहासकार दावा करते हैं कि बाबर ने भारत पर आक्रमण का मन पहले ही बना रखा था. इसकी कोशिशें पहले भी किया था. सबसे पहले उसने 1519 में पंजाब पर हमला किया,  1526 में पानीपत युद्ध से पहले बाबर ने चार बार हमले का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली थी. पांचवीं बार वह सफल हुआ, इब्राहिम लोदी हार गया. एक कारण यह भी बताते हैं कि  1511-12 में बाबर को समरकंद छोड़ना पड़ा था लिहाजा भारत के अलावा उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था. बाबर की सेना ने दिल्ली पर जब हमला किया लोदी काफी कमजोर हो चुका था. 1526 में पानीपत का युद्ध जीतने के बाद जब बाबर ने आधिपत्य का विस्तार शुरू किया तब मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा ने  बाबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था.

राणा सांगा ने पहले बाबर को हराया, बाद में हारे

इसका नतीजा यह हुआ कि फरवरी 1527 में बयाना में राणा सांगा और बाबर में लड़ाई हुई जिसमें मुगल शासक हारा लेकिन पृथ्वीराज चौहान की तरह राणा सांगा एक चूक कर बैठे. उन्होंने शत्रु को जीवित छोड़ दिया जो आगे चलकर उनके लिए काल साबित हुआ. खानवा के युद्ध मार्च 1527 में वह बाबर के हाथों जंग हार गये. खानवा का युद्ध जीतने के लिए बाबर ने मज़हब का सहारा लिया, गाजी की उपाधि धारण की. कहते हैं कि जब मूर्च्छित राणा सांगा को रणभूमि से बाहर लाया गया तब होश में आने पर उन्होंने अपने सरदारों को पुनः युद्ध लड़ने को कहा लेकिन नाराज कुछ सरदारों ने राणा सांगा को जहर देकर मरवा दिया.

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