नई दिल्ली: अयोध्या में बने रामलला के भव्य राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होगी। प्राण-प्रतिष्ठा और मंदिर से जुड़ी तमाम जानकरी चंपत राय हर समय दे रहे हैं। गौरतलब है कि चंपत राय श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव हैं। दरअसल, हाल में दिया गया चंपत राय का एक बयान खूब सुर्खियों में है। इस बयान में उन्होंने कहा कि अयोध्या(Ramanand Sampraday) राम मंदिर, रामानंद संप्रदाय का है।
बता दें कि चंपत राय कहते हैं कि राम का मंदिर…सिर्फ रामानंद संप्रदाय का है…न की रामानंद…..संन्यासियों का। …. ये शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं है…. रामानंद का है। वहीं, उनके इस बयान के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। लेकिन सबसे पहले यह जानना बेहद जरूर है कि, रामानंद संप्रदाय आखिर क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई और यह अन्य(Ramanand Sampraday) संप्रदायों से कैसे अलग है?
जानकारी दे दें कि हिंदू परंपरा में कई(Ramanand Sampraday) संप्रदाय हैं, जैसे- वैष्णव, वैदिक, शैव, शाक्त, स्मार्त और चावार्क संप्रदाय आदि। इन सभी संप्रदाय के उप-संप्रदाय भी होते हैं। वैष्णव संप्रदाय के आराध्य भगवान श्रीहरि हैं। बता दें कि वैष्णव संप्रदाय को चार हिस्सों में बांटा गया है इसमें सबसे श्रेष्ठ श्री संप्रदाय है और इसकी दो शाखाएं:- रामानंद और रामानुज है। वहीं रामानंद संप्रदाय के लोग भगवान राम और सीता को पूजते हैं और इनका मूल मंत्र ‘ऊं रामाय नम’ है।
ऐसा माना जाता है की, यह एकमात्र अकेला ऐसा संप्रदाय है, जो कि भगवान राम और सीता की अराधना करता है। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हिंदू धर्म के अन्य संप्रदाय राम-सीता को नहीं पूजें। वहीं अन्य संप्रदाय के प्राथमिक देवी और देवता अलग-अलग हैं। लेकिन रामानंद संप्रदाय के आराध्य भगवान राम और सीता हैं और साथ ही यह संप्रदाय छुआछूत आदि के बजाय केवल भक्तिमार्ग की पुष्टि करता है। इस संप्रदाय के लोग शुक्ल श्री, लश्करी, बिन्दु श्री, रक्त आदि का तिलक लगाते हैं।
आपको बता दें कि रामानंद संप्रदाय की स्थापना का श्रेय श्रीमद् जगद्गुरु रामानंदाचार्य को दिया जाता है। दरअसल, श्रीमद रामानंदाचार्य से पहले इस संप्रदाय को श्री संप्रदाय के रूप में जाना जाता था। इस दौरान श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य के प्रकट होने के बाद उन्होंने अपने आचार्य के सम्मान में इसे श्री रामानंद संप्रदाय के रूप में शुरू किया। क्योंकि श्री राम स्वयं उनके आचार्य के रूप में प्रकट हुए थे। बता दें कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य को उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय भी दिया जाता है और उन्होंने वैष्णव बैरागी संप्रदाय की भी स्थापना की, इसे रामानंदी संप्रदाय के नाम से जाना जाता है।
इस दौरान रामानंद तीर्थ यात्रा के बाद गुरुमठ पहुंचे। उसके बाद उनके गुरुभाईयों ने उनके साथ में भोजन करने में आपत्ति जताई। चूंकि उनका ऐसा अनुमान था कि, खानपान के दौरान, तीर्थाटन के दौरान रामानंद ने छुआछूत का ध्यान नहीं रखा होगा। तब रामानंद ने अपने शिष्यों और गुरुभाईयों से एक नया संप्रदाय चलाने को कहा, जिसमें छुआछूत, जात-पात आदि धार्मिक क्रियाकलापों या आध्यात्मिक गतिविधियां न हों और बस यहीं से रामानंद संप्रदाय का जन्म हुआ।
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