November 5, 2024
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सहरी खाकर देश भर में रोजेदारों ने रखा 22वां रोजा, जाने दिल्ली समेत बाकी शहरों में क्या है इफ्तार का समय

सहरी खाकर देश भर में रोजेदारों ने रखा 22वां रोजा, जाने दिल्ली समेत बाकी शहरों में क्या है इफ्तार का समय

  • WRITTEN BY: Girish Chandra
  • LAST UPDATED : April 24, 2022, 1:03 pm IST
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नई दिल्ली: भारत सहित दुनियाभर में इस्लाम का पाक महीना रमजान चल रहा है। इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग इस दौरान रोजा रखते है। ये पूरा महीना 20 से 30 दिनों का होता है,जो कि चाँद पर निर्भर करता है। रमजान के दूसरा अशरा शुरू हो गया है। देशभर में आज 22वां रोजा रखा गया है। इस महीने रोजे रखे जाते हैं और रात के समय तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है और कुरान की तिलावत की जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान के पूरे महीने रोजा रखते हैं। यह लोग सूरज के निकलने से लेकर उसके डूबने तक कुछ खाते पीते नहीं है। रोजा रखने के साथ ही लोग महीने भर इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।

रोजा को रमजान के दौरान इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक माना जाता है। इसलिए पूरे महीने इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग अल्लाह की इबादत करते हैं। इस दौरान रोजेदार कुरान का पाठ करते हैं और खूब दान धर्म का भी कार्य करते हैं। भारत की तुलना में खाड़ी देशों या पश्चिमी देशों में रमजान की शुरुआत 1 दिन पहले से हो जाती है। आज भी रोजेदारों ने सुबह के समय सहरी खाकर रोजे की शुरुआत की। इसके बाद फजर की नमाज अदा की गई। और अब सभी को शाम के वक्त का इंतजार है यानी इफ्तार का। तो आइए जानते हैं सहरी और इफ्तार की टाइमिंग।

तारीख-24 अप्रैल
सहरी- 4:22 सुबह
इफ्तार- 06:55 शाम

सहरी क्या है

इस्लाम धर्म के मुताबिक रमजान के पाक महीने में सूर्योदय होने से पहले खाना खा लिया जाता है, जिसे सहरी कहते हैं। इसका समय भी पहले से निर्धारित कर दिया जाता है। सहरी को सुन्नत भी कहा जाता है।

इफ्तार क्या है

पूरा दिन बिना कुछ खाए पिए बिताने के बाद शाम को नमाज अदा की जाती है। इसके बाद खजूर खाकर रोजा खोला जाता है। इसे शाम को सूरज ढलने पर अजान के बाद किया जाता है, जिसे इफ्तार कहते है।

रमजान के महीने में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों के दिन में 5 बार नमाज अदा करते हैं। सुबह की नमाज को फज्र कहा जाता है दोपहर की नमाज को।जुहर या दुहर, शाम से पहले की नमाज को असर कहते हैं, शाम के समय की जाने वाली नमाज को मगरिब, तो वहीं शाम के बाद रात को पढ़ी जाने वाली नमाज को इशा कहा जाता है. ऐसे में इस बात की उम्मीद लगाई जा रही है कि जंग में ये विजय दिवस बेहद अहम रोल निभा सकता है।

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