Ram Prasad Bismil Poetry: महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल थे शानदार कवि और शायर, पढ़ें उनकी पांच कविताएं

Ram Prasad Bismil Poetry: आज आजादी के महान नायक राम प्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है. राम प्रसाद बिस्मिल देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए फांसी के फंदे से झूल गए थे. राम प्रसाद बिस्मिल की विरासत को हम एक आजादी के नायक के तौर पर तो देखते ही हैं लेकिन क्या आपको मालूम है कि राम प्रसाद बिस्मिल एक बेहद शानदार शायर भी थे. उनकी कविताओं और नज्मों में भी देश के लिए वहीं प्रेम दिखता है जिस पर उन्होेंने अपनी जिंदगी लुटा दी. उनकी शायरी में एक युवा की बेचैनी और छटपटाहट भी नजर आती है. पढ़िए बिस्मिल की पांच नज्में.

Advertisement
Ram Prasad Bismil Poetry: महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल थे शानदार कवि और शायर, पढ़ें उनकी पांच कविताएं

Aanchal Pandey

  • June 11, 2019 4:56 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. स्वतंत्रता सेनानी, महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल  को हम देश के अमर शहीद के तौर पर याद करते हैं लेकिन  वो एक शानदार शायर और अदभुत कवि भी थे.  11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में बिस्मिल का जन्म हुआ था. शहीद ए आजम भगत सिंह के साथी राम प्रसाद बिस्मिल ने देश की आजादी के लिए हर वो चीज लुटा दी जो उनके पास थी. चाहे वो उनकी जान हो या उनकी शायरी. राम प्रसाद बिस्मिल इस देश में हिंदू-मुस्लिम सियासत करने वालों के मुंह पर करारा तमाचा हैं. महज 30 साल की उम्र में राम प्रसाद बिस्मिल ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है’, गाते हुए फांसी के फंदे को चूमते हैं और देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण तक दे दिए.  आर्य समाज से प्रभावित राम प्रसाद बिस्मिल अज्ञात और बिस्मिल नाम से कविताएं/शायरी लिखते थे. आज हमारे क्रांतिकारी कवि की याद और योगदान को प्रणाम करते हुए आपको पढ़वाते हैं राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी पांच कविताएं/नज्में

1 दुनिया से गुलामी का नाम मिटा दूं: राम प्रसाद बिस्मिल

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,
एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा

बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
मैं उनकी अमीरी को मिट्टी में मिला दूंगा

यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह,
दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा

ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में
हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा

बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,
ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा

जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,
गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा

हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों?
शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।

ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा,
कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा

2. न चाहूं मान: राम प्रसाद बिस्मिल

न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना

करुं मैं कौम की सेवा पड़े चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं हिन्दी
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुं मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

3. हे मातृभूमि: राम प्रसाद बिस्मिल

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सर नवाऊं
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊं ।।

माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊं ।।

जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे 
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊं ।।

माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर 
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊं ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर 
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूं सुनाऊं ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊं
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊं ।।

4. आजादी: राम प्रसाद बिस्मिल

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम जी से उनको याद करते हैं

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’,
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं

5. सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है: राम प्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,
लज़्ज़ते सहरा नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है

वक़्त आने दे, बता देंगे तुझे, ऐ आसमां!
हम अभी-से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हरसरत अब दिले ‘बिस्मिल’ में है

आज मक़तल में ये क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है!

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, तेरे जज़्बों के निसार,
तेरी कुर्बानी का चर्चा गै़र की महफ़िल में है

हमें उम्मीद है कि महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएं, नज्में पढ़कर आप भी हमारी तरह अभिभूत हुए होंगे. हमें आजादी के नायकों का यह रूप भी देखना चाहिए. राम प्रसाद बिस्मिल हर युवा के आदर्श होने चाहिए. चाहे देश के लिए मर मिटने के जज्बे की बात हो या सांप्रदायिक एकता की. चाहे उनकी कविताओं की ही बात करें. बिस्मिल को पढ़ना उस दिल को पढ़ना है जो सिर्फ और सिर्फ देश के लिए धड़कता है और शायद किसी माशुक के लिए भी. क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल की स्मृति को आदरांजलि देने के लिए उनकी कविताओं के पाठ से सुंदर और क्या हो सकता है भला. 

Ashfaqulla Khan Birth Anniversary: जब बेहोशी में अशफाकउल्लाह खान बड़बड़ा रहे थे राम राम राम

Independence Day 2018: वो नारे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में हर हिन्दुस्तानी का खून खौलाया और भाग गए अंग्रेज

Tags

Advertisement