नई दिल्ली। अयोध्या के राम मंदिर में आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा(Ram Mandir Pran Pratishtha) का कार्यक्रम अभिजीत मुहूर्त में किया जा रहा है। इसे लेकर देशभर उत्सव जैसा माहौल दिखाई दे रहा है। हालांकि, प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान की शुरुआत कुछ दिन पहले ही हो गई है। दरअसल, प्रकांड पंडितों के मुताबिक, बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए। इसकी अनदेखी करने से व्यक्ति को पूजा का शुभ फल प्राप्त नहीं होता। लेकिन क्या आपको पता है कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है? आइए जानते कि प्राण प्रतिष्ठा क्यों कि जाती है और इसके मंत्रों और विधि के बारे में।
दरअसल, धर्म गुरुओं के अनुसार, मंदिर या घर पर मूर्ति स्थापित करने के दौरान, प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा(Ram Mandir Pran Pratishtha) कहते हैं। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व है। आज 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। इसकी शुरुआत 16 जनवरी से ही हो गई थी। 16 जनवरी से ही प्राण प्रतिष्ठा हेतु अनुष्ठान किए जा रहे थे। धार्मिक मतों के अनुसार, प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति रूप में उपस्थ्ति देवी-देवता की पूजा-उपासना की जाती है।
ऐसे में धर्म गुरु एवं आचार्यों का मानना है कि प्राण प्रतिष्ठा का अभिप्राय मूर्ति विशेष में देवी-देवता या भगवान की शक्ति स्वरूप की स्थापना करना है। इस दौरान पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है। शास्त्रों में घर पर पत्थर की प्रतिमा न रखने की सलाह दी गई है। बताया जाता है पत्थर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रतिदिन पूजा अनिवार्य है। यही कारण है कि मंदिरों में हमेशा पत्थर की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं
तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै
देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव
प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।
प्राण प्रतिष्ठा(Ram Mandir Pran Pratishtha) के दौरान, मूर्ति को गंगाजल या विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराएं। इसके बाद किसी मुलायम वस्त्र से मूर्ति को पोछें और देवी-देवता के रंग अनुसार नवीन वस्त्र धारण कराएं। ऐसा करने के बाद मूर्ति को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजिक करें और चंदन का लेप लगाएं। साथ ही मूर्ति का विशेष का सिंगार करें और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा करें। इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा-अर्चना करें। अंत में आरती करने के बाद सभी में प्रसाद वितरित करें।
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