नई दिल्लीः इन दिनों अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की चर्चाएं चारो तरफ है और हो भी क्यों नहीं सदियों बाद प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान होने जा रहे हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएंगे जिसने न सिर्फ प्रभु राम के लिए अपने आधे […]
नई दिल्लीः इन दिनों अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की चर्चाएं चारो तरफ है और हो भी क्यों नहीं सदियों बाद प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान होने जा रहे हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएंगे जिसने न सिर्फ प्रभु राम के लिए अपने आधे जीवन को समर्पित कर दिया बल्कि अपने पैसे से प्रभु के लिए प्रसाद भी तैयार कर रहे थे। हम बात कर रहे हैं राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास की जो लगभग 32 सालों तक निस्वार्थ भाव से प्रभू राम की सेवा मे लगे रहे।
अब प्रभु राम अपने आलिशान महल में विराजमान होने जा रहे हैं तो आचार्य सत्येंद्र दास भी खुश नजर आ रहे हैं। दरअसल, अयोध्या के रामघाट पर रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास की कुटिया है। घर में बड़ा सा दरवाजा है जहां हाथी पर बैठा आदमी भी आसानी से उनके आश्रम में प्रवेश कर सकता है। वहीं लंबी-लंबी दाढ़ी सफेद बाल और भगवा वस्त्र धारण किए आचार्य सत्येंद्र दास रोजाना सुबह 10:00 बजे से शाम 2:00 बजे तक प्रभु राम की सेवा में लीन रहते हैं।
आचार्य सत्येंद्र दास साल 1992 से राम जन्म भूमि के मुख्य पुजारी बने। वैसे भी राम जन्मभूमि की मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास पहले हनुमान जी की पूजा अर्चना में लीन रहते थे। इससे पहले वो एक संस्कृत के शिक्षक थे जिन्हें रामलाल की सेवा करने का मौका मिला। यही कारण है कि प्रभु राम की कृपा से 1992 में राम जन्मभूमि के पुजारी बने और उस दौरान भगवान राम टेंट में थे। वहीं प्रभु राम के टेंट वास से लेकर प्रभु राम के आलिशान महल में विराजमान होने तक के साक्षी भी सत्येंद्र दास हैं।
इतना ही नहीं 32 सालों तक भगवान राम लला ने टेंट वास किया। विराजमान रामलला को तमाम तपस्या खुद करनी पड़ी है। भगवान को ठंड से बचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं था। गर्मी से बचने के लिए पंखे की व्यवस्था तक नहीं थी। इसके साथ ही बारिश में भी बहुत दिक्कत होती थी। सरकारी बंदिशें के कारण रामलला के पुजारी अपने खुद के खर्चे से भगवान की सेवा करते थे। राम लला के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी रामलला के साथ वहीं तपस्या की।
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