जयपुर: राजस्थान विधानसभा चुनाव की सियासी जंग जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस हर संभव कोशिश कर रही हैं. दोनों पार्टियों ने उम्मीदवारों के जरिए मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की तैयारी की है. बीजेपी ने सियासी समीकरण साधने के लिए जहां ब्राह्मण और राजपूत समुदाय पर अपना दांव खेला है, वहीं कांग्रेस जाट और आदिवासी समुदाय के जरिए सत्ता परिवर्तन की परंपरा बदलने की पटकथा लिखा रही है. ऐसे में दोनों पार्टियों ने राज्य के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए जातीय राजनीति का दांव खेला है.
बीजेपी ने राजस्थान में सबसे ज्यादा उम्मीदवार ऊंची जाति के समुदाय से उतारे हैं, जबकि कांग्रेस ने ओबीसी पर दांव लगाया है. हालांकि, कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों पर अधिक उम्मीदवार उतारे हैं। राजस्थान में अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए 25 सीटें आरक्षित हैं। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें 33 सीटों पर टिकट दिया है जबकि बीजेपी ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. इस तरह कांग्रेस ने 8 सामान्य सीटों पर एसटी समुदाय को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने पांच सामान्य सीटों पर आदिवासी नेताओं को मैदान में उतारा है.
राजस्थान में बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के जरिए मजबूत राजनीतिक समीकरण बनाने की रणनीति अपनाई है. बीजेपी के 200 उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो 25 सीटों पर राजपूत समुदाय के उम्मीदवार उतारे गए हैं और 20 सीटों पर ब्राह्मण समुदाय के उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है. ऊंची जाति के वोटर बीजेपी के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं, जिसके चलते पार्टी ने 25 फीसदी टिकट सिर्फ रातपूत और ब्राह्मण समुदाय को दिए हैं. इसके अलावा पार्टी ने 11 सीटों पर वैश्य समुदाय से उम्मीदवार उतारे हैं.
बीजेपी ने राजस्थान में जाट समुदाय से 33 और गुर्जर समुदाय से 10 उम्मीदवार उतारे हैं. बीजेपी ने एसटी समुदाय को उनके लिए आरक्षित सीटों से ज्यादा टिकट जरूर दिए, लेकिन दलित समुदाय के लिए आरक्षित सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे. राजस्थान में 34 सीटें दलित समुदाय के लिए और 25 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने 34 सीटों पर दलितों को टिकट दिया और 30 सीटों पर आदिवासी उम्मीदवार उतारे.
राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के जरिए सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कोशिश की है. कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार जाट समुदाय से उतारे हैं. पार्टी ने 36 जाट समुदायों को टिकट दिया है और गुर्जर समुदाय से 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इस तरह से 42 उम्मीदवार जाट और गुर्जर समुदाय से दिए गए हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने भी बीजेपी के बराबर 11 वैश्य समुदाय से उम्मीदवार उतारे हैं.
कांग्रेस ने केवल 34 आरक्षित सीटों पर दलित समुदाय को टिकट दिया है और सामान्य सीटों पर भी आदिवासी समुदाय को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने 33 एसटी समुदायों को टिकट दिया है. बीजेपी की तुलना में कांग्रेस ने ऊंची जातियों को कम टिकट दिए हैं. कांग्रेस ने 17 राजपूत और 16 ब्राह्मण समुदाय को टिकट दिया है. कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय पर खास फोकस किया है, जिसके तहत अलग-अलग ओबीसी जातियों को टिकट दिया है. कांग्रेस ने 14 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही महिलाओं की आबादी को देखते हुए उन्हें टिकट नहीं दे पाईं. कांग्रेस ने 27 महिलाओं को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी भी 20 सीटों पर भरोसा जताने में सफल रही है. कांग्रेस ने 13.5 फीसदी टिकट दिए हैं जबकि बीजेपी ने सिर्फ 10 फीसदी टिकट दिए हैं. इस तरह 33 फीसदी महिलाओं की भागीदारी की वकालत करने वाले राजनीतिक दलों ने टिकटों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो महिलाएं अब बड़ी संख्या में वोट देने के लिए सामने आ रही हैं.
इस बार बीजेपी ने राजस्थान में किसी भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया है. इससे पहले बीजेपी मुस्लिमों को टिकट देकर विधानसभा चुनाव लड़ती रही है. एक समय बीजेपी ने पांच-पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से दो से तीन जीत रहे थे. 2018 में बीजेपी ने सिर्फ एक सीट से मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान को मैदान में उतारा था, लेकिन वह जीत नहीं सके. इस बार बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को मैदान में नहीं उतारा है जबकि कांग्रेस ने 14 सीटों पर मुस्लिमों को टिकट दिया है. इस तरह बीजेपी ने हिंदुत्व का एजेंडा सेट करने की चाल चली है तो कांग्रेस ने 12 फीसदी मुसलमानों को अपने पाले में लाने की चाल चली है.
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