Rajasthan Political Crisis: हाई कोर्ट से हक में नहीं आता फैसला तो सचिन पायलट गुट के पास बचे हैं और कौन-कौन से विकल्प?

Rajasthan Political Crisis: सचिन पायलट से बागी होने को लेकर या दलबदल को लेकर सवाल पूछते हैं और वो जवाब नहीं देते तो विधानसभा अध्यक्ष के पास ये पॉवर है कि वो कोई भी फैसला कर सकते हैं. आरोप लगाने वाले पक्ष को विधानसभा स्पीकर के सामने प्रमाण के साथ सिद्ध करना होगा कि इन्होंने कौन सी पार्टी विरोधी गतिविधियां की.  जब तक स्पीकर संतुष्ट नहीं होंगे तब वह और भी प्रमाण मांग सकते हैं. या पूरे मामले को खारिज भी कर सकते हैं.

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Rajasthan Political Crisis: हाई कोर्ट से हक में नहीं आता फैसला तो सचिन पायलट गुट के पास बचे हैं और कौन-कौन से विकल्प?

Aanchal Pandey

  • July 17, 2020 10:10 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

जयपुर: राजस्थान में चल रहा सियासी उठापटक अब कोर्ट की दहलीज तक जा पहुंचा है. सचिन पायलट समेत 18 विधायकों के बागी होने के बाद राज्य विधानसभा द्वारा उन्हें अयोग्य करार देने की कांग्रेस की मांग पर राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भेजे गए नोटिस को सचिन पायलट गुट ने चुनौती दी है जिसकी पैरवी हरीश साल्वे कर रहे हैं. दूसरी तरफ विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी पैरवी कर रहे हैं. दल-बदल नोटिस को लेकर कोर्ट में इसलिए चैलेंज किया गया है कि इस नोटिस की विधता क्या है? मामला अब हाई कोर्ट में है और देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट अगर नोटिस को सही मानता है तो समीकरण क्या बनेगा?

कोर्ट का फैसला चाहे जो भी हो, स्पीकर फिर भी दोनों पक्षों से बात करेंगे. सचिन पायलट गुट अपना पक्ष रखेगा और स्पीकर को ये साबित करने की कोशिश करेगा कि उसने जो किया वो दल-बदल कानून के अंतर्गत नहीं आता. विधानसभा अध्यक्ष अगर विद्रोही गुट के तर्कों से संतुष्ट होते हैं तो वो चाहें तो फैसला बदल भी सकते हैं और सदस्यता रद्द करने का फैसला भी कर सकते हैं.

यानी कुल मिलाकर कोर्ट के बाद सबकुछ स्पीकर पर निर्भर करेगा कि वो क्या फैसला लेते हैं. हालांकि इस मामले में कई पेंच हैं रणदीप सुरजेवाला ने विधायक भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र शर्मा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त करने की बात कही है तो फिर कोर्ट में सवाल जरूर उठेगा कि जब आप पहले याचिका में कह रहे हैं कि बागी विधायकों ने स्वेच्छा से पार्टी से अलग होने का फैसला लिया है तो फिर आपको उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार कहां से हो गया? इस तरह के कई सवाल हैं जिनका जवाब कांग्रेस पार्टी को देना है.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि विधानसभा अध्यक्ष सचिन पायलट से बागी होने को लेकर या दलबदल को लेकर सवाल पूछते हैं और वो जवाब नहीं देते तो विधानसभा अध्यक्ष के पास ये पॉवर है कि वो कोई भी फैसला कर सकते हैं. आरोप लगाने वाले पक्ष को विधानसभा स्पीकर के सामने प्रमाण के साथ सिद्ध करना होगा कि इन्होंने कौन सी पार्टी विरोधी गतिविधियां की.  जब तक स्पीकर संतुष्ट नहीं होंगे तब वह और भी प्रमाण मांग सकते हैं. या पूरे मामले को खारिज भी कर सकते हैं.

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