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शराब के धंधे से अपराध की दुनिया का ‘क ख ग’ सीखने तक! जानिए राजू ठेठ की क्राइम कुंडली

जयपुर : सीकर में दिनदहाड़े राजस्थान के गैंगस्टर राजू ठेठ की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्या की जिम्मेदारी भी लॉरेंस बिश्नोई गैंग के गुर्गे रोहित ने ली है. शनिवार की सुबह धोरों की धरती कहलाने वाला राजस्थान का सीकर जिला गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल गया. गोलियों की तड़तड़ाहट ने पूरे इलाके […]

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शराब के धंधे से अपराध की दुनिया का ‘क ख ग’ सीखने तक! जानिए राजू ठेठ की क्राइम कुंडली
  • December 3, 2022 4:15 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

जयपुर : सीकर में दिनदहाड़े राजस्थान के गैंगस्टर राजू ठेठ की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्या की जिम्मेदारी भी लॉरेंस बिश्नोई गैंग के गुर्गे रोहित ने ली है. शनिवार की सुबह धोरों की धरती कहलाने वाला राजस्थान का सीकर जिला गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल गया. गोलियों की तड़तड़ाहट ने पूरे इलाके को गूंज से भर दिया. ये तब हुआ जब लॉरेंस बिश्नोई ग्रुप के गुर्गों ने गैंगस्टर राजू ठेठ के घर दस्तक दी.

राजू के नाम से कांपता है राजस्थान

राजू ठेठ… अपराध की दुनिया में ये नाम काफी पुराना है. राजू ठेठ का आतंक गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के अपराध की दुनिया में आने से पहले का है. हालांकि आनंदपाल सिंह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. राजू ठेठ के नाम का इस्तेमाल राजस्थान में रंगदारी और अन्य अपराधों को लेकर भी धड़ल्ले से किया जाता है. अपना खौफ कायम करने के लिए राजू ठेठ ने ये तरीका अपनाया था कि वह जब भी कहीं निकलता था तो उसके चारों ओर बंदूक लिए गुर्गे उसे घेरे चलते थे. ऐसे में वह अपने दुश्मनों को भी साफ़ कर देता था कि उनकी तरफ देखा तो तुम्हारे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे.

अपराध की दुनिया में एंट्री

राजू ठेठ की अपराध की दुनिया में एंट्री 25 साल पहले यानी 1995 में हुई. उस समय सीकर जिले का एसके कॉलेज, शेखावाटी की राजनीति का केंद्र था. इस कॉलेज में बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ता गोपाल फोगावट का काफी दबदबा था. गोपाल शराब के धंधे से जुड़ा था जिस कारन राजू ठेठ भी गोपाल की शरण में आ गया. गोपाल की शरण में आने के बाद राजू ने साये में शराब का धंधा भी शुरू कर दिया।

दूध का व्यापारी करने लगा शराब का धंधा

इसी बीच राजू की मुलाकात बलबीर बानूड़ा से होती है जो दूध का व्यापार करता था. लेकिन राजू ठेठ से मिलने के बाद बानूड़ा को पैसे की लत लग गई. वह शराब का धंधा शुरू करने लगा. साल 1998 में बलबीर बानूड़ा और राजू ठेठ ने मिलकर सीकर में भेभाराम हत्याकांड को अंजाम दिया। यहीं से शेखावाटी में गैंगवार का खौफनाक सफर शुरू हुआ.

कायम किया खौफ

1998 से 2004 के बीच वो दौर रहा जब शेखावाटी में बलवीर बानूड़ा और राजू ठेठ ने अपना खौफ को कायम कर लिया था. उनका खौफ इस कदर था कि अगर कोई शेखावाटी में शराब जैसे अवैध धंधे में शामिल होता तो उसे राजू ठेठ और बलबीर बानूड़ा को संरक्षण का पैसा देना ही पड़ता था. यदि वह ऐसा नहीं करता तो समझो उसका खेल खत्म. वसुंधरा राजे सरकार के समय यानी साल 2004 में राजस्थान में शराब के ठेकों की लॉटरी निकली थी. इस दौरान शराब की दुकान राजू ठेठ और बलबीर बनूडा को मिली. सेल्समैन के रूप में बानूड़ा के साले विजयपाल ने उस पर काम करना शुरू कर दिया. विजयपाल दिनभर शराब की ब्रिकी करता जिसका हिसाब वह हर रोज़ बानूड़ा और ठेठ को दिया करता था.

राजू आमतौर पर दुकान पर ही रहना चाहता था लेकिन वह उसे मिल ही नहीं रही थी. इसके बाद उसे ऐसा लगा कि विजयपाल ब्लैक में शराब बेच रहा है. ऐसे में राजू और विजयपाल के बीच कहासुनी हो गई जो आगे बढ़कर विजयपाल की हत्या का कारण बनी. हत्या के बाद राजू और बलबीर बनुदा की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई और बलबीर अपने साले की हत्या का बदला लेने में तुला हुआ था.

मुश्किल था राजू से बदला लेना

लेकिन राजू पर गोपाल फोगावट का हाथ था ऐसे में उससे बदला लेना आसान नहीं था. बलवीर बानूड़ा ने राजू से बदला लेने के लिए नागौर जिले के आनंदपाल सिंह से हाथ मिलाया और बलबीर और आनंदपाल सिंह दोनों दोस्त बन गए. दोनों ने अपना बदला लेने की कसम खाई. हालांकि राजू आनंदपाल और बलबीर से आर्थिक रूप से मजबूत बन चुका था. इसलिए पहले आनंदपाल और बलवीर ने भी आर्थिक रूप से मजबूत होने का निर्णय लिया. उन दोनों ने भी शराब और खनन का धंधा शुरू किया. इसके बाद दोनों का गिरोह भी मजबूत बन गया.

आर्थिक रूप से भी हमला किया

दोनों ने अब शराब से भरे ट्रकों को लूटना शुरू कर दिया,इससे राजू की आर्थिक तंगी बढ़ी. जून 2006 में पहले राजू के बॉडीगार्ड और गोपाल फोगावट को मारने की योजना बनाई गई. गोपाल की हत्या के बाद राजू के लिए भी दोनों के दिल में आग सुलगने लगी. क्योंकि गोपाल फोगावट की हत्या का मतलब राजू के शरीर से ऑक्सीजन की कमी का होना था. 2012 तक दोनों गैंग साल अंडरग्राउंड रहे. साल 2012 में बलबीर बानूड़ा, आनंदपाल और राजू ठेठ की जब गिरफ्तारी हुई तो ये बदले की आग एक बार फिर भड़क उठी.

 

जेल में हुआ था हमला

बदला लेने की शुरुआत बलबीर बानूड़ा से 26 जनवरी 2013 को हुई. जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था तब बानूड़ा के खास दोस्त सुभाष बराल ने सीकर जेल में बंद राजू ठेठ पर हमला कर दिया. लेकिन इस हमले में राजू बच गया. साल 2014 तक राजू ठेठ के अंदर बदले की आग सुलगने लगी थी. इसके बाद राजू ने गिरोह की कमान अपने भाई ओमप्रकाश उर्फ ओमा ठेठ के हाथों में दे दी. इस दौरान आनंदपाल और बलबीर बीकानेर जेल में बंद थे. लेकिन इसी बीच ओमा ठेठ के बहनोई जयप्रकाश और रामप्रकाश भी बीकानेर जेल में बंद थे. ये बदला लेने का अच्छा मौका था जहां 24 जुलाई 2014 को बलवीर बानूड़ा और आनंदपाल पर हमला हुआ. इस हमले में बलवीर बानूड़ा मारा गया. हालांकि साल 2017 में आनंदपाल एनकाउंटर में मारा गया था लेकिन उसकी जान राजू नहीं ले पाया.

लॉरेंस बिश्नोई गैंग से कनेक्शन

भले ही कुछ समय के लिए शेखावाटी का गैंगवार ठंडा पड़ गया, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई गैंग धीरे-धीरे पैर पसार रहा था. इसी साल राजू ठेठ को पैरोल दी गई और 3 दिसंबर (आज) उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

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