नई दिल्ली. कांग्रेस का ये अधिवेशन काफी खास है, राहुल गांधी बतौर अध्यक्ष पहली बार इसमें हिस्सा ले रहे हैं. दूसरी खास वजह भी है, बस एक साल रह गया है 2019 के आम चुनाव में. ऐसे में यूपी और आंध्र से कुछ अच्छी खबरें भी कांग्रेस को मिली हैं. सो जाहिर है इस अधिवेशन में सारे नेता काफी जोश में हैं और जोश में ही भाषण दे रहे हैं. ऐसे में आपके लिए ये जानना वाकई में दिलचस्प होगा कि कांग्रेस को पहली बार इसी गांधी नेहरु के व्यक्ति ने ही ऑफीशियली तोड़ा था, वो थे जवाहर लाल नेहरू के पिता पंडित मोतीलाल नेहरू.
आपको यकीन नहीं होगा लेकिन कांग्रेस पार्टी अब तक 60-65 बार टूट चुकी है, कांग्रेस और उसकी शुरूआत उसी गांधी-नेहरू परिवार के मुखिया ने की थी, जो आज कांग्रेस पर काबिज है. जी हां कांग्रेस में विवाद तो कई बार हुए लेकिन उसे ऑफीशियल तोड़कर नई पार्टी पहली बार नेहरू परिवार के मुखिया यानी मोतीलाल नेहरू ने बनाई थी. जबकि मोतीलाल नेहरू उसके पहले एक बार कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके थे और कांग्रेस को तोड़कर नई पार्टी बनाने के बावजूद वो फिर से कांग्रेस में शामिल हुए और तीन साल बाद वो फिर एक बार अध्यक्ष बने.
यूं तो 1907 में ही कांग्रेस में पहली फूट पड़ गई थी, गरम दल और नरम दल के बीच का विवाद काफी बढ़ गया था, लेकिन बात नई पार्टी की नहीं आ पाई. नरम दल के मुखिया थे गोपाल कृष्ण गोखले और गरम दल लाल बाल पाल के नाम से मशहूर था यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिऩ चंद्र पाल. तब कोई राजनीतिक पार्टी नई नहीं बनती थी, हां.. नाराज होने वाला गुट या नेता कोई ना कोई सामाजिक संगठन जरूर बना लेता था. कांग्रेस खुद भी राजनीतिक पार्टी के ढांचे में धीरे धीरे ढल रही थी.
1922 में जब असहयोग आंदोलन के दौरान चौरी चौरा कांड हुआ, थाने में बंद करके कई पुलिस वालों को जिंदा जला दिया गया तो गांधीजी ने फौरन असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, इससे खफा होकर ढेर सारे युवाओं ने कांग्रेस से पल्ला झाड़कर क्रांतिकारी संगठन बना लिए. रामप्रसाद बिस्मिल, सचीन्द्र नाथ सान्याल आदि इसमें शामिल थे. कोई नहीं चाहता था कि इतना अच्छे से चल रहा आंदोलन यकायक वापस ले लिया जाए, लेकिन गांधीजी ने किसी की नहीं सुनी.
जब गांधीजी ने चौरी चौरा कांड के बाद आंदोलन रोकने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी, तो काफी लोग नाराज हो गए. 1922 के गया अधिवेशन के बाद चुनाव लड़ने के मुद्दे पर भी मतभेद था, मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास चाहते थे कि काउंसिल के चुनाव लड़े जाएं. दो गुट हो गए और मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास और विट्ठल भाई पटेल ने कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी बना ली और कई जगह चुनाव लड़े और जीते भी. पार्टी 9 जनवरी 1923 को बनाई गई. आम बोलचाल की भाषा में उसे स्वराज पार्टी कहा गया. गांधीजी तो जेल चले गए, लेकिन कई कांग्रेसी इससे जुड़ गए, कई जगह काउंसिल के चुनाव स्वराज पार्टी ने जीते भी, यहां तक सेंट्रल असेम्बली के प्रेसीडेंट भी स्वराज पार्टी से ही बिट्ठल भाई पटेल बन गए.
लेकिन मोतीलाल के खुद के बेटे जवाहर लाल, बल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद उनके खिलाफ ही रहे. गांधीजी को अपेंडिक्स के ऑपरेशन के चलते जब जेल से 2 साल बाद ही छोड़ दिया गया तो पहली और आखिरी बार 1924 के बेलगांव अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने दोनों धड़ों को मिलाने की कोशिशें शुरू कीं. इधर बाबू चितरंजन दास की मौत हो चुकी थी, स्वराज पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया गया. बाद में दोनों पिता-पुत्र मोतीलाल और जवाहर लाल क्रमश: 1928 और 1929 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. इससे पहले भी मोतीलाल 1919 के अमृसर अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जा चुके थे. दिलचस्प बात है कि इन्हीं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इलाहाबाद में अपना 42 कमरों का मकान आनंद भवन कांग्रेस का मुख्यालय बनाने के लिए दान दे दिया था, जो बाद में स्वराज भवन कहलाया.
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