नई दिल्ली: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आरबीआई के मोनेटाइजेशन प्रोग्राम पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कोरोना काल में लिए इस फैसले की भविष्य में बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, उन्होंने ये भी कहा कि ये समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. रघुराम राजन ने कहा कि कई उभरते बाजारों में केंद्रीय बैंक इस प्रकार की रणनीतिक अपना रहे हैं लेकिन यह समझना होगा कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता. आर्थिक नरमी के बीच केंद्रीय बैंक अतिरिक्त नकदी के एवज में सरकारी बॉन्ड की खरीद कर रहा है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में वह बैंकों से रिवर्स रीपो दर पर कर्ज ले रहा है और सरकार को उधार दे रहा है.
गौरतलब है कि बैंकों के पास कर्ज बांटने के लिए पर्याप्त पैसा है, बैंकों ने रेपो रेट भी घटा रखा है लेकिन लोग जोखिम लेने से बच रहे हैं इसलिए लोन लेने से भी बच रहे हैं. इसके पीछे कारण हैं अर्थव्यवस्था की अनिश्चित्ता क्योंकि नौकरी पेशा लोगों का बुरा हाल है, नौकरियों पर संकट है इसलिए कोई कोई अतिरिक्त देनदारी नहीं बढ़ाना चाहता.
देश के आर्थिक हालात को देखते हुए कुछ अर्थशास्त्री और अर्थशास्त्र विश्लेषक राजकोषीय घाटे की भरपाई से निपटने को लेकर अतिरिक्त नोटों की छपाई का सुझाव दे रहे हैं जिसपर राजन ने कहा कि अतिरिक्त नोटों की आपूर्ति की एक सीमा है और यह प्रक्रिया सीमित अवधि के लिये ही काम कर सकती है
राजन ने ये भी कहा कि भारत में जब लॉकडाउन पूरी तरह खुलेगा तब कॉर्पोरेट पर इसका असली असर दिखना शुरू होगा. उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते आने वाले समय में बहुत से कर्ज वापस नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे इन नुकसान का फाइनैंशल सेक्टर पर असर दिखाई देगा. रघुराम राजन ने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंकों के पास स्थिति से निपटने के लिये पर्याप्त पूंजी हो. इसे फाइनैंशल सेक्टर की समस्या बनने के लिये नहीं छोड़ा जा सकता.
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