नई दिल्लीः राफेल डील को लेकर जारी गतिरोध के बीच इस हफ्ते संसद में इससे जुड़ी सीएजी रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें दावा किया गया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने यूपीए के मुकाबले इसे 2.86 प्रतिशत सस्ती हासिल की. हालांकि सीएजी रिपोर्ट में राफेल की कीमतों की जगह E+ और H+ जैसे कोड वर्ड लिखे हुए हैं. मोदी सरकार में ही इससे पहले हुए हवाई रक्षा सौदों की कीमतों का कैग ने रुपये और डॉलर के जरिये खुलासा किया है, ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि राफेल की कीमतों की जगह ये कोड वर्ड क्यों लिखे गए.
नई दिल्लीः राफेल डील को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के बीच जारी गतिरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जहां पहले भी कांग्रेस मोदी सरकार से राफेल की कीमतों का खुलासा करने की मांग कर रही थी, वहीं इस डील को लेकर हाल ही में संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट में भी राफेल की कीमतों का खुलासा न होने से कांग्रेस हमलावर है. वहीं कैग रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने यूपीए के मुकाबले इसे 2.86 प्रतिशत सस्ती हासिल की. साथ ही यह भी कहा गया कि यूपीए के समय हुए 126 विमानों की डील के मुकाबले एनडीए के 36 विमानों की डील में नरेंद्र मोदी सरकार ने 17.86 फीसदी पैसा बचाया. हालांकि, इससे पहले मोदी सरकार में जितने भी हवाई रक्षा सौदे हुए थे, उसकी ऑडिट रिपोर्ट में सीएजी ने कीमतों का खुलासा किया था.
इन सबसे बीच यह सवाल उठता है कि सीएजी रिपोर्ट में राफेल की कीमतों का स्पष्ट तरीके से खुलासा ही नहीं किया गया, यानी सीएजी रिपोर्ट में कीमत का जिक्र करते हुए मिलियन-बिलियन की जगह E+ और H+ जैसे कोड वर्ड लिखे हुए हैं, तो फिर लोगों को कैसे पता चलेगा कि यूपीए शासन के दौरान 2007 में हुई राफेल डील से नरेंद्र मोदी सरकार के समय हुई डील सस्ती है.
सीएजी रिपोर्ट में पेज 120 और 121 पर राफेल विमान कितने में खरीदा गया और खरीद प्रस्ताव कितने का था, इसके बारे में बताया गया है. लेकिन सबसे दिलचस्प यह है कि कीमतों की जगह संकेत चिन्ह दिखते हैं. इससे पहले सरकार ने कीमतों के बारे में पूछे जाने पर बताया था कि फ्रांस और भारत के बीच करार है कि राफेल की कीमतों का खुलासा नहीं किया जाएगा. सीएजी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि फ्रांस सरकार ने राफेल डील में सोवेरन गारंटी की बजाय लेटर ऑफ कंफर्ट का सहारा लिया, जिससे डील से जुड़ी गारंटी पर इसका असर पड़ा.
इन सबसे बीच यह बताना जरूरी है कि सीएजी ने इससे पहले हुए वायु सेना से जुड़े रक्षा सौदे की ऑडिटिंग के बाद रिपोर्ट में इसकी कीमत का खुलासा किया था. जब मार्च 2015 में सीएजी ने रूस से खरीदे जाने वाले फाइटर जेट मिग-219 की ऑडिंटिंग की थी तब इसकी कीमतों का भी खुलासा किया था, जो कि अमेरिकी डॉलर में 740 मिलियन डॉलर और रुपये में 3,568 करोड़ रुपये थी.
इसी तरह मोदी सरकार ने ही मार्च 2016 में 24 बीएई हॉक एजेटी विमान से जुड़े सौदे की ऑडिटिंग की थी और स्षप्ट रूप से कीमतों का जिक्र किया था, जिसमें लिखा था इसपर 1777 करोड़ से 1982 करोड़ रुपये तक खर्च हुए हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिरकार राफेल पर सीएजी रिपोर्ट में इसकी कीमतों का खुलासा क्यों नहीं किया गया. मालूम हो कि सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि राफेल डील का पहला खेप 24 महीनों के अंदर भारत आएगा. पहले खेप में 18 राफेल विमान होंगे.