कुरान में लिखा है- सब्सिडी के पैसे से मक्का-मदीना गए भी तो हज कबूल नहीं होता

केंद्र सरकार ने हज यात्रा पर लगने वाली सब्सिडी अब भले खत्म की है लेकिन मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान की माने तो दूसरों के पैसे या सब्सिडी से मक्का-मदीना और हजरत इब्राहिम के मकाम पर जाकर भी कोई फायदा नहीं क्योंकि हज तभी कबूल होता है जब अपनी कमाई से यात्रा की जाए.

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कुरान में लिखा है- सब्सिडी के पैसे से मक्का-मदीना गए भी तो हज कबूल नहीं होता

Aanchal Pandey

  • January 16, 2018 10:22 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने हज सब्सिडी आज खत्म की है लेकिन कुरान में तो पहले से लिखा है कि दूसरों के पैसे से मक्का-मदीना और हजरत इब्राहिम के मकाम पर जाकर भी कोई फायदा नहीं. हज उसी का कबूल होता है जो अपनी कमाई से हज यात्रा करता है, ना कि सब्सिडी से. हज को इस्लाम के पांच फर्ज में से एक माना जाता है. इस्लाम के पांच फर्ज हैं- शहादा यानी कलमा (ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर रहसूलल्लाह) पढ़ना, नमाज़ यानी प्रार्थना, रोज़ा यानी रमज़ान में उपवास, ज़कात यानी अपनी आमदनी का 40वां हिस्सा (2.5 फीसदी) अनिवार्य तौर पर दान करना और हज यानी मक्का-मदीना की यात्रा करना. इनमें से 4 फर्ज तो हर मुसलमान आसानी से अदा कर लेता है, लेकिन पांचवें फर्ज यानी हज की यात्रा करना सबके बस की बात नहीं होती. इसमें अर्थ यानी पैसा आस्था के आड़े आ जाता है. इसीलिए इस्लाम के नियमों में हज के साथ थोड़ी रियायत बरती गई है. हज उन्हीं के लिए अनिवार्य फर्ज माना गया है, जो अल्लाह के मुकद्दस घर काबा जाने की कूवत रखते हों, सामर्थ्य रखते हों.

सुप्रीम कोर्ट ने हज सब्सिडी के बारे में दाखिल याचिका पर 8 मई 2012 को जो फैसला सुनाया था, उसमें जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई ने हज के बारे में कुरान में बताए गए नियम-कायदों और शर्तों का ज़िक्र किया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कुरान के सूराह 3 की आयत 97 का हवाला दिया था, जिसमें लिखा है- ‘इब्राहिम के मकाम में जो कोई दाखिल होता है, वो महफूज हो जाता है. और काबा में हज करना अल्लाह के प्रति हर इंसान का फर्ज़ है. उसके लिए, जो हज का खर्चा उठा सकता है (आने-जाने और ठहरने का खर्च). जिन्हें हज पर एतबार नहीं, वो अल्लाह को ना मानने वाला है और अल्लाह ऐसे अलामीन का साथ नहीं देता.’

इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुरान के सूराह 2 की आयत 197 का भी ज़िक्र किया है, जिसमें लिखा है- ‘हज चांद साल के दसवें महीने, ग्यारवें महीने और बारहवें महीने के पहले दस दिनों में होता है यानी इस्लामिक साल के दो महीने और दस दिन के दौरान. जो कोई हज करना चाहता है, उसे अपनी बीवी के साथ शारीरिक संबंध, पाप और विवाद से दूर रहना चाहिए. तुम जो कुछ अच्छा करते हो, अल्लाह जानता है. हज के दौरान अपना इंतज़ाम साथ रखो लेकिन सबसे बेहतर इंतजाम है अत-तकवा यानी दया और अच्छाई. इसलिए ऐ समझदार इंसान..मेरा खौफ रखो.’

इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हज यात्रा पर दी जाने वाली सब्सिडी को गैर इस्लामिक बताया था और सरकार को निर्देश दिया था कि हज सब्सिडी को फौरन कम किया जाए और अगले दस साल (यानी 2022 तक) हज सब्सिडी को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने ही सरकार को कहा था कि हज सब्सिडी की रकम मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और सामाजिक विकास पर खर्च की जा सकती है.

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