नई दिल्ली: ये कोई अनायास नहीं था कि अचानक वेलेंटाइन डे से तीन दिन पहले वीएचपी के फायरब्रांड नेता प्रवीण भाई तोगड़िया पत्रकारों को ये बयान देते हैं, कि युवा जोड़ों को प्रेम करने का अधिकार है. बजरंग दल और संघ को कवर करने वाले पत्रकारों के लिए इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली खबर ये थी कि वेलेंटाइन डे के दिन अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट से शुरू हुआ प्रेमी जोड़ों का विरोध पूरे देश में फैल गया. अब आम आदमी के लिए ये चौंकाने वाला नहीं था, क्योंकि वो बजरंग दल और वेलेंटाइन डे के बीच 36 का आंकड़ा सालों से देखते आ रहे हैं. लेकिन इस बार जो हुआ, वो ये बताता है कि संघ परिवार के अंदर से मोदी सरकार की मुखालफत करने के, उसकी फजीहत करने के मौके ढूंढने की कवायद शुरू हो गई है.
अगर आप पिछली कुछ सालों के आंकड़े देखेंगे तो पाएंगे कि वेलेंटाइन डे पर बजरंग दल कार्यककर्ताओं के विरोध की खबरें या वीडियो धीरे धीरे कम हो गए थे, एक दो इक्का दुक्का वीडियो आए भी तो इसमें वो कार्यकर्ता थे जो बजरंग दल छोड़ चुके थे या जुड़े भी थे बजरंग दल ने उन पर एक्शन लिया. 2017 में बीजेपी ने भी एक मुस्लिम डॉक्टर से हिंदू युवती की शादी का विरोध कर रहे अपने गाजियाबाद नगर अध्यक्ष को पार्टी पोस्ट से हटाकर सख्त चेतावनी पूरी पार्टी के लिए जारी की थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में बजरंग दल के रुख में ये परिवर्तन आया क्यों था? उसकी दो तीन वजहें थीं, सोशल मीडिया का चलन तेजी से बढ़ा और जिसकी वजह से आर्चीज के कार्ड्स का क्रेज घटा और मोहब्बत के इकरार, इजहार सब कुछ मोबाइल पर होने लग गया है. बजरंग दल के निशाने पर आर्चीज की गैलरीज और पार्क्स ही ज्यादा थे, प्रेमी जोड़े अब ज्यादा सेफ जगहों यानी मॉल्स मे जाने लगे हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी बजरंगियों की फजीहत होने लगी थी. तीसरी और बड़ी वजह थी बजरंग दल में एबीवीपी के चहरे की एंट्री.
एबीवीपी यानी विद्यार्थी परिषद संघ के संगठन और बीजेपी में सबसे ज्यादा लीडर प्रोवाइडर के तौर पर जाना जाने वाला संगठन है. एबीवीपी से निकले युवा ज्यादा खुले दिमाग के होते हैं, ज्यादा जोश वाले होते हैं और नई पीढ़ी की नब्ज को बाकी संगठनों से ज्यादा समझते हैं. आज अरुण जेटली, मनोहर पर्रीकर, अमित शाह, धर्मेन्द्र प्रधान, नितिन गड़करी, विजय गोयलस सुरेश भट्ट और सुनील बंसल जैसे तमाम नेता एबीवीपी में ही राजनीति सीखकर बीजेपी में पहुंचे हैं और मजबूत हैं. इसी तरह संघ में भी कोर टीम में दत्तात्रेय हॉसबले सालों तक एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे हैं. बीजेपी के हरियाणा, यूपी, झारखंड और पंजाब जैसे कई राज्यों के प्रदेश संगठन मंत्री एबीवीपी से ही बीजेपी में गए हैं.
शायद ये पहली बार होगा कि एबीवीपी से कोई बजरंग दल में भी गया हो, कुछ साल पहले दिल्ली, ब्रज प्रदेश आदि में प्रांतीय संगठन मंत्री रह चुके मनोज वर्मा को बजरंग दल में भेजा गया और तभी से बजरंग दल के कार्यक्रमों में बदलाव भी आने शुरू हो गए. वेलेंटाइन विरोध के लिए जाना जाने वाला संगठन सोशल मीडिया पर सक्रिय हुआ और हाल ही में पंजाब की अमरिंदर सरकार ने सबसे ज्यादा ब्लड डोनेशन देने के लिए संगठन को सम्मानित भी किया, इस साल भोपाल में आयोजित बजरंग दल के राष्ट्रीय सम्मेलन में मशहूर पहलवान योगेश्वर दत्त ने भी शिरकत की.
हर साल बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक मनोज वर्मा वेलेंटाइन डे से पहले अपने सभी प्रांतों और जिलों के पदाधिकारियों के साथ साथ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को ये मैसेज भेजते हैं, ‘’जय श्री राम, सोशल मीडिया में 14 फरवरी के संदर्भ में बजरंग दल को लेकर लगातार दुष्प्रचार हो रहा है. हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे कि अपने संगठन के बारे में हिंदू समाज में नकारात्मक चर्चा हो. किसी भी प्रकार के प्रदर्शन, प्रेस से 14 फरवरी के संदर्भ में बातचीत, जागरण के नाम पर किसी भी तरह के कार्यक्रम, तथाकथित निगरानी के नाम पर टोलियां निकालना. ऐसा कुछ भी करने पर अपने कार्यकर्ताओं को कठोरता से बचना है. जिम्मेदार कार्यकर्ता कृपया इस सूचना का पालन सुनिश्चित करें. धन्यवाद!’’.
इस साल भी ये मैसेज बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक ने सभी को जारी किया. लेकिन बजरंग दल वाले वीक में ही अचानक वीएचपी की अहमदाबाद इकाई अचानक सक्रिय होती है और वेलेंटाइन डे के विरोध की बात मीडिया से कहती है. उसके बाद प्रवीन भाई तोगड़िया का बयान आता है, और ऐसा बयान जो लोग सोच भी नहीं रहे थे, उन्होंने कहा, ‘’युवक युवतियों को प्रेम करने का अधिकार है, वो प्रेम नहीं करेंगे तो सृष्टि कैसे चलेगी. वेलेंटाइन डे पर किसी तरह की हिंसा या विरोध नहीं होना चाहिए.‘’ इसके बावजूद वेलेंटाइन डे पर जो पहली घटना होती है वो अहमदाबाद में ही साबरमती फ्रंट से शुरू होती है. बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक मनोज वर्मा के पास मीडिया से फोन गए तो उन्होंने पूरी घटना पता करने की बात कही. लग रहा था कि कुछ ऐसा है, जो साफ नहीं है या वो मीडिया से करना नहीं चाहते.
सूत्र बताते हैं कि बजरंग दल की तरफ से पिछले कुछ सालों से ये सब रोका जा रहा था, हालांकि वो ऑफीशियली इसे रोकने का बयान भी मीडिया को नहीं दे रहे थे. बजरंग दल संघ परिवार का आनुषांगिक संगठन जरूर है लेकिन उनके सदस्य या अधिकारी बीजेपी के किसी नेता को भी रिपोर्ट नहीं करते. देखा जाए तो युवा मोर्चा के अलावा कोई भी नहीं करता. बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा है और विश्व हिंदू परिषद में इस वक्त तोगड़िया प्रकरण से तनातनी है. खबरें है कि उनको संघ हटाना चाहता है, लेकिन वो इसके पीछे इशारों में मोदी और अमित शाह की तरफ उंगलियां उठा चुके हैं.
ऐसे में अगर वेलेंटाइन डे पर ऐसी कोई घटना होती है, तो इसमें सीधे सीधे फजीहत मोदी सरकार की ही होती है, और उत्तर पूर्व के कई राज्यों के बाद कर्नाटक, एमपी में तो चुनाव होने ही ही हैं, 2019 की भी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. ऐसे में ये साफ नजर आ रहा है कि संघ परिवार से जुड़ा एक धड़ा नहीं चाहता कि 2019 भी मोदी जीतें, नहीं तो वो और ताकतवर होंगे, जिससे उस धड़े के लिए और मुश्किल हो जाएगी. तोगड़िया उस ध़ड़े की एक मजबूत कड़ी बताए जा रहे हैं और वेलेंटाइन डे पर जो कुछ भी हुआ यानी बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक के स्पष्ट संदेश के बावजूद जगह जगह प्रेमी जोड़ों के साथ बदतमीजी की खबरें आईं, वो भी इसी धड़े का किया धरा था. सूत्र बताते हैं क्योंकि बजरंग दल के पदाधिकारी सीधे वीएचपी से आदेश लेते हैं, इसलिए बीएचपी एक वरिष्ठ पदाधिकारी का आदेश आया तो कई जिलों में ये सब किया गया.
प्रवीण भाई तोगड़िया को शायद इस पूरे प्रकरण की पहले से जानकारी थी या वो इसके खुद सूत्रधार थे, इसलिए दो दिन पहले ही वेलेंटाइन डे और प्रेमियों के समर्थन में बयान देकर खुद को बदनामी से बचाने के इंतजाम कर लिए. लेकिन सूत्र बताते हैं कि जब मीडिया में वेलेंटाइन डे विरोध की खबरें चलीं और उसके बाद युवाओं ने सोशल मीडिया पर गुस्सा जताया तो बीजेपी के कई नेताओं ने अंदरखाने इस पर ऐतराज किया है और ये सारा प्रकरण संघ के वरिष्ठ नेताओं की जानकारी में भी आ गया है. ऐसे में चूंकि सारा असर बीजेपी की 2019 की संभावनाओं पर पड़ता दिख रहा है, कुछ लोग जल्दी एक्शन चाहते हैं. क्योंकि ये तो बस शुरूआत है, संघ से जुड़े कोई संगठन अगर इस तरह की कोई भी हरकत फिर से अंजाम दे सकता है, जिससे कि मोदी सरकार या बीजेपी की फजीहत हो. अभी तक यही माना जा रहा कि मोदी सरकार को संघ का जितना समर्थन मिला है, उतना अटलजी की सरकार को भी नहीं मिला था.
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