नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में बीते गुरुवार को आतंकवाद का सबसे वीभत्स रूप देखने को मिला, जब एक फिदायीन हमले में 37 सीआरपीएफ जवानों के चिथड़े उड़ गए. इस घटना ने न सिर्फ भारत सरकार की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि घाटी में आतंकी गतिविधियों में तेजी के भी संकेत दिए हैं. साथ ही आतंक के सौदागरों द्वारा आतंकी गतिविधियों में आईईडी भरी गाड़ियों और आत्मघाती हमलावरों का भी सहारा लिया जाने लगा है. दरअसल, पिछले कुछ वर्षों के दौरान घाटी के युवाओं के आतंकी संगठन जॉइन करने की खबरें न सिर्फ जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए चिंता का सबब बनीं हैं, बल्कि आए दिन आतंकरोधी कार्रवाई में लोकल आतंकियों की मौत के बाद घाटी के हालात और बदतर हो रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी का कहना है कि कश्मीरी युवा कभी भी आत्मघाती हमलावर नहीं बनते थे. उनका मानना था कि आत्महत्या करना इस्लाम में हराम माना जाता था. वहीं पश्चिम एशिया में सुसाइड बमर के बारे में वहां के लोग इस्लाम की अलग ही व्याख्या करते थे और उनका मानना था कि ऐसा करना जिहाद है. उनका ये भी मानना था कि आत्मघाती हमलावर इस्लाम के सिपाही हैं.
अधिकारी ने कहा कि बाद में अलकायदा और फिर इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों का सीरिया से अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत अन्य देशों में प्रसार हुआ. इस विचारधारा का प्रभाव कश्मीर में भी दिखने लगा. मालूम हो कि हाल के वर्षों में कई मौकों पर घाटी में इस्लामिक स्टेट के झंडे दिखे हैं.
पुलवामा हमले से पहले वर्ष 2000 में 17 साल के एक कश्मीरी युवक ने विस्फोटक से भरी गाड़ी के साथ खुद को उड़ा लिया था, उसके बाद वर्ष 2005 में भी इस तरह की घटना घटी. बाद में कश्मीरी युवक के आत्मघाती हमलावर बनने की कम ही खबरें आईं.
पुलवामा हमले के बाद एक बार फिर से आशंकाएं जताई जाने लगी हैं कि कश्मीरी आतंकवादी भी अब सीरिया और अफगानिस्तान के आतंकियों की तर्ज पर आत्मघाती हमला और आईईडी ब्लास्ट के जरिये भारत में अपना पैर पसारने की कोशिश में हैं.
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