नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हो गए. पूरे देश में जबरदस्त आक्रोश है. इसे कश्मीर में सुरक्षाबलों पर अब तक का सबसे हमला बताया जा रहा है. हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर लेथपोरा में एक फिदायीन आतंकवादी आदिल अहमद डार ने 350 किलो विस्फोटकों से भरी एसयूवी सीआरपीएफ के काफिले में घुसा दी, जिसके बाद जवानों से भरी दो बसों के परखच्चे उड़ गए.
सड़कें खून से लाल हो गईं और जवानों के चिथड़े चारों ओर बिखरे पड़े थे. एक चश्मदीद ने बताया, धमाका इतना जबरदस्त था कि जमीन में 3 फुट गहरा गड्ढा हो गया और जमीन 8 किलोमीटर तक हिल गई. 78 वाहनों के काफिले में करीब 2547 जवान थे, जो छुट्टियां खत्म होने के बाद ड्यूटी पर लौट रहे थे. घटना के बाद कश्मीर हाई अलर्ट पर है.
लेकिन हाइवे पर हुए इस हमले से अनुमान लगाया जा रहा है कि अभी घाटी में और भी हमले हो सकते हैं. सबसे बड़ा चिंता का विषय यह है कि पुलवामा अटैक का तरीका पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसा है. जिस तरह इन देशों में सुरक्षाबलों पर हमला किया जाता है, यह बिल्कुल उससे मिलता है. कश्मीर में ऐसा हमला आखिरी बार साल 2004 में हुआ था.
10 साल बाद आतंकवादियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया है. इससे माना जा रहा है कि हालात अभी और गंभीर हो सकते हैं. जानकार बताते हैं कि ऐसा हमला बहुत तैयारी के साथ होता है और कई दिनों पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. अफगानिस्तान के आतंकी संगठन अब पाकिस्तानी आतंकवादियों को लड़ाई के लिए कश्मीर भेज रहे हैं.
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