नई दिल्ली: जब भारत में खाद्यान्न की समस्या से निपटने के लिए इंदिरा गांधी ने अमेरिका की शर्त मान ली और देश के इतिहास में पहली बार रुपए का अवमूल्यन कर दिया तो उनका पार्टी के अंदर ही नहीं बाहर भी विरोध शुरू हो गया. कांग्रेस की सभाओं में उनका विरोध भी होने लगा था, भुवनेश्वर में गुस्साई भीड़ ने पथराव कर दिया और एक पत्थर से इंदिरा की नाक टूट गई. ये वाकई में नोटबंदी से भी बड़ा फैसला था, इसका सीधे सीधे असर देश की सेहत पर पड़ना था, जिसके चलते कांग्रेस के अंदर और बाहर दोनों जगह इंदिरा का विरोध शुरू हो गया. इधर 1967 में आम चुनाव होने थे. इंदिरा को देश भर में चुनाव प्रचार भी करना था और अपने इस बड़े फैसले के समर्थन में तर्क भी देने थे.
उनको हटाने की बातें होने लगीं. उसी महीने पुणे की सभा में उन्होंने विरोध कर रहे कांग्रेसियों को भी चेतावनी दे दी कि हिम्मत है तो हटा कर दिखाओ. चुनाव सर पर थे, कामराज कोई रिस्क नहीं ले सकते थे. लेकिन उन्होंने इंदिरा के समर्थकों की टिकट काट दी, इंदिरा अंदर और बाहर दोनों तरफ से फंसी थीं. कांग्रेस की सभाओं में उनका विरोध भी होने लगा था, भुवनेश्वर में गुस्साई भीड़ ने पथराव कर दिया और एक पत्थर से इंदिरा की नाम टूट गई.
घायल इंदिरा फिर भी चुनाव प्रचार में लगी रहीं, घायल इंदिरा को देखकर लोगों का गुस्सा थोड़ा कम जरूर हुआ. कांग्रेस जीती तो सही लेकिन करीब 78 सीटें कम आईं, और 8 राज्यों में कांग्रेस का बहुमत नहीं रहा. ऐसे में इंदिरा की खिलाफत कर रहे नेताओं का क्या हुआ, कौन जीता कौन हारा? जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो.
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