नई दिल्ली : हिंदी आलोचना के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे प्रोफ़ेसर और साहित्यकार मैनेजर पाण्डेय का निधन हो गया है. गोपालगंज (बिहार) जिले के गांव ‘लोहटी’ में जन्में मैनेजर पाण्डेय की हिंदी साहित्य में काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही. जहां बतौर आलोचक उन्होंने पीढ़ी को काव्य से लेकर लेखनी का अलग बल दिखाया. 81 वर्ष की उम्र में उन्होने अंतिम सांसे ली.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर रहे मैनेजर पाण्डेय का जन्म 1941 को हुआ था.अपने समय में वह हिंदी साहित्य के सबसे गंभीर और जिम्मेदार समीक्षकों में रहे हैं. दुनिया भर के समकालीन विमर्शों, सिद्धांतों और सिद्धांतकारों पर उनकी पैनी नज़र और कलम चला करती थी. हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना को, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के आलोक में, देश-काल और परिस्थितियों को देखते हुए अधिक संपन्न बनाया. आलोचना के क्षेत्र में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है. 81 वर्षीय मैनेजर पाण्डेय बिहार के गोपालगंज के रहने वाले थे.
सम्मान की बात करें तो उन्हें साहित्य में दिए गए योगदान के लिए राष्ट्रीय सम्मान, गोकुल चंद आलोचना पुरस्कार, सुब्रमण्यन भारती पुरस्कार और साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया था. उनकी आलोचना की वैश्विक विवेक और आधुनिकता बोध अलग विशेषता है. उनके महत्वपूर्ण समीक्षात्मक कृतियों की बात करें तो उनमें ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि’, ‘शब्द और कर्म’, ‘साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका’, ‘भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य’, ‘आलोचना की सामाजिकता’, ‘हिन्दी कविता का अतीत और वर्तमान’, ‘आलोचना में सहमति असहमति’, ‘भारतीय समाज में प्रतिरोध की परंपरा’, ‘अनभै सांचा’ का नाम सबसे ऊपर है.
साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने कई पुस्तकें संपादित कीं. तमाम गोष्ठियों में उन्होंने अपने व्याख्यानों, गेस्ट लेक्चर और लेखों से नाम कमाया. उन्हें दिल्ली की हिंदी अकादमी की ओर से ‘शलाका सम्मान’ सम्मान भी दिया गया था.
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