नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में कैदियों से जाति के आधार पर भेदभाव पर आज ऐतिहासिक फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जाति व्यवस्था को देखकर उच्च और निम्न जातियों से अलग बर्ताव नहीं किया जा सकता. सभी राज्य 3 महीने में अपने जेल के मैनुअल में संशोधन कर जल्द इसे सुनिश्चित करें.
सामाजिक कार्यकर्ता सुकन्या शांता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह मसला उठाया था. कोर्ट ने यूपी, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों का उदाहरण देकर बताया कि कैदियों को यहां जातियों के हिसाब से काम दिया जाता है. यहां तक की रहने की व्यवस्था भी जाति के मुताबिक होती है.
भारत के कई राज्यों में जेल नियमावली में भेदभाव भरी बातें लिखी हैं. खाना बनाने का काम उच्च जाति के कैदियों को दिया जाता है. वहीं सफाई का काम छोटे जाति के कैदियों को दिया जाता है. कुछ जातियों को आदतन अपराधी भी लिखा गया है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता को अहम विषय उठाने के लिए धन्यवाद दिया. कोर्ट ने कहा कि संविधान सबको बराबरी का दर्जा देता है. अनुच्छेद 17 में छुआछूत पर रोक भी लगाई गई है. अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को गरिमा से जीने का अधिकार देता है. यह सभी प्रावधान जेलों में भी लागू हैं. कैदियों के रहने की व्यवस्था या जेल में उन्हें दिए जाने वाले काम में जाती का कोई महत्व नहीं होना चाहिए. कैदीयों की जाति दर्ज करने का कॉलम जेल में नहीं होना चाहिए
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