नई दिल्ली. एसएसटी एक्ट में पहले जमानत के प्रावधान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बदलाव किए, उसके बाद दलित संगठनों ही नहीं राजनीतिक पार्टियों यहां तक कि एनडीए की सहयोगी पार्टियों ने भी सरकार पर दवाब बनाया और रिव्यू पिटीशन से लेकर संसद में भी कानून बनाकर सरकार ने वो बदलाव वापस कर दिया. पहले इस पर दलितों ने भारत बंद रखा और 6 सितम्बर को सरकार के फैसले के विरोध में सवर्ण संगठनों ने भी भारत बंद का आव्हान किया. ऐसे में आम धारणा ये बनी है कि सवर्ण अब मोदी सरकार के खिलाफ आ गए हैं और 2019 के चुनावों में नरेन्द्र मोदी को काफी मुश्किल इसके चलते हो सकती है.
लेकिन क्या ऐसा भी हो सकता है कि मोदी को सवर्णों के इस आंदोलन का, इस खुलेआम खिलाफत के चलते कुछ फायदा भी हो. लेकिन ये मुमकिन है, शायद इसीलिए अभी तक केन्द्र सरकार या बीजेपी ने सवर्णों की शिकायत दूर करने की दिशा में कोई कदम उठाना तो दूर आश्वासन तक नहीं दिया है.
लेकिन मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार के कदम के बाद ये बयान देकर सबको चौंका दिया कि गरीब सवर्णों को भारत में आरक्षण दिया जाना चाहिए. ये और भी चौंकाने वाला था कि परेशान मोदी को होना चाहिए लेकिन आमतौर पर बड़े बड़े मुद्दों पर चुप्पी साधने वाली, मीडिया से दूरी बरतने वाली मायावती क्यों सांमने आईं, जबकि उन्हें दलितों की मसीहा कहा जाता है. ऐसे में ये सवाल उठते हैं कि कहीं सवर्ण आंदोलन से मोदी सरकार को क्या वाकई में नुकसान हीं हो रहा है, या कुछ फायदे भी हो रहे हैं.
इस सवर्ण आंदोलन से मोदी सरकार को होने वाले दो बड़े फायदों के बारे में जानिए विष्णु शर्मा के साथ इस स्पेशल रिपोर्ट में-
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