नई दिल्ली। आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. एनडीए ने आदिवासी महिला नेत्री और झारखण्ड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू पर दांव खेला है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस बात की घोषणा की. नड्डा ने बताया कि पार्टी ने राष्ट्रपति चुनावों को लेकर किए गए मंथन के दौरान 20 से ज्यादा नामों पर विचार किया. इनमें से द्रौपदी मुर्मू को एनडीए का उम्मीदवार चुना गया है.
जानकारी के मुताबिक द्रौपदी मुर्मू 25 जून को अपना नामांकन दाखिल कर सकती हैं. इसके लिए बीजेपी ने 24 और 25 को अपने सभी वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को दिल्ली में रहने के निर्देश दिए हैं. फिलहाल द्रौपदी मुर्मू छह साल एक महीने तक झारखंड के राज्यपाल पद पर रह चुकी हैं.
तीन नेताओं के मना करने के बाद आखिरकार विपक्ष को राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना कल चेहरा मिल गया. पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ही वह नाम है जो विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार बनेंगे. जहां राजनीतिक जानकारों के बीच इस खबर से काफी हलचल देखने को मिल रही है. बता दें, यशवंत सिन्हा ने साल 2018 में बीजेपी को छोड़ा था, इस समय वह तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं. सिन्हा दो बार केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके है. पहली बार वह 1990 में चंद्रशेखर की सरकार में और फिर अटल बिहारी वाजपेयी नीत सरकार में वित्त मंत्री थे. वह वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री भी रहे हैं.
राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने वाली दो सबसे बड़े राजनीतिक गठबंधन एनडीए और यूपीए ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। यूपीए की तरफ से जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए दावेदारी ठोक दी है। वहीं दूसरी तरफ एनडीए ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया है। संख्याबल के हिसाब से मुर्मू के जीतने की सबसे ज्यादा संभावना दिखाई दे रही है। क्योंकि यूपीए गठबंधन के पास फिलहाल 23 फीसदी के लगभग वोट है, वहीं एनडीए गठबंधन के पास यूपीए के दोगुने से भी ज्यादा लगभग 49 प्रतिशत वोट है. इससे साफ पता चल रहा है कि यूपीए के मुकाबले में बीजेपी को बड़ी बढ़त हासिल है. लेकिन विपक्ष ने मिलकर संयुक्त तौर पर कोई उम्मीदवार खड़ा कर दिया और देश के सभी क्षेत्रीय दलों ने उसे अपना समर्थन दे दिया तो बीजेपी उम्मीदवार के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी. क्योंकि बीजेपी विरोधी सभी दलों के एकजुट होने के बाद उनके पास एनडीए से दो प्रतिशत ज्यादा यानि 51 प्रतिशत के लगभग वोट हो जाएंगे.
बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के लिए एनडीए के पक्ष में 440 सांसद हैं जबकि यूपीए के पास लगभग 180 सांसद हैं, इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के 36 सांसद हैं. टीएमसी आमतौर पर विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करती है. आकलन के मुताबिक, एनडीए के पास कुल 10,86,431 में से करीब 5,35,000 मत हैं. इसमें उसके सहयोगियों के साथ उसके सांसदों के समर्थन से 3,08,000 वोट शामिल हैं. राज्यों में बीजेपी के पास उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा 56,784 वोट हैं, जहां उसके 273 विधायक हैं. उत्तर प्रदेश में प्रत्येक विधायक के पास अधिकतम 208 वोट हैं. बिहार में बीजेपी को 127 विधायकों के साथ, उसे 21,971 वोट मिलेंगे, क्योंकि प्रत्येक विधायक के पास 173 वोट हैं. इसके बाद महाराष्ट्र से 18,375 वोट हैं, जहां उसके 105 विधायक हैं और प्रत्येक के पास 175 वोट हैं. यूपीए के पास सांसदों के 1.5 लाख से अधिक वोट हैं और करीब इस संख्या में उसे विधायकों के भी वोट मिलेंगे. अतीत के कुछ चुनावों में भी विपक्ष के उम्मीदवार को तीन लाख से थोड़ा अधिक मत मिलते रहे हैं. इस बार प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य 700 होगा. पहले यह 708 था.
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