नई दिल्ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण वाले बिल पर मुहर लगा दी, जिससे अब यह कानून बन गया है. यह बिल लोकसभा और राज्यसभा से पहले ही पास हो चुका है. अब तक संविधान में 49.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था, जिसमें 15 प्रतिशत अनुसूचित जातियों, 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के लिए और 27 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए रखा गया है. राज्यसभा में 165 सांसदों ने हां और 7 ने बिल के खिलाफ वोट किया.
राहुल गांधी की कांग्रेस ने बिल को सिलेक्ट कमिटी को भेजे पाने का प्रस्ताव रखा था, जो बाद में गिर गया. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यह बिल नरेंद्र मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. मंगलवार को जब यह बिल लोकसभा में पेश हुआ तो काफी हंगामा मचा था. हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार के इस बिल को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनावी स्टंट बताते हुए समर्थन देने का ऐलान किया था. एनसीपी और कांग्रेस भी लोकसभा में इस बिल के समर्थन में नजर आए थे.
हालांकि लोकसभा में इस बिल को पास कराना मोदी सरकार के लिए मुश्किल नहीं था. असल चुनौती राज्यसभा में थी. उच्च सदन में एनडीए के सिर्फ 90 सांसद हैं. इनमें से भाजपा के 73, 7 निर्दलीय और मनोनीत, अकाली दल और शिवसेना के 3, पूर्वोत्तर पार्टियों के 3 और आरपीआई का एक सांसद है. वहीं विपक्ष इस सदन में 145 सदस्यों के साथ बेहद मजबूत है. कांग्रेस के राज्यसभा में 50, सपा के 3, टीएमसी के 13, एआईएडीएमके के 13, टीडीपी के 6, बीजेपी के 9, बसपा के 4, एनसीपी के 4, सीपीआई के 2, सीपीएम के 5, आरजेडी के 5, जेडीएस, केरल कांग्रेस, आईएएनएलडी, आईयूएमएल के एक-एक सांसद के अलावा एक नामित और एक निर्दलीय सदस्य शामिल है. लेकिन भारी हंगामा के बावजूद बिल राज्ससभा से भी पास हो गया.
Rajya Sabha Quota Bill: लोकसभा से पास 10% सवर्ण आरक्षण बिल राज्यसभा से जस का तस पारित
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