President Bodyguard Caste: दिल्ली हाई कोर्ट ने हरियाणा निवासी गौरव यादव की याचिका पर सुनवाई की जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की नियुक्ति जाति के आधार पर होती है. इस याचिका के अनुसार 4 सितंबर 2017 को राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की नियुक्ति के लिए केवल तीन जातियों- जाट, राजपूत और जाट सिख से ही आवेदन मांगे गए.
नई दिल्ली. दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से हरियाणा के एक निवासी की याचिका पर जवाब मांगा है. इस याचिका में पूछा गया है कि केवल तीन जाति के लोग ही क्यों राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड बनते हैं? जस्टिस एस मुरलीधर और संजीव नरुला की पीठ ने याचिका पर रक्षा मंत्रालय, सेनाध्यक्ष, राष्ट्रपति के अंगरक्षक और निदेशक कमांडेंट और सेना भर्ती आधिकारियों को नोटिस भेजा. पीठ ने कहा, ‘इस पर जवाब चार हफ्तों में दिया जाना चाहिए. उसके बाद किसी भी तरह का जवाब अगली तारीख 8 मई 2019 तक दिया जाना चाहिए.’
कोर्ट ने ये सुनवाई हरियाणा निवासी गौरव यादव की याचिका पर की. याचिका में राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की नियुक्ति के बारे में सवाल किया गया था. पूछा गया है कि क्या केवल तीन जाति- जाट, राजपूत, जाट सिख के लोगों से ही 4 सिंतबर 2017 को राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की नियुक्ति के आवेदन मंगवाए गए थे. याचिकाकर्ता ने कहा कि वो अहीर/यादव जाति का है और उसने राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड के लिए मांगी गई सभी योग्यता पूरी की केवल जाति को छोड़कर और उम्मीद रखी की उसको इस पोस्ट पर नौकरी मिलेगी. याचिकाकर्ता के वकील राम नरेश यादव ने इस बारे में कहा, ‘तीन जातियों को दी गई प्राथमिकता के कारण वो नागरिकों नौकरी के इस मौके से पीछे रह गए जो इसके लिए योग्य थे.’
याचिका में कहा गया, ‘राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की नियुक्ति नियमों के अनुसार ये जाति के आधार पर की जाती है. इसी कारण से भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. साथ ही ये नियुक्ति प्रक्रिया आर्टिकल 15 (1) का भी उल्लंघन है जिसमें जाति, धर्म, रंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव करना मना है.’ याचिका में कहा गया कि नियुक्ति प्रक्रिया में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है और संविधान में कहा गया है कि सरकारी कार्यालयों में नियुक्ति के लिए भेदभाव नहीं किया जाएगा. राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड केवल तीन जाति से ही चुने जाते हैं. ये एक सरकारी कार्यालय हुआ इसलिए इस नियुक्ति प्रक्रिया से संविधान का उल्लंघन हो रहा है. इसी याचिका पर अब केंद्र सरकार से नोटिस मांगा गया है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका पर ये कहकर सुनवाई नहीं की थी कि कोर्ट इस तरह की याचिका पर सुनवाई नहीं करता.