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कुमाऊं की ऊंचाइयों में मोर की मौजूदगी ने उड़ाई वैज्ञानिकों की नींद, बड़े खतरे की आशंका

कुमाऊं हिमालय के बागेश्वर जिले में एक अनोखी और हैरान करने वाली घटना सामने आई है। आमतौर पर निचले इलाकों में पाए जाने वाले मोर अब 6500 फीट

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कुमाऊं की ऊंचाइयों में मोर की मौजूदगी ने उड़ाई वैज्ञानिकों की नींद, बड़े खतरे की आशंका
  • October 5, 2024 9:09 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: कुमाऊं हिमालय के बागेश्वर जिले में एक अनोखी और हैरान करने वाली घटना सामने आई है। आमतौर पर निचले इलाकों में पाए जाने वाले मोर अब 6500 फीट की ऊंचाई पर दिखाई दे रहे हैं, जिसने वन्यजीव विशेषज्ञों को चौंका दिया है। आमतौर पर मोर समुद्र तल से 1600 फीट तक की ऊंचाई वाले इलाकों में रहते हैं, लेकिन इतनी ऊंचाई पर उनकी मौजूदगी विशेषज्ञों के लिए चिंता का कारण बन रही है।

पहाड़ी इलाकों में मोर, क्या यह जलवायु परिवर्तन का संकेत है?

इस घटना ने वैज्ञानिकों के बीच चर्चा शुरू कर दी है कि कहीं यह जलवायु परिवर्तन का संकेत तो नहीं? भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिक बी.एस. अधिकारी का कहना है कि मोर का इस ऊंचाई पर पहुंचना असामान्य है और यह पर्यावरणीय बदलाव का संकेत हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस घटना की गहराई से जांच जरूरी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह बदलाव किसी बड़े पर्यावरणीय संकट का संकेत तो नहीं है।

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कैसे हुआ खुलासा?

करीब दो महीने पहले स्थानीय लोगों ने पहली बार कफलिगैर में 5200 फीट की ऊंचाई पर मोर को देखा था। इसके बाद वन विभाग ने इलाके में कैमरा ट्रैप लगाए और लगातार निगरानी की। अब, 6500 फीट की ऊंचाई पर मोर के वीडियो मिले हैं, जो और भी ज्यादा चौंकाने वाला है। विशेषज्ञ अब यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कोई अलग-थलग घटना है या फिर जलवायु परिवर्तन के कारण वन्यजीवों के व्यवहार में कोई स्थायी बदलाव आ रहा है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

जानकारों का मानना है कि मोर का इतनी ऊंचाई पर पहुंचना सामान्य नहीं है और यह बड़े पर्यावरणीय बदलाव का संकेत हो सकता है। इस घटना को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों की ओर इशारा कर रही है। वन्यजीवों के रहन-सहन और प्रवास में ऐसे बदलाव भविष्य के लिए चिंताजनक साबित हो सकते हैं।

पर्यावरणीय बदलाव या कोई और कारण?

अब यह देखना महत्वपूर्ण है कि मोर का इतनी ऊंचाई पर पहुंचना महज एक संयोग है या फिर यह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है। वन विभाग और वैज्ञानिक इस पर गहराई से अध्ययन कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।

 

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