कथाओं के अनुसार द्वापर युग में माता वैष्णो यहां पर पांच वर्ष की उम्र में कन्या के रूप में प्रकट हुईं. इसी स्थान पर 12 वर्ष तक तपस्या की और तपस्या वाले स्थान पर पिंडी रूप धारण किया. ऐसी मान्यता है कि कोल कंडोली माता के दर्शन किए बिना यात्र आरंभ नहीं होती. अनेक श्रद्धालु अभी भी कौल कंडोली माता मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं, लेकिन जानकारी न होने और जम्मू से सीधे कटड़ा के लिए बस सेवा होने के कारण अधिकांश श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन नहीं कर पाते हैं. वैष्णो देवी यात्रा
नई दिल्ली. श्री माता वैष्णो देवी के पारंपरिक रूट बम्याल में दो पुलों का निर्माण करवाकर कटड़ा को सीधे अखनूर, मथवार, पुंछ, राजौरी से जोड़ने की तैयारी की जा रही है. 25 किलोमीटर के इस मार्ग पर सेंट्रल रोड फंड के तहत काम तेजी से चल रहा है. नगरोटा के विधायक देवेंद्र राणा ने बताया कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चर हेरीटेज ने प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उन सभी मंदिरों का जिक्र है, जहां परंपरा के अनुसार दर्शन करना जरूरी माना गया है.
देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धालु जल्द ही प्राचीन पारंपरिक मार्ग से होते हुए भी माता वैष्णो देवी के दरबार तक पहुंच सकेंगे. नगरोटा से कटड़ा तक 25 किमी लंबे इस रास्ते में अनेक प्राचीन मंदिर मौजूद हैं, जिनके दर्शन का लाभ श्रद्धालु उठा सकेंगे. मान्यता है कि इन मंदिरों का दर्शन किए बिना मां वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी रहती है. यह रूट देश के विभाजन के बाद से बंद है. अब राज्य सरकार इसे पुन: शुरू करने जा रही है. इस रास्ते में मार्ग पर कई प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हुआ करते थे. इनमें मां वैष्णो देवी मंदिर पंगोली, ठंडा पानी, शिव शक्ति मंदिर मढ़-द्रावी, राजा मंडलीक मंदिर, काली माता मंदिर गुण्डला, प्राचीन शिव मंदिर बम्याल, ओली मंदिर बम्याल, देवा माई शामिल हैं.
मान्यता के अनुसार जम्मू से करीब आठ किमी दूर नगरोटा स्थित कोल कंडोली देवी मंदिर में प्रथम दर्शन कर ही दुर्गम यात्र की शुरुआत की जाती थी. कोल कंडोली से देवा माई कटड़ा तक पारंपरिक मार्ग 25 किलोमीटर लंबा है. मार्ग के दोनों और चीड़ के पेड़ हैं और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर अनेक नजारे देखने को मिलते हैं. अनेक ऐतिहासिक मंदिर इस मार्ग को अद्भुत बनाते हैं. भारत-पाक बंटवारे के बाद यह मार्ग यात्र के लिए बंद हो गया. मान्यता है कि मां वैष्णो देवी भी इसी मार्ग से त्रिकूट पर्वत गई थीं. इस मार्ग में सबसे पहले दर्शन कौल कंडोली माता के होते हैं.
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