विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीन तोगड़िया 15 जनवरी की रात अहमदाबाद में अचानक गायब हुए थे. बाद में उन्हें शाही बाग इलाके से बेहोशी की हालत में पाया गया. इसके बाद उन्होंने मीडिया के सामने केंद्र सरकार पर निशाना साधा. ये वही तोगड़िया है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने दोस्त कहे जाते हैं.
नई दिल्ली. विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ प्रवीन तोगड़िया आज रो पड़े. हिंदुत्व के मुद्दे पर आग उगलने के लिए मशहूर डॉ तोगड़िया अपनी ‘जान बचाने’ के लिए 15 जनवरी की रात अहमदाबाद में अचानक गायब हुए थे. बाद में उन्हें शाही बाग इलाके से बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल से बाहर आकर उन्होंने मीडिया के सामने अपना दुखड़ा सुनाया. उनके निशाने पर थी केंद्र सरकार, जिसके मुखिया डॉ तोगड़िया के पुराने दोस्त नरेंद्र मोदी हैं.
पिछले डेढ़ दशक से तोगड़िया और मोदी के रिश्ते सामान्य नहीं थे. उससे पहले दोनों पक्के दोस्त हुआ करते थे. अहमदाबाद के राजनीतिक गलियारों को करीब से देखने वालों का कहना है कि 1980 के दशक में मोदी और प्रवीन तोगड़िया संघ की एक ही शाखा में जाते थे. अक्सर लोगों ने प्रवीन तोगड़िया के स्कूटर की पिछली सीट पर नरेंद्र मोदी को सवारी करते देखा. दोनों संघ के प्रिय थे और संघ ने ही अलग-अलग संगठनों में दोनों की भूमिका निर्धारित की. 1983 में तोगड़िया को विश्व हिंदू परिषद में जिम्मेदारी सौंपी गई और नरेंद्र मोदी को 1984 में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक से बीजेपी में संगठन के काम में लगाया गया.
वीएचपी और बीजेपी में रहते हुए भी डॉ तोगड़िया और मोदी की दोस्ती कायम रही. गुजरात में जब 1990 के दशक में केशूभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के बीच सत्ता संघर्ष सड़क पर आया, तब भी तोगड़िया और मोदी ही केंद्र में थे. वाघेला ने जब तोगड़िया को गिरफ्तार कराया, उस वक्त तोगड़िया के समर्थन में मोदी सड़क पर उतरने में भी नहीं हिचके. उसी के चलते 1995 में मोदी को गुजरात की राजनीति से दूर करना पड़ा. 1995 से 2001 तक मोदी के गुजरात जाने पर अघोषित पाबंदी थी. निजी यात्रा पर मोदी अगर गुजरात जाते भी थे, तो बीजेपी दफ्तर की बजाय उनका वक्त विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय में ही बीतता था.
माना जाता है कि 2001 में जब संघ ने नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का संदेश बीजेपी आलाकमान को भेजा, तब संघ में मोदी की पैरवी करने वालों में डॉ प्रवीन तोगड़िया भी थे. 2002 में गुजरात दंगों में वीएचपी और बजरंग दल की भूमिका सवालों में घिरी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस वक्त मोदी को हटाने के मूड में थे. उन्होंने खुलकर कहा था कि मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए. मोदी की कुर्सी तब मुश्किल से बची थी. उसी के बाद मोदी ने गुजरात में राज-काज का तरीका बदला और उसी के साथ बदल गया मोदी और तोगड़िया का रिश्ता.
सूत्रों का कहना है कि 2002 के दंगों के बाद मोदी ने गुजरात में गृह मंत्रालय की कमान पूरी तरह अमित शाह को सौंप दी, जो मोदी के अधीन आने वाले गृह मंत्रालय में राज्यमंत्री थे. मोदी ने अमित शाह को खुली छूट दी थी और प्रवीन तोगड़िया को साफ संदेश भी दे दिया था कि वो गुजरात के गृह मंत्रालय के कामकाज में किसी तरह की दखलअंदाज़ी ना करें. मोदी ने अमित शाह के लिए गोरधन झड़फिया को गृह मंत्रालय से बाहर किया था, जो तोगड़िया के चहेते थे. कहते हैं कि प्रवीन तोगड़िया को यही बात नागवार गुजरी और वो मोदी के आलोचक बनते चले गए.
कट्टर हिंदुत्व के पैरोकार प्रवीन तोगड़िया को मोदी ने अपनी आलोचना का मौका भी खुद मुहैया कराया. गुजरात में अतिक्रमण हटाने के नाम पर 200 मंदिरों को ध्वस्त करने का मुद्दा ऐसा ही था. वीएचपी ने प्रवीन तोगड़िया की अगुवाई में इसका जमकर विरोध किया. 2011 में जब मोदी ने सदभावना उपवास शुरू किया, तब प्रवीन तोगड़िया ने कहा था कि मोदी भी अब धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ रहे हैं, वो हिंदुत्व के एजेंडे का त्याग कर रहे हैं.
मोदी और तोगड़िया को संघ ने जैसे-तैसे बरसों तक साधा लेकिन पिछले तीन-चार महीनों से तोगड़िया और संघ के बीच भी खटक गई. दरअसल 31 दिसंबर 2017 को तोगड़िया और वीएचपी के अध्यक्ष राघव रेड्डी का कार्यकाल खत्म हो रहा था. वीएचपी के कार्यकारी बोर्ड की भुवनेश्वर में हुई बैठक में संघ चाहता था कि राघव रेड्डी की जगह वी कोकजे को वीएचपी का अध्यक्ष बना दिया जाए. तोगड़िया ने इसका विरोध किया. वो रेड्डी को अध्यक्ष पद पर बनाए रखना चाहते थे.
संघ और तोगड़िया के बीच तनातनी इतनी बढ़ी कि उन्होंने खुली सभा में आरोप लगा दिया कि कुछ नेता उन्हें हटाना चाहते हैं. तोगड़िया ने यहां भी संघ की बजाय परोक्ष रूप से मोदी को ही निशाने पर रखा. उन्होंने राम मंदिर और गोरक्षा के मुद्दों पर केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया. हैरानी इस बात पर हुई कि तोगड़िया ने गोसेवा के लिए कांग्रेस की नीतियों को मोदी सरकार की नीतियों से बेहतर बताया.
अब इसे इत्तेफाक समझें या कुछ और, लेकिन तोगड़िया के इन्हीं तेवरों के बाद अचानक उनके खिलाफ पुराने मुकदमों की फाइल खुलनी शुरू हो गई. बीते 15 दिनों में उनके खिलाफ गुजरात और राजस्थान में दर्ज 20-22 साल पुराने मामलों में समन जारी हुआ. गुजरात वाले मामले में तो प्रवीन तोगड़िया खुद अपने समर्थकों के साथ कोर्ट में पेश हो गए लेकिन राजस्थान वाले केस में उन्होंने क्लेश मचा दिया. अब तोगड़िया आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार उनके खिलाफ साज़िश रच रही है. वो घर से गायब हुए, क्योंकि उन्हें किसी ने फोन करके बताया था कि आपका एनकाउंटर हो जाएगा.