Prashant Bhushan contempt Case: प्रशांत भूषण ने अपने बयाम में आगे कहा कि 'मेरा बयान सद्भावनापूर्थ था. अगर मैं इस कोर्ट के समक्ष अपने बयान वापस लेता हूं, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफी की पेशकश करता हूं तो मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी, जिसमें मैं सर्वोच्च विश्वास रखता हूं.
नई दिल्ली: कोर्ट की अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगने से इनकार कर दिया है, उनका स्टैंड है कि ट्वीट में उन्होंने जो कहा वो उनका विचार था और वो उसपर कायम रहेंगे. जजों के खिलाफ ट्वीट के लिए अवमानना का दोषी पाए गए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है जिसमें उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आशा का अंतिम गढ़ है. उन्होंने आगे कहा कि ट्वीट उनके विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं और अपने बयानों को वापस लेना निष्ठाहीन माफी होगी.
प्रशांत भूषण ने अपने बयाम में आगे कहा कि ‘मेरा बयान सद्भावनापूर्थ था. अगर मैं इस कोर्ट के समक्ष अपने बयान वापस लेता हूं, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफी की पेशकश करता हूं तो मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी, जिसमें मैं सर्वोच्च विश्वास रखता हूं.’ दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अपने ट्वीट को लेकर माफी ना मांगने के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए तीन दिनों का समय दिया था और कहा था कि उन्हें माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने इस मामले में होने वाली सजा की प्रकृति को किसी अन्य पीठ के पास भेजने की अपील की थी. जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रशांत भूषण की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से कहा कि उन्हें इस मामले में दोषी ठहराए जाने संबंधी पुनर्विचार याचिका पर जब तक कोई फैसला नहीं आ जाता, तब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी यानी उन्हें दी जाने वाली सजा लागू नहीं होगी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर पर न्यायाधीशों को लेकर की गई टिप्पणी के लिए 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को दोषी ठहराया था. प्रशांत भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छह वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जून को शीर्ष अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे तथा चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी.
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