नई दिल्ली. देश के दो बार प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के निधन के बाद राजनीतिक दल और राजनेता उन्हें अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं. एक बात पर लगभग सभी सहमत हैं कि 1991 में मनमोहन सिंह ने देश की डूबती अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी थी और इसके लिए वह हमेशा याद किये जाएंगे. पूर्व प्रधानमंत्री मूलत: अर्थशास्त्री और सीधे साधे इंसान थे जिसमें दिखावा बिल्कुल नहीं था.
राजनीति में उनका प्रवेश 1991 में हुआ जब वह पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बने. तभी वह असम से राज्यसभा सदस्य चुने गये और लगातार 33 साल तक राज्यसभा सदस्य रहे. निधन से कुछ माह पहले तक वह राजस्थान से राज्यसभा सदस्य थे. वित्त मंत्री बनने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उदारीकरण और बाजारीकरण का रास्ता अख्तियार किया और इसके लिए वह हमेशा याद किये जाएंगे.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक ऐसा अर्थशास्त्री जिसका न तो कोई जनाधार था और न ही राजनीति का कोई खास अनुभव, आखिर वह कैसे बन गया देश का पीएम? दरअसल बात 2004 की है, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और इंडिया शाइनिंग का नारा उछाला गया था, उन्हें सलाह दी गई कि नारा काम कर रहा है और समय से थोड़ा पहले चुनाव करा दिया जाए.
कहते हैं कि स्वर्गीय प्रमोद महाजन इसके सबसे बड़े पैरोकार थे. 13 मई 2004 को आम चुनाव के नतीजे आ रहे थे और एनडीए आगे पीछे हो रही थी. जब अंतिम नतीजे आये तो एनडीए हार गई और यूपीए ने अप्रत्याशित रूप से बाजी जीत ली. इसके बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि पीएम कौन बनेगा. सोनिया गांधी को राजनीति में आये महज छह साल हुए थे. इस चुनाव ने कांग्रेस को दुर्दशा से उबारा था इसलिए सोनिया गांधी पर कार्यकर्ताओं का दबाव था कि वह पीएम बनें.
सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली थी तभी विदिशी मूल का मुद्दा उछाल दिया गया था और शरद पवार, तारिक अनवर व पीए संगमा ने अलग होकर एनसीपी बना ली थी. अब बारी भाजपा की थी, चुनाव हार चुकी भाजपा व एनडीए ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल वाली बात को उछाल दिया. सोनिया गांधी को पीएम बनाने का विरोध होने लगा.
उमा भारती और सुषमा स्वराज ने महिला नेत्री के रूप में विरोध की कमान संभाली और ऐसा होने पर केश मुंडन कराने का ऐलान कर दिया. लगभग एक हफ्ते तक मंथन चलता रहा और 18 मई 2004 को सोनिया गांधी सबके सामने आईं और दो टूक कहा कि उन्होंने पीएम न बनने का फैसला किया है. यह सुनते ही नेताओं और कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब देने लगा.यहां तक कहा गया कि वह कार्यकर्ताओं से विश्वासघात नहीं कर सकतीं. 10 जनपथ के बाहर भी विरोध प्रदर्शन होने लगे.
पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा One Life Is Not Enough में लिखा है कि 17 मई 2004 की दोपहर 2 बजे वे 10 जनपथ पहुंचे. कमरे में सोनिया गांधी सोफे पर बैठी थीं और बेचैन दिख रही थीं. मनमोहन सिंह और प्रियंका गांधी पहले से वहां मौजूद थे, तभी राहुल गांधी वहां आए और उन्होंने सोनिया गांधी से कहा आपको प्रधानमंत्री नहीं बनना है. मेरे पिता की हत्या कर दी गई. दादी की हत्या कर दी गई. छह महीने में आपको भी मार देंगे. इसके बाद वहां सन्नाटा पसर गया.
कोई कुछ नहीं बोल रहा था, इतना ही नहीं राहुल गांधी ने सोनिया गांधी को सोचने के लिए 24 घंटे का वक्त दिया और उन्हें पीएम बनने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कही. इसके बाद सोनिया गांधी भारी दबाव में आ गईं थी और उनकी आंखों में आंसू थे. प्रियंका सिर्फ इतना कह पाईं कि राहुल कुछ भी कर सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमनिस्ट नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How Prime Ministers Decide में भी इस दावे की पुष्टि की है. वह कहती हैं कि नटवर सिंह के अलावा वीपी सिंह ने भी उन्हें बताया था कि सोनिया गांधी के बच्चे नहीं चाहते कि वे प्रधानमंत्री पद स्वीकार करें, वे डरे हुए हैं. नीरजा चौधरी ने सोमनाथ चटर्जी की बातों का भी उल्लेख किया है.
सोमनाथ चटर्जी ने भी वीपी सिंह की बातों की पुष्टि करते हुए कहा था कि हमने तो उन्हें पीएम के तौर पर स्वीकार कर लिया था, लेकिन उनके बच्चे नहीं चाहते थे कि वह पीएम बनें. ठीक इसी तरह से वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने भी अपनी किताब V.P Singh, Chandrashekhar, Sonia Gandhi Aur Main में इसका उल्लेख किया है.
अपनी किताब “The PM India Never Had” शीर्षक वाले अध्याय में प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा कहती हैं कि सोनिया गांधी के पीएम पद के रेस से हटने के बाद प्रबल दावेदारों के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के नामों पर चर्चा हो रही थी. मुझे कुछ दिनों तक बाबा (प्रणब मुखर्जी) से नहीं मिल पाई, वह बहुत व्यस्त चल रहे थे लेकिन मैंने उनसे फोन पर बात की. पूछा कि क्या वह प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. उनका दो टूक जवाब था, नहीं, वह मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनाएंगी’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह होंगे.
हालांकि, प्रणब मुखर्जी मनमोहन सिंह से वरिष्ठ थे. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा A Promised Land में लिखते हैं कि वह पार्टी की तरफ से पीएम पद के दावेदार नहीं थे. यह पद उन्हें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिया था. कई राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि उन्होंने बुजुर्ग सिख को इसलिए चुना, क्योंकि उनका कोई राजनीतिक आधार नहीं था.
इसमें कहीं कोई दो राय नहीं कि पीएम पद के सशक्त दावेदार प्रणब मुखर्जी ही थे लेकिन सोनिया गांधी उन्हें तरजीह नहीं दे रही थीं. वह काफी अनुभवी थे लेकिन सोनिया गांधी की कितनी बात सुनते इसको लेकर गांधी परिवार आश्वस्त नहीं था. मनमोहन सिंह का कोई राजनैतिक जनाधार नहीं था और स्वभाव से विनम्र थे लिहाजा ये बात उनके हक में गई और उन्होंने 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. पहला कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरी बार 2009 में फिर पीएम बने और इस तरह पूरे 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे.
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