नई दिल्ली। बिहार के सीएम नीतीश कुमार पिछले कुछ दिनों से विपक्षी एकता को लेकर मुखर हो चुके हैं। उन्होंने दिल्ली में विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात की हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी इस तरह के प्रयासों में लगे हुए हैं। एनसीपी […]
नई दिल्ली। बिहार के सीएम नीतीश कुमार पिछले कुछ दिनों से विपक्षी एकता को लेकर मुखर हो चुके हैं। उन्होंने दिल्ली में विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात की हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी इस तरह के प्रयासों में लगे हुए हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी पर्दे के पीछे से सक्रिय बताए जा रहे हैं।
इन सबके बीच बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती, वाईएसआर कांग्रेस के चीफ और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक कहीं चर्चा में नहीं दिख रहे हैं। ऐसा नजर आ रहा है कि विपक्ष के एकजुट के दायरे से इन नेताओं ने दूरी बना ली है।
अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि मायावती, जगन मोहन रेड्डी, ओवैसी और नवीन पटनायक जैसे नेताओं ने एकजुट विपक्ष आखिर क्यों खुद को अलग कर रखा है? क्यों ये सभी दल एकजुट विपक्ष का हिस्सा नहीं बन रहे? आइए समझते हैं सियासी समीकरण…
जहां एक ओर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर, शरद पवार जैसे बड़े नेता विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर मायावती, जगन मोहन रेड्डी, असदुद्दीन ओवैसी और नवीन पटनायक इन सबसे दूरी बनाए रखे हुए हैं। इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, ‘विपक्षी एकता एक बड़ी चुनौती है। नीतीश कुमार, शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या कोई भी नेता क्यों न हो। वह दूसरे दल के नेता को अपना नेतृत्व नहीं करने देना चाहेंगे। दरअसल, जगन मोहन रेड्डी, मायावती, नवीन पटनायक और ओवैसी इस बात को बखूबी जानते हैं। चलिए तीन बिंदुओं में इसके बारे में समझाते हैं।
बता दें कि बहुजन समाज पार्टी की स्थिति बीते कुछ सालों से काफी खराब चल रही है। ऐसे में मायावती पहले अपनी पार्टी को ही एकजुट करने में लगी हुई हैं। वह पार्टी को नए सिरे से गठन और विस्तार पर काम कर रहीं हैं। मायावती इस बात को बखूबी जानती हैं कि अगर बिना खुद मजबूत हुए वह विपक्ष के साथ मिल जाती हैं तो आने वाले वक्त में उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
एक काहण ये भी है कि मजबूत पार्टियां अपने हिसाब से ही सारे निर्णय लेंगी और मायावती को उसे मानना पड़ेगा। दूसरी वजह ये भी है कि मायावती ने लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। तब उन्हें इसका ज्यादा फायदा देखने को नहीं मिला।
वहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी विपक्ष के घेरेबंदी में कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। दरअसल, ओवैसी खुद को विपक्ष से अलग रखने की कोशिश में लगे हुए हैं। ओवैसी ये बात अच्छे से जानते हैं कि वह अकेले दम पर लड़ेंगे तो उनके वोटों का बंटवारा नहीं होगा।
गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के सीएम और वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी भी एकजुट विपक्ष से दूरी बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी तरह नवीन पटनायक भी विपक्ष से दूरी बनाए हुए हैं। रेड्डी और पटनायक ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए का साथ दिया था। दोनों के व्यक्तिगत संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी अच्छे हैं।
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में भी दोनों विपक्ष से दूरी ही बनाकर रखेंगे। वहीं, दोनों राज्यों में 2024 में ही विधानसभा चुनाव होना हैं। दोनों नेताओं की स्थिति अपने-अपने राज्य में काफी मजबूत है। दोनों ही नहीं चाहते हैं कि विपक्ष के साथ जाकर राज्य के चुनाव में भी सीटों का बंटवारा कर दें। इसलिए फिलहाल रेड्डी और पटनायक अलग रहकर ही राजनीति करना चाहते हैं।