नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में सोमवार को जैसे ही मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हुई, वैसे ही राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले सभी चौंक गए। यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी ने सीएम के नाम को लेकर देश को चौंकाया हो। भाजपा सरप्राइज देने में माहिर है। मध्य प्रदेश में सीएम की रेस में […]
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में सोमवार को जैसे ही मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हुई, वैसे ही राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले सभी चौंक गए। यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी ने सीएम के नाम को लेकर देश को चौंकाया हो। भाजपा सरप्राइज देने में माहिर है। मध्य प्रदेश में सीएम की रेस में शिवराज चौहान, प्रहलाद पटेल और नरेंद्र तोमर जैसे दिग्गजों के नाम चल रहे थे, लेकिन विधायक दल की बैठक के बाद मोहन यादव के नाम का घोषणा कर दिया गया।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इतने दिग्गजों को किनारे कर मोहन यादव के नाम पर आम सहमति कैसे बन पाई? मोहन यादव को सीएम बनाना 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी का मास्टर स्ट्रोक क्यों कहा जा रहा है?
विधायक दल की मीटिंग में जो एमएलए चौथी लाइन में बैठा हो, जो कहीं रेस में न हो अचानक उसका नाम तमाम दिग्गजों को पछाड़कर मुख्यमंत्री के लिए आया तो हर कोई हैरान हो गया, लेकिन इसकी पटकथा अचानक नहीं लिखी गई थी, यह पहले से तय था। भाजपा की टॉप लीडरशिप ने मोहन यादव का नाम पहले ही तय कर लिया था, लेकिन जब तक नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं हो गया तब तक पार्टी के चंद नेताओं को छोड़कर किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी।
मध्य प्रदेश में यह पहले से तय माना जा रहा था कि अगर शिवराज हटेंगे तो किसी ओबीसी को सीएम बनाया जाएगा, लेकिन भाजपा ने सिर्फ ओबीसी से चेहरा नहीं चुना, बल्कि यादव समाज से चुना है। इसका असर अगले साल होने वाले आम चुनाव में मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और राजस्थान तक दिख सकता है। यही नहीं, भाजपा का यह दांव विपक्ष की टेंशन भी बढ़ा सकता है.
मोहन यादव ओबीसी वर्ग से आते हैं। सभी वर्गों के कुल वोटरों में ओबीसी मतदाता 49 फीसद के करीब हैं। रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के 20 जिलों में ओबीसी वोटर की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। मध्य प्रदेश के साथ ही देश के सबसे बड़े सियासी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में भी ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की गई है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार को मिलाकर लोकसभा की कुल 149 सीटें हैं और इन तीनों राज्यों में ओबीसी में यादव वोटर्स को विनिंग फैक्टर माना जाता है।