नई दिल्ली. कहते हैं कि वक्त बहुत बलवान होता है, समय का पहिया जब घूमता है तो बड़े बड़े शूरमा धराशाई हो जाते हैं और कोई फर्श से अर्श पर पहुंच जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ है भगवा पार्टी यानी भाजपा में. पार्टी के दो बार अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह मोदी 1.O में ग़ह […]
नई दिल्ली. कहते हैं कि वक्त बहुत बलवान होता है, समय का पहिया जब घूमता है तो बड़े बड़े शूरमा धराशाई हो जाते हैं और कोई फर्श से अर्श पर पहुंच जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ है भगवा पार्टी यानी भाजपा में. पार्टी के दो बार अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह मोदी 1.O में ग़ह मंत्री थे और मोदी 2.O में रक्षा मंत्री बने लेकिन दोनों कार्यकाल में हाशिये पर रहे. मोदी 3.O में भी वह एक बार फिर रक्षा मंत्री बनाये गये हैं लेकिन प्रभाव बढ़ गया है.
राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्र में कृषि मंत्री, भूतल परिवहन मंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री रहे. एक बार फिर रक्षा की ही जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन परिस्थितियां बदल गई है. इस बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बल्कि एनडीए के सहयोगी दलों की बैसाखी पर टिकी हुई सरकार है लिहाजा मृदुभाषी और सौम्य व्यवहार वाले किसी नेता की दरकार थी. पीएम मोदी ने पूरे मंत्रिमंडल पर जब नजर दौड़ाई तो उनकी नजर राजनाथ सिंह पर जाकर टिकी और सहयोगी दलों को साधे रखने की जिम्मेदारी राजनाथ सिंह को सौंप दी गई.
राजनाथ सिंह की अपनी पार्टी के साथ साथ एनडीए के घटक दलों और विपक्षी नेताओं से भी अच्छे संबंध हैं लिहाजा समन्वय की जिम्मेदारी उन्हीं को दे दी गई है. बताते हैं कि राजनाथ सिंह के निवास पर घटक दलों के नेताओं की दो बैठकें हो चुकी है. 24 जून से संसद का सत्र शुरू हो रहा है और 26 जून को स्पीकर का चुनाव है. स्पीकर चुनाव के लिए सभी दलों से बातचीत करने और कोई रास्ता निकालने की भी जिम्मेदारी राजनाथ सिंह को दी गई है. बैठकों में राजनाथ सिंह इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि किस पार्टी का कौन सा नेता शिरकत कर रहा है और उसे पूरा सम्मान देतें हैं. राजनाथ सिंह को ये विशेष जिम्मेदारी दी गई है कि वह जेडीयू और टीडीपी को संभालकर रखें. उनके सहयोग के लिए और भी कई नेताओं को इस काम में लगाया गया है.
यूपी के चंदौली के रहने वाले राजनाथ सिंह राजनीति में आने से पहले फिजिक्स के प्रोफेसर थे. 1991 में वह कल्याण सिंह के मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री बने थे और उन्हीं के दौर में नकल रोकने के लिए यूपी में बहुत ही सख्त कानून बना था और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के साथ सुर्खियों में आ गये थे. 1994 में वह राज्यसभा भेजे गये और 1997 में यूपी बीजेपी के अध्यक्ष बने. अक्टूबर 2000 में वह यूपी के सीएम बने. जिस समय उन्हें सीएम बनाया गया वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भूतल परिवहन मंत्री थे.
लगभग दो साल तक वह सीएम रहे लेकिन 2002 के चुनाव में करारी शिकस्त के बाद वह एक बार फिर केंद्र की राजनीति में आये और कृषि मंत्री बने. किसान नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली. 2013 में जिस समय मोदी को कंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया तब वही पार्टी अध्यक्ष थे. तब पार्टी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इसका विरोध किया था और चिट्ठी भी लिखी थी. आडवाणी को किनारे कर मोदी को आगे लाने वाले राजनाथ सिंह और पीएम मोदी में शुरू में अच्छी ट्यूनिंग थी लेकिन बाद के दिनों में राजनाथ सिंह कमजोर होते चले गये. अब उनके कंधों पर सहयोगी दलों को साधे रखने की बड़ी जिम्मेदारी है.
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