तीन तलाक को अपराध बताने वाले कानून को चुनौती देने के मामले में 29 जनवरी यानी आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरे के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि तीन तलाक कानून के तहत मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ कितने एफआईआर दर्ज किए गए हैं.
नई दिल्ली: तीन तलाक को अपराध बताने वाले कानून को चुनौती देने के मामले में 29 जनवरी यानी आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरे के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि तीन तलाक कानून के तहत मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ कितने एफआईआर दर्ज किए गए हैं. देश की शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत FIR और आरोप पत्र का विवरण मांगा है. मामले में अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कवि की भूमिका निभाते हुए एसजी मेहता ने कुछ ऐसा कहा जिससे चर्चा शुरू हो गई.
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने शायर साजिद सजनी लखनवी की शायरी पढ़ते हुए कहा, ‘कहर के लफ्ज़ों से तलाक दे रहे हो, दहेज के साथ मेरी जवानी भी लौटा दो.’ आमतौर पर माना जाता है कि यह दोहा पाकिस्तान की मशहूर शायरा परवीन शाकिर का है, लेकिन रेख्ता पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, यह दोहा साजिद सजनी लखनवी का है.
सजा को लेकर याचिकाओं में उठाई गई आपत्तियों पर उन्होंने कहा कि तीन तलाक में अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है, जबकि महिलाओं की रक्षा करने वाले कई अन्य कानूनों में इससे भी बड़ी सजा का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि किसी भी गतिविधि को दंडित करना पूरी तरह से विधायी नीति के दायरे में है. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि महज तीन तलाक कहने को ही अपराध घोषित कर दिया गया है.
इस पर एसजी मेहता ने कहा कि IPC की धारा 506 एक कानून है, जिसमें कुछ शब्दों के लिए सजा का प्रावधान है. इस दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने सरकार से सवाल किया कि अगर तीन तलाक कहने से भी पति-पत्नी का रिश्ता नहीं टूटता और वे अलग नहीं होते तो जुर्माना क्यों लगाया गया. उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसे तलाक को मान्यता नहीं मिलती है और पति-पत्नी के बीच रिश्ता बरकरार रहता है और अलगाव नहीं होता है. फिर आपने तलाक कहने पर ही जुर्माना लगा दिया. हमें पूरे देश में तीन तलाक कानून के तहत दर्ज एफआईआर की एक सूची चाहिए.
वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि इस तरह से मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव किया जा रहा है क्योंकि किसी भी अन्य समुदाय में पत्नी को छोड़ना अपराध नहीं माना जाता है. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक अन्य वकील वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद ने कहा कि इस मामले को पहले से मौजूद घरेलू हिंसा कानून के तहत निपटाया जा सकता है और अलग से कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने तर्क दिया, ‘अगर शादीशुदा रिश्ते में पत्नी को पीटा जाता है, तो महीनों तक एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, लेकिन यहां सिर्फ तलाक कहने पर मामले दर्ज किए जा रहे हैं.’
इस पर एसजी मेहता ने कहा कि किसी अन्य समाज में ऐसी प्रथा नहीं है. इस बीच सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि कोई भी वकील यह नहीं कह रहा है कि यह प्रथा सही है, लेकिन उनका कहना है कि इस प्रथा पर रोक लगाने के बाद भी इसे अपराध घोषित किया जा सकता है, जबकि तीन तलाक कहने पर तलाक नहीं हो सकता.
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