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Pitru Paksha 2021: पितृ पक्ष सोमवार से शुरू, कोरोना काल में जिनका अंतिम संस्कार ठीक से नहीं हो पाया उनकी शांति के लिए ऐसे करें श्राद्ध

Pitru Paksha from today: Know the method for peace for Corona period नई दिल्ली. हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध शुरु हो जाते हैं। वहीं इनका समापन सर्वपितृ अमावस्या को होता है।  श्राद्ध यानि पितृ पक्ष 16 दिन चलते हैं, लेकिन कई बार यहां तिथियां […]

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Pitra Paksha
  • September 20, 2021 8:58 am Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

Pitru Paksha from today: Know the method for peace for Corona period

नई दिल्ली. हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध शुरु हो जाते हैं। वहीं इनका समापन सर्वपितृ अमावस्या को होता है।  श्राद्ध यानि पितृ पक्ष 16 दिन चलते हैं, लेकिन कई बार यहां तिथियां गलने के चलते ये दिन कम भी हो जाते हैं। जबकि कभी कभी इसके दिन में वृद्धि भी हो जाती है।

ऐसे में इस बार यानि 2021 में पितृ पक्ष की शुरुआत सोमवार,20 सितंबर से होने जा रही है, जो बुधवार, 06 अक्टूबर तक चलेंगे। पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के निधन की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। जबकि सभी महिलाओं का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।

पितृ पक्ष के संबंध में पंडित केपी शर्मा का कहना है कि श्राद्ध में पितरों को याद किए जाने के साथ ही उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। वहीं कोरोना के दौरान हुई मृत्यु के संबंध में उनका कहना है कि इनके श्राद्ध को लेकर हमें काफी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

कोरोना के कारण हुई जिनकी मौत उनका करें ऐसे श्राद्ध

 कोरोना से हुई मौतों में लोग अपनों का पूरी तरह से धार्मिक रिति रिवाज के अनुसार क्रियाकर्म नहीं कर सके। ऐसे में इन आत्माओं को तृप्त नहीं माना जा सकता, वहीं कब किसी मृत्यु हुई इसकी जानकारी के अभाव में तिथि ज्ञात करना भी मुश्किल है। वहीं कई जगहों पर अन्य तरह की भी शिकायतें आईं, जिसके चलते यह काफी उलझाने वाला हो गया। ऐसे में इन्हें तृप्त करने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

शर्मा के अनुसार पहली बात तो यह कि इन्हें अकाल और अज्ञात की श्रेणी में रखा जा सकता है। कारण यह है कि ये मृत्यु वास्तविक मृत्यु का समय आने से पहले ही हो गईं। ऐसे में माना जाता है कि अकाल मृत्यु अकाल मृत्यु का अर्थ होता है असमय मृत्यु यानि पूर्ण उम्र जिए बगैर मर जाना। इसमें आत्महत्या या जो किसी बीमारी या दुर्घटना में मारे जाने वाले शामिल किए जाते हैं।

वेदों के मुताबिक आत्मघाती मनुष्य की मृत्यु के बाद वह असूर्य नामक लोक को गमन करते हैं और तब तक अतृत होकर भटकते हैं जब तक की उनके जीवन का चक्र पूर्ण नहीं हो जाता। वहीं दूसरी ओर अज्ञात का कारण यह है कि इनकी मृत्यु की तिथि कई जगह ज्ञात ही नहीं हो सकी। ऐसे में कोरोना से हुई मृत्यु के तर्पण के लिए सबसे शुभ दिन सर्वपितृ अमावस्या का ही रहेगा।

 पितृ अमावस्या मुहूर्त

अमावस्या तिथि की शुरुआत: 05 अक्तूबर 2021 को 19:04 बजे से
अमावस्या तिथि का समापन : 06 अक्तूबर 2021 को 16 :34 बजे तक

सर्व पितृ अमावस्या : तर्पण की विधि
इसके तहत सर्व पितृ अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर बिना साबुन के स्नान करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें। पितरों के तर्पण के लिए सात्विक पकवान बनाएं और उनका श्राद्ध करें। वहीं शाम के समय सरसों के तेल के चार दीपक जलाएं। इन्हें घर की चौखट पर रख दें। वहीं एक दीपक व एक लोटे में जल लें।

अब अपने पितरों को याद करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि पितृपक्ष का समापन हो चुका है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देकर अपने लोक में वापस चले जाएं। यह करने के पश्चात् जल से भरा लोटा और दीपक को लेकर पीपल की पूजा करने जाएं। वहां भगवान विष्णु जी का स्मरण कर पेड़ के नीचे दीपक रखें जल चढ़ाते हुए पितरों के आशीर्वाद की कामना करें। पितृ विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें।

श्राद्ध पक्ष में अमावस्या का बड़ा महत्व

श्राद्ध पक्ष में अमावस्या का बड़ा महत्व है। सर्व पितृ अमावस्या को पितरों की शांति का सबसे अच्छा मुहूर्त माना गया है। माना जाता है कि जिन लोगों ने तीन वर्ष तक अपने पूर्वजों का श्राद्ध न किया हो, तो उनके पितर वापस प्रेत योनि में आ जाते हैं, ऐसे में उनकी शांति के लिए तीर्थस्थान में त्रिपिण्डी श्राद्ध किया जाता है। इस कार्य में कोताही नहीं करनी चाहिए अन्यथा पितृ शाप के लिए तैयार रहना चाहिए।

पितरों की शांति के लिए तर्पण, ब्राह्मण भोजन, कच्चा अन्न, वस्त्र, भूमि, गोदान, स्वर्ण दान सहित कई कर्म किए जाते हैं।

इसके अतिरिक्त अचानक मृत्यु, दुघर्टना में मृत्यु, हत्या या आत्महत्या करने वाले लोगों के लिए भी श्राद्ध होता है। इस श्राद्ध को दुर्मरणा श्राद्ध कहते हैं, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके अतिरिक्त अतृप्त आत्माओं के लिए हवन, दान या उनकी मनपसंद वस्तुओं का दान कर उनकी आत्मा को शांति प्रदान की जा सकती है।

जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात के कारण या अचानक हुई हो, उनका चतुदर्शी का दिन नियत है। परंतु जिनके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है। इसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।

इस दिन पूजन के रूप में ब्राह्मण द्वारा पितृ गायत्री 51 माला या फिर 21 माला का जाप कर हवन कराएं। तीन, पांच या सात ब्राह्मणों को भोजन कराएं। सफेद वस्त्रों का दान करें। दान स्वरूप दक्षिणा दें। ब्राह्मणों को वो भोजन कराएं जो मृतक जातक को पसंद थे।

उपाय :
– इस दिन भोजन का दान कुष्ठ आश्रम, वृद्धा आश्रम, बाल आश्रम में करें।
– एक-एक के सात सिक्के 7 भिखारियों को दान करें।
– सफेद पुष्प पितरों के स्थान पर चढ़ाएं, साथ ही दो धूपबत्ती जलाएं।
– सफेद रंग के वस्त्रों की पैरावनी किसी वृद्ध पुरुष या स्त्री को दें।

श्राद्ध में मुख्य कर्म-

1. तर्पण- पितरों को दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल अर्पित करें।
2. पिंडदान- जरूरतमंदों को भोजन देने से पूर्व चावल या जौ के पिंडदान करें।
3. वस्त्रदानः वस्त्रों का दान निर्धनों को करें।
4. दक्षिणाः भोजन के पश्चात दक्षिणा देंने के साथ ही चरण स्पर्श जरूर करें।

पितृपक्ष की तिथियां –

पूर्णिमा श्राद्ध – सोमवार,20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – मंगलवार, 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – बुधवार, 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – बृहस्पतिवार, 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – शुक्रवार,24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – शनिवार, 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – सोमवार, 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – मंगलवार, 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- बुधवार, 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध – बृहस्पतिवार,30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – शुक्रवार,01 अक्टूबर
एकादशी श्राद्ध शनिवार,02 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- रविवार, 03 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध – सोमवार,04 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- मंगलवार,05 अक्टूबर
अमावस्या श्राद्ध- बुधवार, 06 अक्टूबर

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